Friday, November 29, 2019

Kotumsar Cave, Jagdalpur - Chhattisgarh ( कुटुमसर गुफा जगदलपुर छत्तीसगढ़ )

Kotumsar Gufa Kanker Ghati National Park Jagdalpur - Chhattisgarh 


Kotumsar Cave
रहस्यों की धरती- कुटुमसर गुफा (जगदलपुर) बस्तर
कांगेर घाटि मे स्थित है। एक खौफनाक गुफा जिसे गोपंसर गुफा (कुटुमसर गुफा) कहा जाता है। साक्षो कि मानो तो इस गुफा में आदि मानव निवास करते थे एक शोध मे यह साबित भी हो गया है कि करोडो वर्ष पुर्व प्रागैतिहासिक काल मे इन्ही गुफा मे मनुष्य रहा करते थे। वैज्ञानीको का मानना है कि करोडो वर्ष पहले यह स्थान जल मग्न हुवा करता था । पानी के बहाव के चलते इस गुफा का निर्मान हुवा था।

Kotumsar Gufa Jagdalpur
Kotumsar Gufa Jagdalpur 


कुटुमसर गुफा छत्तीसगढ़

इस गुफा में  भीषण अधेरा छाया हुवा रहता है।गुफा मे प्रवेश के पश्चात एैसा मालुम पडता है कि रात हो चुकि है। टार्च व अन्य उपकरण की सहायता से इसके अंदर के भव्य नजारो को देखा जाता है। यह गुफा काफी विशाल है,गुफा का जो आकार है। वह सर्प के आकार के समान प्रतित होती है। गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से कई कक्ष बने हुऐ है।जिसकी लम्बाई लगभग 21 से 72 मीटर तक चौडाई मापी गयी है। इसके अंदर के कुछ स्थान को बंद करके रखा गया है। जिसमे कई अन्य रास्ते व कक्ष मिलने की संभावना बताई जा रही है। इस कुटुमसर गुफा को विश्व कि दूसरी सबसे  बडी गुफा के रूप मे जाना जाता है। इस गुफा की तुलना अमेरिका कें ("कर्ल्सवार आफ केंव गुफा") सें तुलना की गई है। 

कुटुमसर गुफा  का अंधी मछली 

Blind fish Kotumasar Gufa
अंधी मछली - कोटमसर गुफा 

गुफा के अंदर छोटे - छोटे तालाब है। व गुफा के अंदर छोटी नदि भी बहती रहती है। इस गुफा मे अनोखी मछली जो दूनिया मे कही भी न हो वह मछली पायी जाती है जिसे अंधी मछली कहा जाता है जिसका वैज्ञानिक नाम कप्पी ओला शंकराई नाम दिया गया है। गुुुुफा के अंदर पुर्ण अंधकार है जिस कारण, सुर्य कि किरण का पहुचना असंभव है। सदियो से अधेरे मे रहने के कारण आखो कि उपयोगिता खत्म हो गयी व मछली जन्म से ही अंधी पैदा होती है जिस कारण इसे अंधी मछली कहा गया है।

Kotumasar cave in Bastar
Kutumasar cave

Kotumasar cave Kanker Ghati

Kotumasar gufa Kanker Ghati National Park
Kutumasar cave

Kutumasar Chhattisgarh

Kotumsar cave was initially named Gopansar cave


कुटुमसर गुफा का इतिहास
इस गुफा कि खोज स्थानीय आदिवासीयो के द्वारा सन 1900 के आस पास खोजा  गया था। कुटुमसर गुफा को सन 1951 मे प्रसिद्ध जाने माने जियोग्राफर ङा शंकर तिवारी द्वारा स्थानिय निवासीयो व कुछ पुरातात्वीक विभाग के टिम के द्वारा पहली बार इसका सर्वे किया गया था। श्री तिवारी के अपार सहयोग के चलते यह गुफा पूर्ण रूप से प्रकाश मे आया। इसलीये इस गुफा का खोज का श्रेय ङा शंकर तिवारी को माना गया है।


कुटुमसर गुफा की विशेषता

यह कुटुमसर गुफा जमीन से लगभग 54 फिट नीचे है। इसका प्रवेश द्वार काफी सकरा है। मगर अंदर पहुचते हि एक अलग दुनिया मालूम पडती है।पुरातत्वीक विभाग के द्वारा लोहे कि सीडियो की व्यवस्था कि गयी है। गुफा कि लम्बाई 4500 मीटर है। गुफा के अंदर चुना पत्थर के रिसाव व कार्बनडाईक्साइट तथा पानी कि रसायनिक क्रिया से सतह से लेकर इसकी छतो तक कई प्राकृतिक संरचनाये अंदर देखने को मिलती है। जिसे स्टैलेग्टाइट,स्टेलेगमाइट व ड्रिपस्टोन कि जैसी संरचनाये देखने को मिलती है।

छत पर लटकते झूमर स्टलेगटाईट व जमीन से उपर कि तरफ जाते स्तंभ स्टेलेगमाइट व छत से जमीन से मिले बडे आकार के स्तंभ ड्रिपस्टोन कहलाते है।

गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से एक शिवलीग विद्यमान है। जिसकी पुजा स्थानिय लोग सदियो से करते आ रहे है।स्थानिय लोगो कि मान्यता है कि भगवान राम वनवास काल के दौरान इस गुफा में आये थे |   

lord shiva of kutumsar gufa

कुटुमसर गुफा
कुटुमसर गुफा जगदलपुर छत्तीसगढ़ 
गुफा मे आने का उपयुक्त समय :-
गुफा घने जगल व पहाडीयो से घिरा हुवा है। जो कि कुटुमसर नामक ग्राम के समीप स्थीत है। रास्ते खतरो से भरी पढी हुई है।क्योकि कुछ स्थान बहुत उची है व नीचे खाई है। 11 किलोमीटर दूरी होने के कारण व जगली जानवर के खतरो को देखते हूवे प्रसाशन के द्वारा जिप्सी कि व्यवसथा कि गयी है। वर्षा के दिनो मे इस गुफा में छोटी - छोटी नदिया बहती रहती है। जिस कारण इसमे प्रवेश वर्जित रहता है। भ्रमन के लिये उपयुक्त समय नवम्बर से लेकर मई तक रहता बाकि दिनो मे गुफा बंद रहता है। गुफा के अंदर वायु कि कमी के चलते घूटन व गर्मी का अहसास होता है। पर्यटको को अपने साथ तेज प्रकाश वाली लाईट अपने साथ लेके आना चाहिये। इसके पश्चात तिरथगढ के मनोरम झरने का आनंद उठाना चहिये कुटुमसर गुफा जगदलपुर से 40 कि.मी. की दुरी पर हैं काकेंर घाटी में स्थित हैं।

Wednesday, November 20, 2019

Tourist Places of Bastar With Photos (बस्तर के पर्यटन स्थल) Chhattisgarh

Bastar, the heart of Chhattisgarh, is blessed with exceptional scenic beauty and a unique fascinating cultural heritage. Bastar can also be an anthropologist and naturalist's delight as the region is known for its unique tribal population including Gonds who are world-famous for their 'Ghotul' system of marriages. Each tribe has its own distinct dress, culture and way of life and they can easily be differentiated by their specific costumes, jewellery, headdresses, baskets and tools. The main tribes in Bastar are Gond, Abhujmaria, Bison-horn Maria, Muria, Halbaa, Bhatra, Parja and Dhurvaa. Visit and explore the breathtaking natural surroundings and unique tribal life of Bastar on your visit to Chhattisgarh.

tourist places in bastar chhattisgarh


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Bastar is famous for its lush green forests, exotic mountains and valleys, young and lively rivers, enchanting waterfalls, natural caves and a rich and diverse wildlife. Apart from scenic beauty, the fascinating culture and ancient architectural monuments including many beautiful temples of Bastar never fails to mesmerize its visitors. With so much to offer, Bastar can truly be referred as the 'Little Green Paradise of India'. Visit and explore this little paradise called Bastar and get rewarded with a unique and unforgettable holiday experience.

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As a tourist destination, Bastar has a lot to offer to its visitors and it's difficult to cover all attractions of the place in one article. Jagdalpur is the district headquarters of Bastar and all the major tourist attraction of the region lie in and around the beautiful town. The major tourist attractions of Jagdalpur include Danteshwari Temple, Bastar Palace, Anthropological Museum and a couple of beautiful lakes. Bastar is famous for a number of enchanting waterfalls like the gorgeous Chitrakote Waterfalls (popularly referred as the Niagara of India), Tiratgarh Waterfalls, Mandawa Waterfalls, Thamada Ghumar Waterfalls and Chitradhara Waterfalls. Other not to be missed attractions on your Bastar Tours include the ancient caves - Kutumsar Caves and Kailash Gufa-, Barsoor (famous for its temples dating from the 10th and 11th centuries) and Narayanpur.

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For wildlife enthusiasts and nature lovers, there are two picturesque wildlife sanctuaries - Kanger Valley National Park and Indravati National Park. Both the Parks are famous for their unique and diverse flora and fauna including the majestic Tigers. Kanger valley is also one of the last pockets of almost virgin forests still left in the Peninsular India. Your Bastar tour is incomplete without a visit to unique and fascinating tribal villages and weekly haats (markets). These haats are the best place to get an insight into the unique tribal lifestyles of the famous tribes of Bastar. Tribal men and women walk up to 20 km to get to the haat, to sell their beautiful handicrafts and other forest products. With so much of variety, Bastar is a tourist destination with a difference.

Sunday, November 17, 2019

Shri Ram Temple Raipur Chhattisgarh(With Photos) श्री राम मंदिर रायपुर छत्तीसगढ़ (VIP Road)

Beautiful Images Collection of Ram Mandir Raipur(Chhattisgarh)
VIP Roads Ram Mandir  Raipur
प्रवेश द्वार राम मंदिर -रायपुर 

श्री राम मंदिर 
                                                                                                                                                                    
VIP Roads Ram Temple Raipur
भगवान राम व माता सीता और भक्त हनुमान 

Ram Janki Temple Raipur


Saturday, November 16, 2019

प्राचीन शिव मंदिर चन्दखुरी ,रायपुर (Ancient Shiva Temple Chandkhuri Raipur-Chhattisgarh)


माता कौशिल्या कि इस जन्म भूमि, ग्राम चंदखुरी में विद्यमान है,प्राचीन शिव मंदिर जिसे छ:माशी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है| 
Shiv Mandir Chandkhuri
Shiva Temple Chandkhuri

Six Mashi Shiva Temple Chandkuri Raipur 
माता कौशिल्या मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर कि दुरी पर चंदखुरी ग्राम के बाये किनारे पर पतली सडको को पार करके पटेल पारा में यह प्राचीन स्मारक अवस्थित है|पुरातत्व विभाग के अनुसार इस मंदिर का निर्माण लगभग 10 – 11 वी शती ईस्वी के बीच कलचुरी कालीन राजावो के द्वारा कराया गया था|किन्तु इस मंदिर का अलंकृत द्वार तोरण किसी दुसरे विनष्ट हुवे सोमवंशी मंदिर (काल 8 वी शती ईस्वी )का है|
Shiv Mandir Chandkhuri

मंदिर कि द्वार शाखावो पर गंगा एवं यमुना नदी देवियो का बेहद सुन्दर ढंग से मुर्तिया, पत्थरो में तराशा गया है|सिरदल पर ललाट बिम्ब में गजलक्ष्मी बैठी हुई है|जिसके एक ओर बाली – सुग्रीव के मल्ल युद्ध एवं मृत बाली का सिर गोद पर रखकर विलाप करती हुई तारा का करुण दृश्य प्रदर्शित है| 
Ancient Shiv Mandir Chandkhuri

Chandkhuri shiv Mandir
शिव मंदिर द्वार शाखा 

Prachin Shiv Mandir Chandkhuri,Raipur

Chandkhuri Tourism

mata  kaushalya mandir chandkhuri
Mata Kaushalya -Chandkhuri

शिव मंदिर चन्दखुरी
प्राचीन शिव मंदिर चन्दखुरी

गर्भगृह में किसी भी प्रकार कि कोई प्रतिमा नहीं है|नागर शैली में निर्मित यह पचरथ मंदिर है|इसमें मण्डप नहीं है|मंदिर परिसर में कुछ खण्डित प्रतिमा को रखा गया है कुछ मूर्ति सामने पेड़ के निचे है|इस ग्राम के चौक चौराहों में कुछ खण्डित प्राचीन प्रतिमा देखने को मिलती है सम्भवतह इशी मंदिर के अवशेष मालूम पड़ती है|यह स्मारक पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक है|इसके बावजूद शाषण प्रशासन व ग्रामवासियों कि उदासीनता के चलते, मंदिर अपनी प्राचीनता खोती नजर आ रही है|यदि ऐशी ही लापरवाही रही तो कुछ वर्षो के उपरांत यह मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो जायेगा|
कुल मिलाकर देखा जाये तो यह क्षेत्रिय मंदिर का अनुपम उदहारण है|

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Thursday, November 14, 2019

Shiva Mandir Navagaon Raipur (प्राचीन शिव मंदिर नवागांव रायपुर )

Ancient Shiva Temple Navagaon Raipur

यह प्राचीन ईट निर्मित मंदिर रास्ट्रीय राजमार्ग एन एच 53 पर रायपुर से 19 किलोमीटर कि दुरी पर नावगाव के तालाब के तटबंध पर अवस्थित है| 
Shiv Temple Navagaon

|उचे चबूतरे विद्यमान इस पूर्वाभिमुखी मंदिर में गर्भगृह ,अन्तराल एवं मण्डप तीन अंग है|वर्तमान में इस मंदिर का गर्भगृह रिक्त है|संभवत: यह शिव मंदिर है|इस मंदिर का शिवलिंग स्मारक के निकट निर्मित किये गए अन्य नवीन शिव मंदिर में पूर्व में सीमंतरित कर दिया है|गर्भगृह का प्रस्तर निर्मित द्वार चौखट एवं मण्डप के स्तम्भ मंदिर के दीवारों एव शिखर से अधिक प्राचीन मालूम पड़ते है| 

ईटो से निर्मित प्राचीन शिव मंदिर नवागांव -रायपुर 


प्राचीन शिव मंदिर नवागांव रायपुर



Raipur Tourism


Ancient Shiva Temple Navagaon Raipur
प्राचीन शिव मंदिर नवागांव रायपुर

 ऐसा प्रतीत होता है कि इस मंदिर का निर्माण 16 – 17 शती इशवी में हुवा तथा 12 – 13 शती ईशवी में निर्मित हुए किसी ध्वस्त मंदिर के द्वार चौखट एव स्तम्भ इसमें प्रयुक्त हुए है| छ:ग: में प्राप्त समकालीन ईट निर्मित मंदिर वास्तु का अच्छा उदहारण है| 

यह मंदिर वर्तमान में जिस अवस्था में है लगता है कि यह ज्यादा समय तक सुरक्षित नही रह पायेगा|पूरा मंदिर बेजान हो गया है|पुरातत्व विभाग के अधीन होने के पश्चात भी मंदिर का जीर्णोधार नहीं किया जा रहा है|

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Monday, November 11, 2019

Hatkeshwar Mahadev Temple Mahadev Ghat Raipur (हटकेश्वर नाथ ,महादेव घाट रायपुर -छत्तीसगढ़ )

भगवान शिव और विष्णु का एक ऐशा धाम जहां आज भी 500 साल से प्रज्वलित हो रहा है अखंड धुना, महादेव घाट के नाम से प्रसिद्ध शिव की इस पावन नगरी में विराजे है। हटकेश्वर नाथ।
Hatkeshwar Mahadev Raipur
Hatkeshwar Nath Mahadev

रायपुर के खारुल तट पर स्थित है। भोले बाबा का दरबार इसे महादेव घाट के नाम से जाना जाता है
और भगवान शिव को हटकेश्वर महादेव कहा जाता है। सैकड़ों साल पुरानी इस मंदिर की स्थापना और इसके नाम के पीछे दिलचस्प कहानी है।

महादेव घाट में विराजे हैं हटकेश्वर महादेव, देवों के देव महादेव जो प्रसन्न हो जाए तो, भक्तों पर सब कुछ लुटा देते हैं। लेकिन जब क्रोध में आ जाए तो प्रलय आ जाता है। इस मंदिर में बजने वाले मृदंग और शंख की ध्वनि से मन श्रद्धा से भर जाता है। शहर से 8 किलोमीटर दूर स्थित खारून नदी के किनारे विराजित है हटकेश्वर महादेव भगवान शिव का यह मंदिर प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक है। आस्था के सैलाब में गोता लगाने श्रद्धालु महादेव घाट पहुंचते हैं।करीब 600 साल पुराने स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी होती है। मान्यता है कि इसकी स्थापना भगवान राम के वन गमन के समय हुई थी वनवास के दौरान वे छत्तीसगढ़ के इलाके से गुजर रहे थे तब इस शिवलिंग की स्थापना ,लक्ष्मण के हाथों हुई थी।
Mahadev Ghat Raipur

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हटकेश्वर महादेव मंदिर,मंदिर में दर्शन करने हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश के कोने कोने से आते हैं। साल 1402 में कलचुरी राजा रामचंद्र के पुत्र ब्रम्हदेव राय के शासनकाल में हाजीराज नाइक ने हटकेश्वर नाथ महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था। बारीक नक्काशी से सुसज्जित इस भव्य मंदिर के आंतरिक और बाहरी कक्षो की शोभा देखते ही बनती है। इस मंदिर के मुख्य आराध्य हटकेश्वर महादेव, नागर ब्राम्हणों के संरक्षक देवता माने जाते है।

महादेव घाट में भोले बाबा हटकेश्वर महादेव के रूप में विराजे हैं। कलचुरी कालीन स्थापत्य कला भी भोलेनाथ की इस मंदिर में दिखाई देती है। बारीक नक्काशी और काले पत्थर की बेहद आकर्षक मूर्ति आने वाले का मन मोह लेती हैं। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के पास ही राम जानकी लक्ष्मण और बरहादेव की प्रतिमा है। भोलेनाथ का नाम हटकेश्वर नाथ क्यों पड़ा इसके पीछे भी कई दिलचस्प कहानी है।

अति प्राचीन मंदिरो के प्रति लोगों का गहरी आस्था है, जो उन्हें यहां तक खींच कर लाती है। महादेव अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाते हैं। और उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। क्षेत्र का नामकरण और स्थापना कलचुरी शासन काल में हुई तब से यहां लोग पीढ़ियों से अपनी धार्मिक मान्यताओं की पूर्ति के लिए यहां आते है।यहा पर पिंड दान किया जाता है।

हटकेश्वर महादेव और पवित्र खारुन नदी में पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। और इसके लिए शासन स्तर पर भी खारुल
तट पर नाव की व्यवस्था की गई है। खारूल नदी किनारे चलने वाली नाव पिंड दान की प्रक्रिया को पूरा कराने में मदद करती है। इस नाव में बैठकर लोग अपने पितरों को मोक्ष प्राप्ति के लिए नदी के बीच जाकर पिंडदान करते हैं। अब गया और काशी की तरह भी यहां पर ही सारे कर्म कांड होने लगे हैं।
Lakshaman Jhula Mahadev Ghat Raipur

महादेव घाट में प्रवेश करते ही ,जैसे ही हटकेश्वर नाथ के प्रांगण में प्रवेश करते हैं वही हटकेश्वर नाथ के सामने ही जूना अखाड़ा का परिसर नजर आता है। यह वही परिसर है। जहां दूर-दूर से आए साधु संत विश्राम के लिए रुकते हैं। हटकेश्वर नाथ के दर्शन के लिए गर्भ गृह में प्रवेश करते ही बेहद सुखद अनुभव होती है। गर्भ गृह में बिखरी धूप अगरबत्ती की खुशबू से मन में श्रद्धा की भावना जागृत हो जाती है। भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए धतूरे का फूल और फल चढ़ाते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु मन में जो भी कामना लेकर आते हैं। उनकी सारी कामना पूरी होती है। हटकेश्वर महादेव के परिसर में स्थापित देवी-देवताओं की प्रतिमा और गर्भगृह में भगवान सत्यनारायण की प्रतिमा मन में श्रद्धा के भाव जगाती है।

महादेव घाट स्थित जूना अखाड़े का अखंड धूना करीब 500 सालों से यहां प्रज्वलित है। धूना में प्रवेश करते ही एक सुखद एहसास होता है। भोलेनाथ के प्रताप से ही इतने सालो से धुने में अखंड ज्योत जल रही है। इस धूना में रुद्राक्ष की माला भी,ताप से पक जाती है। भोलेनाथ के ताप से रुद्राक्ष की ये माला सिद्ध हो जाती है। और श्रद्धालु अपने कष्टों के निवारण के लिए इस माला के दानों को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं। चंद्र और सूर्य ग्रहण के समय यह अखंड धुना में साबरी मंत्रों से हवन होता है। धुना की भभूत भक्त अपने माथे पर धारण करते हैं। और अपने कष्टों से मुफ्ती पाते हैं।

हटकेश्वर महादेव मंदिर में अब तक जितने भी महंत हुए हैं। सभी की समाधि यहां बनी हुई है। वर्तमान में अभी केवल पांच महंतों के ही समाधि बची हुई है। हटकेश्वर महादेव परिसर में नीम के पेड़ के नीचे मंदिर के पहले महंत ब्रह्मचारी शंकर गिरी महाराज कि जागृत समाधि है। नीम के पेड़ के नीचे बनी समाधि सुरक्षित है। उसी तरह हटकेश्वर महादेव में गर्भ गृह के सामने 12वीं महंत सरस्वती गिरी की समाधि बनी हुई है इन्हीं के पास लकड़ सुग्घा की समाधि है। यह कोई महंत नहीं थे लेकिन सिद्ध बाबा थे जो लकड़ी सुखाकर हर तरह के कष्टों का निवारण करते थे।

महादेव घाट में लगने वाले पुन्नी मेले और शिवरात्रि मेले की विशेष ख्याति है, दूर-दूर से लोग हटकेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।
जीवनदायिनी खारून नदी के किनारे में लगने वाले मेले की मान्यता है। की ब्रह् मुहूर्त पर श्रद्धा पूर्वक नदी में स्नान करने से शारीरिक व्याधियों दूर होती है और शरीर निरोगी होता है। साथ ही इस दिन स्नान ध्यान कर पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल की भी प्राप्ति होती है।
यह भी मान्यता है कि विवाहिता अगर पूरे कार्तिक मास ब्रह् मुहूर्त में उठकर नदी में स्नान कर सूर्य देव को अर्क अर्पित करे तो वो अखंड सौभाग्यवती होती है। और पारिवारिक सुख समृद्धि बढ़ती है। इसके साथ ही कुंवारी कन्या स्नान पूजा करें तो उसे मनपसंद वर मिलता है।

पापों से छुटकारा पाने और पुण्य अर्जित करने के लिए कार्तिक माह में स्नान करने की परंपरा है। पूर्णिमा के दिन यह परंपरा परवान चढ़ती है। और हजारों लोग खारून नदी में डुबकी लगाकर महादेव का दर्शन करते हैं सालों से यह परंपरा चली आ रही है। तंत्र साधना के लिए यह स्थान उत्तम माना गया है।
                                                                             संकलन 
                                                                 प्रकाश साहू रायपुर(छः ग:)
                                                                 फोटो अश्वनी पटेल (छुरा )  

History of Devbaloda Shiva Temple in Hindi (शिव मंदिर देवबलोदा चरोदा भिलाई - जिला दुर्ग )

आश्चर्य और रहस्य से भरा है, देवबलोदा का यह ,छ: माशी मंदिर।   
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 12वीं से 13 शताब्दी के बीच कलचुरी कालीन राजाओं के द्वारा कराया गया था ,यह अधूरा मंदिर, लाल बलुवा पत्थरों से नागर शैली में बनाया गया है। जिसका मंडप भाग नवरंग शैली में बना हुआ है।

Shiv Mandir Devbaloda History in Hindi

Shiv Temple Devbaloda
Shiv Mandir Devbaloda

मंदिर की बनावट काफी भव्य है व मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी उत्कृष्ट व आश्चर्यजनक है। मंदिर की दीवारों पर नाना प्रकार के देवी देवताओं पशु पक्षी पेड़ पौधे रामायण के प्रसंगों को बखूबी के साथ दीवारों पर उकेरा गया है। मंदिर का निर्माण ऊंची जगती पर किया गया है। तथा बड़े-बड़े पत्थरों के बरामदे में मंदिर को बनाया गया है। मंदिर के गर्भगृह जमीन से नीचे की तरफ है, जिसमें सीढ़ी के सहारे उतरा जाता है। गर्भगृह के अंदर प्राचीन शिवलिंग विद्यमान है। 
Ancient Mahadev Temple in Devbaloda

prachin shiva mandir devbaloda
प्राचीन शिव मंदिर देवबलोदा 

मंदिर के अंदर माता पार्वती ,भगवान जगन्नाथ व कई देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित है। प्रवेश द्वार के ठीक समीप भगवान गणेश की दो भव्य प्रतिमा बनी हुई है।मंदिर के ठीक सामने भगवान शिव की सवारी नदी विराजमान है। मंदिर में दो प्रवेश द्वार है एक प्रवेश द्वार से कुंड तक पहुंचा जाता है। कुंड के समीप पीपल पेड़ के नीचे कई खंडित प्रतिमा संरक्षित करके रखा गया है।

देवबलोदा का प्राचीन महादेव मंदिर
मंदिर के पास एक प्राचीन कुंड है, जिसका जल कभी नहीं सूखता है। भक्तजन कुंड के जल से शिवजी का अभिषेक करते हैं। भक्तों की माने तो इस पवित्र कुंड के जल से स्नान करने मात्र से सभी रोग का नाश होता है।घर की शुद्धि के लिए इस जल का छिड़काव करते है।

shiv mandir devbaloda chhattisgarh
वह कुण्ड जिसमे सुरंग है 

स्थानीय निवासियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 6 मासी रात में कराया गया था 6 मास बीत जाने के पश्चात दिन हो गए जिसके बाद यह मंदिर ऐसी ही अधूरा छोड़ दिया,ऊपर का हिस्सा नहीं बन पाया ।।।
एक और किदवंती के अनुसार,मंदिर का शिल्पीकार मंदिर को बनाने में इतना व्यस्त हो चुका था की उसे अपने कपड़े पहनने तक का होश नहीं था दिन रात काम करते-करते वह निर्वस्त्र हो चुका था। शिल्पीकार की पत्नी रोज शिल्पकार को भोजन लाकर देती थी। एक दिन किसी कारणवश शिल्पकार की बहन को खाना लाना पड़ गया , भोजन लेकर जैसे मंदिर पहुंची शिल्पकार नग्न अवस्था में था। बहन को आता देख शर्मिंदा के डर से मंदिर से छलांग लगाकर नजदीक में जो कुंड है। उसमें कूद गया उसकी बहन ने देखा कि मेरे भैया मेरे कारण मंदिर से कूदकर आत्महत्या कर ली है। ऐसा समझकर सामने के ही तालाब में छलांग लगाकर अपनी प्राण दे देती है।
Ancient Shiva Temple Devbaloda
प्राचीन शिव मंदिर देवबलोदा

मंदिर के कुंड के बारे में कहा जाता है कि इस कुंड के अंदर दो कुए हैं।जिसमें एक कुआं का संबंध सीधा पाताल लोक से है। जिसमें निरंतर जल की धारा प्रवाहित होती रहती है। और दूसरे कुएं के अंदर एक गुप्त सुरंग बना हुआ है। जो आरंग में जाकर निकलता है, शिल्पकार इसी सुरंग मार्ग से अंदर ही अंदर आरंग पहुंच गया और श्राप वस वह आरंग में पत्थर का बन गया।
Dev baloda Shiv Mandir
Shiv Mandir Dev Baloda 

इस प्राचीन मंदिर तक कैसे पहुंचे:-
रायपुर से 22 किलोमीटर की दूरी पर रायपुर दुर्ग मार्ग पर भिलाई के समीप चरौदा के पास तीन रेल लाइनों को पार करके देवबलोदा ग्राम में यह प्राचीन शिव मंदिर विद्यमान है। देवबलोदा गाव के बस्ती बीच,तालाब के मेड में अनेकों निर्माणाधीन मंदिर है।जो देखने लायक है।मंदिर प्रांगण के अंदर अनेक सुंदर मंदिर है जिसमें, विशाल शिवलिंग अन्य देवी देवतावो के दर्शन किया जा सकता है।

Devbaloda Shiv Mandir

मेले का आयोजन:-
शिव भक्ति से ओतप्रोत इस ग्राम में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से लोग मेले का आनंद लेने पहुंचते हैं। सावन सोमवारी में शिवजी को जल अर्पण करने के लिए जनसैलाब उमड़ता है। बोल- बम के नारे से मंदिर परिसर गूंज उठता है। पूरा वातावरण शिव मई हो जाता है। यह मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इमारत है। पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर प्रांगण में गार्डन का निर्माण किया गया है। जिसमें लोग विश्राम करते हैंl मंदिर को सुरक्षित रखने के लिए चारों तरफ से लोहे के मजबूत एंगल द्वारा संरक्षित किया गया है। 
टिप :-सूर्योदय से सूर्यास्त तक पर्यटक इस मंदिर के दर्शन कर सकते है।