Friday, November 29, 2019

Kotumsar Cave, Jagdalpur - Chhattisgarh ( कुटुमसर गुफा जगदलपुर छत्तीसगढ़ )

Kotumsar Gufa Kanker Ghati National Park Jagdalpur - Chhattisgarh 


Kotumsar Cave
रहस्यों की धरती- कुटुमसर गुफा (जगदलपुर) बस्तर
कांगेर घाटि मे स्थित है। एक खौफनाक गुफा जिसे गोपंसर गुफा (कुटुमसर गुफा) कहा जाता है। साक्षो कि मानो तो इस गुफा में आदि मानव निवास करते थे एक शोध मे यह साबित भी हो गया है कि करोडो वर्ष पुर्व प्रागैतिहासिक काल मे इन्ही गुफा मे मनुष्य रहा करते थे। वैज्ञानीको का मानना है कि करोडो वर्ष पहले यह स्थान जल मग्न हुवा करता था । पानी के बहाव के चलते इस गुफा का निर्मान हुवा था।

Kotumsar Gufa Jagdalpur
Kotumsar Gufa Jagdalpur 


कुटुमसर गुफा छत्तीसगढ़

इस गुफा में  भीषण अधेरा छाया हुवा रहता है।गुफा मे प्रवेश के पश्चात एैसा मालुम पडता है कि रात हो चुकि है। टार्च व अन्य उपकरण की सहायता से इसके अंदर के भव्य नजारो को देखा जाता है। यह गुफा काफी विशाल है,गुफा का जो आकार है। वह सर्प के आकार के समान प्रतित होती है। गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से कई कक्ष बने हुऐ है।जिसकी लम्बाई लगभग 21 से 72 मीटर तक चौडाई मापी गयी है। इसके अंदर के कुछ स्थान को बंद करके रखा गया है। जिसमे कई अन्य रास्ते व कक्ष मिलने की संभावना बताई जा रही है। इस कुटुमसर गुफा को विश्व कि दूसरी सबसे  बडी गुफा के रूप मे जाना जाता है। इस गुफा की तुलना अमेरिका कें ("कर्ल्सवार आफ केंव गुफा") सें तुलना की गई है। 

कुटुमसर गुफा  का अंधी मछली 

Blind fish Kotumasar Gufa
अंधी मछली - कोटमसर गुफा 

गुफा के अंदर छोटे - छोटे तालाब है। व गुफा के अंदर छोटी नदि भी बहती रहती है। इस गुफा मे अनोखी मछली जो दूनिया मे कही भी न हो वह मछली पायी जाती है जिसे अंधी मछली कहा जाता है जिसका वैज्ञानिक नाम कप्पी ओला शंकराई नाम दिया गया है। गुुुुफा के अंदर पुर्ण अंधकार है जिस कारण, सुर्य कि किरण का पहुचना असंभव है। सदियो से अधेरे मे रहने के कारण आखो कि उपयोगिता खत्म हो गयी व मछली जन्म से ही अंधी पैदा होती है जिस कारण इसे अंधी मछली कहा गया है।

Kotumasar cave in Bastar
Kutumasar cave

Kotumasar cave Kanker Ghati

Kotumasar gufa Kanker Ghati National Park
Kutumasar cave

Kutumasar Chhattisgarh

Kotumsar cave was initially named Gopansar cave


कुटुमसर गुफा का इतिहास
इस गुफा कि खोज स्थानीय आदिवासीयो के द्वारा सन 1900 के आस पास खोजा  गया था। कुटुमसर गुफा को सन 1951 मे प्रसिद्ध जाने माने जियोग्राफर ङा शंकर तिवारी द्वारा स्थानिय निवासीयो व कुछ पुरातात्वीक विभाग के टिम के द्वारा पहली बार इसका सर्वे किया गया था। श्री तिवारी के अपार सहयोग के चलते यह गुफा पूर्ण रूप से प्रकाश मे आया। इसलीये इस गुफा का खोज का श्रेय ङा शंकर तिवारी को माना गया है।


कुटुमसर गुफा की विशेषता

यह कुटुमसर गुफा जमीन से लगभग 54 फिट नीचे है। इसका प्रवेश द्वार काफी सकरा है। मगर अंदर पहुचते हि एक अलग दुनिया मालूम पडती है।पुरातत्वीक विभाग के द्वारा लोहे कि सीडियो की व्यवस्था कि गयी है। गुफा कि लम्बाई 4500 मीटर है। गुफा के अंदर चुना पत्थर के रिसाव व कार्बनडाईक्साइट तथा पानी कि रसायनिक क्रिया से सतह से लेकर इसकी छतो तक कई प्राकृतिक संरचनाये अंदर देखने को मिलती है। जिसे स्टैलेग्टाइट,स्टेलेगमाइट व ड्रिपस्टोन कि जैसी संरचनाये देखने को मिलती है।

छत पर लटकते झूमर स्टलेगटाईट व जमीन से उपर कि तरफ जाते स्तंभ स्टेलेगमाइट व छत से जमीन से मिले बडे आकार के स्तंभ ड्रिपस्टोन कहलाते है।

गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से एक शिवलीग विद्यमान है। जिसकी पुजा स्थानिय लोग सदियो से करते आ रहे है।स्थानिय लोगो कि मान्यता है कि भगवान राम वनवास काल के दौरान इस गुफा में आये थे |   

lord shiva of kutumsar gufa

कुटुमसर गुफा
कुटुमसर गुफा जगदलपुर छत्तीसगढ़ 
गुफा मे आने का उपयुक्त समय :-
गुफा घने जगल व पहाडीयो से घिरा हुवा है। जो कि कुटुमसर नामक ग्राम के समीप स्थीत है। रास्ते खतरो से भरी पढी हुई है।क्योकि कुछ स्थान बहुत उची है व नीचे खाई है। 11 किलोमीटर दूरी होने के कारण व जगली जानवर के खतरो को देखते हूवे प्रसाशन के द्वारा जिप्सी कि व्यवसथा कि गयी है। वर्षा के दिनो मे इस गुफा में छोटी - छोटी नदिया बहती रहती है। जिस कारण इसमे प्रवेश वर्जित रहता है। भ्रमन के लिये उपयुक्त समय नवम्बर से लेकर मई तक रहता बाकि दिनो मे गुफा बंद रहता है। गुफा के अंदर वायु कि कमी के चलते घूटन व गर्मी का अहसास होता है। पर्यटको को अपने साथ तेज प्रकाश वाली लाईट अपने साथ लेके आना चाहिये। इसके पश्चात तिरथगढ के मनोरम झरने का आनंद उठाना चहिये कुटुमसर गुफा जगदलपुर से 40 कि.मी. की दुरी पर हैं काकेंर घाटी में स्थित हैं।

Sunday, January 6, 2019

Battisa Temple Barsur ( बत्तीसा मंदिर बारसूर )

Barsur-Battisa Mandir,Tehsil-Dantewada ,District-Dantewada(Chhattisgarh)

Battisa Mandir Barsur
Battisa Mandir Barsur



छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल
बत्तीसा मंदिर बारसूर - दन्तेवाड़ा 
यह प्राचीन स्मारक बारसूर नामक ऐतिहासिक स्थल में जो जगदलपुर से भोपालपटनम रोड पर स्थित गीदम से 18 कि.मी।.दूर एवं जगदलपुर से 100 की. मी. की दुरी पर स्थित है| यहाँ पर बत्तीसा मंदिर नामक महत्वपूर्ण मंदिर विद्यमान है। जिसमे बत्तीस स्तंभों पर आधारित बड़ा मण्डप है जो दो मंदिरो से सम्बन्ध है।

Battisa mandir
बत्तीसा मंदिर - बारसुर 
बारसूर बत्तीसा मंदिर

इसके गर्भगृह में द्वितल वाली वर्गाकार ऊँची काले पत्थर की बनी ओपयुक्त जलाधारी पर शिवलिंग प्रतिस्थापित है। मंडप में शिवलिंग की ओर मुख किये हुवे नंदी बैठा हुवा है।

Barsur Battisa Shiva Mandir.Dantewada

 
cg temple
जुड़वाँ मंदिर -बारसूर 

ये भी पढ़े :-

नंदी की प्रतिमा बहुत सुन्दर एवं सजीव प्रतीत होती है। इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। 

Shiv Temple Barsur in Chhattisgarh


बत्तीसा मंदिर का निर्माण काल 11 -12 वी शती ईस्वी में 'छिन्दक 'नागवंशी राजाओ के राजत्वकाल में हुवा है। इस मंदिर दो गर्भगृह वाले प्राचीन (जोड़ा मंदिरो ) का सुन्दर नमूना है। ऐसे मंदिर अधिकांशत :महाराष्ट्र एवं आंध्रप्रदेश में प्राप्त हुवे है। बारसूर स्थित मामा - भांजा मंदिर ,गणेश मंदिर एवं चन्द्रादित्य मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित दर्शनीय स्मारक है।

इस  मंदिर की सभी तस्वीर  गिरीश कुमार श्रीवास (gIrIsh kumAr shrIvAs)के द्वारा ली गयी  है | 

Dantewada tourism

टिप :-इस मंदिर की मान्यता है की नंदी के कानो में माँगी  गयी मुरादे स्वयं  भगवान शिव  भक्तो की इच्छा पूरी करती है|

Ganesh Temple Barsur (गणेश मंदिर बारसुर )

Barsur - Ganesh Temple In Chhattisgarh गणेश मंदिर - बारसुर 



chhattisgarh ke dharmik sthal
Ganesh Temple Barsur
बारसूर शब्द की उत्पत्ति बालसूरी शब्द से मानी जाती है, बालसूरी कालान्तर में बारसूरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्राचीन युग में यह नगरी बेहद समृध्द व वैभवशाली नगरी थी, बारसूर के चारों दिशाओं में यहाँ के शासकों के द्वारा 10-10मील दूर तक कई मंदिर और तालाब बनवाये जिस कारण ईसे मंदिरो और तालाबो कि नगरी भी कहा जाता था, जीसमेें से कुछ आज भी मौजूद हैं, 
छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल
शिवलिंग -बारसुर 

Dantewada Tourism

Battisa Shiv Temple Barsur

पौराणिक कथा के अनुसार दैत्येन्द्र बालासूर की पुत्री उषा और उनके मंत्री कुमांद की पुत्री चित्रलेखा के बीच घनिष्ठ मित्रता थी, भगवान गणेश इन दोनों के ही आराध्य देव थे, इनकी भक्ति देख बानासुर ने एक भव्य मंदिर का निर्मान करवाया जिसमे भगवान गणेश की दो प्रतिमाएं यहाँ एक ही स्थान पर स्थापित करवाईं, दोनों ही सखियां नित्य इनकी पूजा-अर्चना किया करती थी, भगवान श्री गणेश की ये दोनों प्रतिमाएं एकदन्ती हैं, बड़ी प्रतिमा की ऊँचाई 7 फीट है, जबकि छोटी प्रतिमा साढ़े पाँच फीट की है। स्थापना के समय से ही इन प्रतिमाओं का संरक्षण शासक करते आ रहे। मंदिर परिसर में प्राचीन शिव मंदिर मामा भाॅजा मंदिर बत्तीसा मंदिर चॅन्द्रादित्य मंदिर के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं।


Sunday, May 6, 2018

Mama Bhanja Mandir Barsur (मामा भांजा मंदिर बारसूर - दंतेवाडा- छत्तीसगढ़ )


Mama Bhanja Temple History
दंतेवाडा जिले में वैसे तो अनेक प्राचीन पुरातात्विक दार्शनिक स्थलो  से भरा पड़ा है| 
मगर हम आज बारसूर ग्राम के मामा भांजा मंदिर कि बात करते है| यह मदिर काफी सुन्दर व अधभुद है| मगर ठीक से रखरखाव ना होने के कारण जर्जर अवस्था में है फिर भी आस पास के मदिर कि तुलना में यह मदिर ठीक है| 

Mama Bhanja Temple In Chhattisgarh
मामा भांजा मंदिर बारसूर 

इसका श्रेय भारत के पुरातात्विक विभाग को जाता है जिसके वजह से आज वर्तमान पीढ़ी इस प्राचीन मंदिर के दर्शन कर लाभ ले रहे है|
इस मामा भांजा मंदिर को बनाने में विशेष प्रकार के बलुई पत्थरो का प्रयोग किया गया है | छत्तीसगढ़ के अधिकतर मंदिर जैसे खल्लारी का नारायण मंदिर फिंगेश्वर का फनिकेश्वर नाथ मंदिर भोरमदेव मंदिर ,जांजगीर का विष्णु मंदिर आदि मंदिर  कि बनावट एक ही प्रकार के नजर आती है| यह मंदिर काफी उची है| इस मंदिर कि दीवारों पर कलात्मन शैल चित्रों को उकेरा गया है| जो उस समय कि अधभुद कलाकारी को आज भी दर्शाता है| मंदिर के शीर्ष के थोड़े निचे अगल – बगल में दो शिल्पकार मामा व भांजा कि मुर्तिया है| इस मंदिर परिसर पर अन्य मंदिरे भी है सभी अब भग्न अवस्था में है| शेष में देखे तो  दो प्राचीन गणेश प्रतिमा ही बची हुई है|

बारसूर के अन्य मंदिर के लिये यहाँ क्लीक करे


वैसे यह मामा भांजा मदिर मुख्य रूप से शिव मंदिर है| मगर इस मंदिर के नाम करण के पीछे अजब गजब कथा किद्वंती सुनने को मिलती है| स्थानीय निवासियों व कुछ इतिहास कारो के अनुसार यह बताया जाता है कि उस समय का तात्कालिक राजा परम शिव भक्त हुवा करता था तथा शिव के प्रति अपनी सच्ची आस्था स्वरुप व भगवान को प्रसन्न करने व लोक कल्याण के लिए एक ऐसा नायाब शिव मंदिर निर्माण करवाने का का स्वप्न देखा जिसे महज एक दिन में निर्माण किया जाये जिससे राजा का यश कीर्ति चारो दिशा में फैले साथ ही उसके कुल का नाम हो अपनी इसी अधूरी इच्छा को पूरी करने के लिए अपने राज्य के दो प्रसिद्ध शिल्पकार को बुलाया (स्थानीय निवासियों के अनुसार वह  शिल्पी कार कोई आम मानव नहीं थे वह कोई देवलोक से भेजे गए कोई देव थे अथवा यक्ष गंधर्व थे| कुछ लोक तो दोनो को देव शिल्पी विश्वकर्मा के वंशज बताते है| मगर इन सबका कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है| )


Barsur In Chhattisgar
मामा भांजा मंदिर बारसूर - दंतेवाडा

और राजा ने आदेश दिया एक शिव मंदिर का निर्माण किया जाये जिसे केवल एक ही दिन में पूर्ण किया जाने कि शर्त रखी | तब दोनों शिल्पकार राज्य आज्ञा स्वरुप अपनी ऐसे कारीगरी दिखाई जो आज के वर्तमान युग के लिए किसी स्वप्न से कम नहीं है| उन दोनों ने महज एक ही दिन में भव्य मंदिर का निर्माण कर दिया जो किसी चमत्कार से कम नहीं था|  {सोचनीय विषय यह है कि उस समय कोई आज कि तरह साधन नहीं हुवा करता था मगर उन लोगो ने कैसे इतने मोटे मोटे चट्टानों को इतनी उचाई पर कैसे पहुचाया कैसे चट्टानों को खोदकर नक्कासी किया कैसे उसके पत्थरो के जोड़ का पता नहीं चलता है | शायद उस समय कोई विद्या जानते थे या सिद्धि प्राप्त किये रहे होंगे जिससे चट्टानों को हवा में तैराया जाता रहा होगा यह सभ अधभुद कारनामे भारत में ही नहीं अन्य देशो में भी देखा जा सकता है|}

Dantewada Chhattisgarh


मंदिर पूर्ण होने के पश्चात राजा ने यहाँ शिवलिंग व गणेश कि प्रतिमा का स्थापना कि तब राजा ने उन शिल्पकारो को बुलाकर उनका आभार व्यक्त किया और उनका मेहनताना दिया और बोला कि यह मंदिर आज से तुम दोने मामा भांजा के नाम से जाना जायेगा तब से लेकर आज तक उस मंदिर को मामा भांजा के नाम से जाना जाता है|   
    
टिप :- इस लेख के माध्यम से हम मंदिर से जुडी कुछ जानकारी आपके सामने रख रहे है हमारा उद्येश किसी धार्मिक कथा व इतिहास को छेड़छाड़ करना नहीं है अपितु अपनी बात आपके सामने रखना है | यदि आपके कुछ  सुछाव है| निचे दिए गए कमेंट बाक्स पर अपनी राय जरुर दे| आपके सुझाव ही हमें सुधार हेतु प्रेरित करेंगे| 

प्रस्तुती - cgdekho1.blogspot.com
फोटो   - गिरिश कुमार श्रीवास