Kotumsar Gufa Kanker Ghati National Park Jagdalpur - Chhattisgarh
Kotumsar Cave |
कांगेर घाटि मे स्थित है। एक खौफनाक गुफा जिसे गोपंसर गुफा (कुटुमसर गुफा) कहा जाता है। साक्षो कि मानो तो इस गुफा में आदि मानव निवास करते थे एक शोध मे यह साबित भी हो गया है कि करोडो वर्ष पुर्व प्रागैतिहासिक काल मे इन्ही गुफा मे मनुष्य रहा करते थे। वैज्ञानीको का मानना है कि करोडो वर्ष पहले यह स्थान जल मग्न हुवा करता था । पानी के बहाव के चलते इस गुफा का निर्मान हुवा था।
Kotumsar Gufa Jagdalpur |
इस गुफा में भीषण अधेरा छाया हुवा रहता है।गुफा मे प्रवेश के पश्चात एैसा मालुम पडता है कि रात हो चुकि है। टार्च व अन्य उपकरण की सहायता से इसके अंदर के भव्य नजारो को देखा जाता है। यह गुफा काफी विशाल है,गुफा का जो आकार है। वह सर्प के आकार के समान प्रतित होती है। गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से कई कक्ष बने हुऐ है।जिसकी लम्बाई लगभग 21 से 72 मीटर तक चौडाई मापी गयी है। इसके अंदर के कुछ स्थान को बंद करके रखा गया है। जिसमे कई अन्य रास्ते व कक्ष मिलने की संभावना बताई जा रही है। इस कुटुमसर गुफा को विश्व कि दूसरी सबसे बडी गुफा के रूप मे जाना जाता है। इस गुफा की तुलना अमेरिका कें ("कर्ल्सवार आफ केंव गुफा") सें तुलना की गई है।
कुटुमसर गुफा का अंधी मछली
अंधी मछली - कोटमसर गुफा |
गुफा के अंदर छोटे - छोटे तालाब है। व गुफा के अंदर छोटी नदि भी बहती रहती है। इस गुफा मे अनोखी मछली जो दूनिया मे कही भी न हो वह मछली पायी जाती है जिसे अंधी मछली कहा जाता है जिसका वैज्ञानिक नाम कप्पी ओला शंकराई नाम दिया गया है। गुुुुफा के अंदर पुर्ण अंधकार है जिस कारण, सुर्य कि किरण का पहुचना असंभव है। सदियो से अधेरे मे रहने के कारण आखो कि उपयोगिता खत्म हो गयी व मछली जन्म से ही अंधी पैदा होती है जिस कारण इसे अंधी मछली कहा गया है।
Kutumasar cave |
Kutumasar cave |
कुटुमसर गुफा का इतिहास
इस गुफा कि खोज स्थानीय आदिवासीयो के द्वारा सन 1900 के आस पास खोजा गया था। कुटुमसर गुफा को सन 1951 मे प्रसिद्ध जाने माने जियोग्राफर ङा शंकर तिवारी द्वारा स्थानिय निवासीयो व कुछ पुरातात्वीक विभाग के टिम के द्वारा पहली बार इसका सर्वे किया गया था। श्री तिवारी के अपार सहयोग के चलते यह गुफा पूर्ण रूप से प्रकाश मे आया। इसलीये इस गुफा का खोज का श्रेय ङा शंकर तिवारी को माना गया है।
कुटुमसर गुफा की विशेषता
यह कुटुमसर गुफा जमीन से लगभग 54 फिट नीचे है। इसका प्रवेश द्वार काफी सकरा है। मगर अंदर पहुचते हि एक अलग दुनिया मालूम पडती है।पुरातत्वीक विभाग के द्वारा लोहे कि सीडियो की व्यवस्था कि गयी है। गुफा कि लम्बाई 4500 मीटर है। गुफा के अंदर चुना पत्थर के रिसाव व कार्बनडाईक्साइट तथा पानी कि रसायनिक क्रिया से सतह से लेकर इसकी छतो तक कई प्राकृतिक संरचनाये अंदर देखने को मिलती है। जिसे स्टैलेग्टाइट,स्टेलेगमाइट व ड्रिपस्टोन कि जैसी संरचनाये देखने को मिलती है।
छत पर लटकते झूमर स्टलेगटाईट व जमीन से उपर कि तरफ जाते स्तंभ स्टेलेगमाइट व छत से जमीन से मिले बडे आकार के स्तंभ ड्रिपस्टोन कहलाते है।
गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से एक शिवलीग विद्यमान है। जिसकी पुजा स्थानिय लोग सदियो से करते आ रहे है।स्थानिय लोगो कि मान्यता है कि भगवान राम वनवास काल के दौरान इस गुफा में आये थे |
lord shiva of kutumsar gufa |
कुटुमसर गुफा जगदलपुर छत्तीसगढ़ |
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गुफा मे आने का उपयुक्त समय :-
गुफा घने जगल व पहाडीयो से घिरा हुवा है। जो कि कुटुमसर नामक ग्राम के समीप स्थीत है। रास्ते खतरो से भरी पढी हुई है।क्योकि कुछ स्थान बहुत उची है व नीचे खाई है। 11 किलोमीटर दूरी होने के कारण व जगली जानवर के खतरो को देखते हूवे प्रसाशन के द्वारा जिप्सी कि व्यवसथा कि गयी है। वर्षा के दिनो मे इस गुफा में छोटी - छोटी नदिया बहती रहती है। जिस कारण इसमे प्रवेश वर्जित रहता है। भ्रमन के लिये उपयुक्त समय नवम्बर से लेकर मई तक रहता बाकि दिनो मे गुफा बंद रहता है। गुफा के अंदर वायु कि कमी के चलते घूटन व गर्मी का अहसास होता है। पर्यटको को अपने साथ तेज प्रकाश वाली लाईट अपने साथ लेके आना चाहिये। इसके पश्चात तिरथगढ के मनोरम झरने का आनंद उठाना चहिये कुटुमसर गुफा जगदलपुर से 40 कि.मी. की दुरी पर हैं काकेंर घाटी में स्थित हैं।