Saturday, March 21, 2020

Shivrinarayan Mandir Chhattisgarh ( शिवरीनारायण मंदिर ,जांजगीर चांपा -छत्तीसगढ़ )

Shivrinarayan Temple history in Hindi
छत्तीसगढ़ में एक ऐसा प्राचीन तीर्थ स्थल है|जिसका संबंध रामायण काल से जुड़ी हुई है।रामायण काल के कई रहस्य इस क्षेत्र में छुपी हुई है।जिसे आदिकाल से ही पुरषोत्तम तीर्थ , एवम् छत्तीसगढ़ का जगन्नाथ पूरी भी कहा जाता है।
Shivrinarayan Mandir shivrinarayan
शिवरीनारायण मंदिर
इस तीर्थ की पूजा गुप्त प्रयाग के रूप में कि जाती आ रही है| जिसकी ख्यति दूर-दूर तक फैली हुई है| जिसे शबरीनारायण धाम के रूप में पूजा जाता है|त्रिवेणी संगम पर स्थित होने के कारण इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है| संत मेले के दौरान इसमें शाही स्नान करते है।प्रतिदिन इस त्रीवेनी संगम पर 101बत्ती से सजी दीप से गंगा आरती कि जाती है|तथा भक्त जन त्रिवेणी संगम होने के कारण श्राद्ध तर्पण का कार्य करते है। 
shivrinarayan-temple
Sheorinarayan Temple
Sheorinarayan Temple Janjgir-Champa - Chhattisgarh
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार भगवान राम का वनवास काल के दौरान, इस दण्डकारक क्षेत्र में ,माता शबरी से मुलाकात हुई , जहा पर भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर ,प्रेम सहित ग्रहण किये।जिस कारण इस क्षेत्र का नाम शबरी – नारायण पड़ा जिसे कालांतर में शिवरीनारायण के नाम से जाना जाता है| 
Narayan Mandir Shivrinarayan
शिवरीनारायण मंदिर ,जांजगीर चांपा -छत्तीसगढ़
ऐतिहासिकता (Historicity)
भक्त माता शबरी के पिता का नाम ,राजा शबर था| वह इस क्षेत्र के प्रभावी राजा थे| माता शबरी जन्म से ही परम विष्णु भक्त थी| राजा शबर ,शबरी का विवाह करवाना चाहते थे| परन्तु शबरी को विवाह करना पसंद नहीं था| जिस कारण वह एक दिन अपने घर का परित्याग करके, भगवान कि खोज में वन कि ओर निकल पड़ती है| उन्ही दिनों वह पम्पा नामक एक सरोवर के पास पहुचती है| जहा पर उसे एक आश्रम दिखाई पड़ता है|वह आश्रम मतंग मुनि का आश्रम था।माता शबरी उस आश्रम में जाकर | मतंग ऋषि से शरण मागती है | ऋषि ने अपने दिव्य दृष्टी से सबरी को विष्णु भक्त जानकर उसे अपने आश्रम से शरण देती है| ऋषि ने शबरी को अपनी शिष्या बनाया ,और शिक्षा दीक्षा देना प्रारंभ किया| और भक्ति मार्ग का रास्ता प्रसस्त किया | मतंग ऋषि कि गुरुकुल कि ख्यति दूर दूर तक फैली हई थी| 
Shabri Mata Temple
शबरी माता मंदिर खरौद
भगवान श्री राम वनवास काल के दौरान जब चित्रकूट में निवास कर रहे थे| उसी दौरान मतंग ऋषि ने अपना देह का त्याग किया, मरनोउपरान्त आश्रम कि सारी जिम्मेदारी शबरी को सौपी ,क्युकी शबरी परम तेजस्वी, विदुषी,और वैष्णव भक्ति मार्ग पर चलने वाली आचार्य थी| 
shabri mata temple shivrinarayan

ऋषि ने मृत्यु उपरांत गूढ़ रहस्य शबरी को बताते हुवे कहते है कि भगवान विष्णु का अवतार, मानव रूप में अयोध्या में दशरथ के पुत्र, श्री राम के रूप में हुवे है| उनके वनवास काल के दौरान इस आश्रम में आएगे ,तुम उनकी बड़ी श्रधा भाव से सेवा सत्कार करना जिससे तुम्हारा कल्याण होगा और मोक्ष कि प्राप्ति होगी एवं इस आश्रम का नाम लोग युगों युगों तक याद रखेंगे| ऐसा कहकर वह अपना प्राण त्याग देती है| 
शिवरीनारायण मंदिर

गुरु के आज्ञा अनुसार शबरी इस आश्रम का संचालन करती है|तथा प्रत्येक दिन भगवान के आने कि बाठ देखते रहती, आश्रम से रास्ते तक चुन -चुन के फूल सजाया करती थी| व भोग लगाने के लिए मीठे -मीठे फल कि व्यवस्था करती थी| ऐशा करते कई वर्ष बित चुके थे| माता नित- नित बूढी होती जा रही थी, मगर उसको विश्वास था कि,गुरु ने कहा है। तो, एकदिन भगवान इस आश्रम में जरुर आयेंगे ,आश्रम के कुछ शिष्य शबरी का उपहास किया करती थे| धीरे -धीरे एक-एक करके सभी शिष्य आश्रम छोड़कर चले जाते है| 
shivrinarayan tourist places

कई वर्ष उपरांत, आखिर वह घडी आ गयी जब भगवान राम माता सीता कि खोज में वन वन भटकते हुवे साधारण मानव के रूप में माता शबरी के आश्रम में आते है | भगवान को अपने सम्मुख देखकर शबरी आत्म विभोर हो जाती है| उन्हें अपनी बूढी आखो पर विश्वास नहीं होता कि प्रभु उनके सम्मुख खड़े है| माता शबरी एक परम तपस्वनी थी उसने अपने योग 
भगवान राम के चरण कमल 

शक्ति के द्वारा प्रभू को पहचान लेती है| तथा दण्डवत चरणों में गिरकर लिपट जाती है|आसुवो कि धारा बहने लगती है| भगवान माता कि इस करुना भरी प्रेम से आत्म विभोर हो जाते है| 
माता शबरी

माता शबरी भगवान राम को उचे आशन में बैठाती है| भगवान के आने कि ख़ुशी में शबरी अपनी शुध-बुध खो देती है| और भगवान का स्वागत सत्कार करने मे लग जाती है।भगवान को भूख लगी होगी कहके फल खिलाने को लाती है|मगर संजोग वस् उस समय मात्र बेर का ही फल उसके पास रहती है ,उसी को ही भगवान को खाने को देती है| 
chhattisgarh shabri mata mandir shivrinarayan

तभी अचानक विचार करती है कि कही ये बेर खट्टे ना हो और सहज भाव से मीठे बेर चयन करने के उद्देश्य से बेर को चख चख कर मीठे- मीठे बेर प्रभु को अपने हातो से खिलाती है| प्रभु उसके निश्छल प्रेम भाव से दिए फल ग्रहण कर आत्म विभोर हो जाते है, और आखो से अश्रु कि धारा निकलने लगती है| प्रेम भक्ति का श्रेष्ट उदहारण शबरी के इस प्रसंग को माना जाता है| 
प्राचीन विष्णु मूर्ति शिवरीनारायण

भगवान राम ने माता को आशीर्वाद स्वरुप नवधा ( नव प्रकार कि भक्ति मार्ग )सबरी को प्रदान करती है|, ये नव प्रकार कि भक्ति मोक्ष का मार्ग प्रसस्त करती है| शबरी ये ज्ञान पाकर धन्य हो जाती है| 
शिवरीनारायण

आश्रम से प्रस्थान करते वक्त भगवान श्री राम के द्वारा शबरी से सीता जी के बारे में पूछती है|तब सबरी श्री राम को पम्पा सरोवर जाने को कहती है| जहा पर उसकी मित्रता सुग्रीव से होगी और माता सीता कि खोज में सहायता करेगी ऐसा बोलकर भगवान के चरणों में गिरकर बार बार प्रणाम कर ,योग अग्नि के द्वार अपनी देह का त्याग कर देती है| राम उनको परम गति प्रदान करते है| 
Shivrinarayan Mandir Shivrinarayan

जिस कारण इस क्षेत्र को माता शबरी की कर्म भूमि कहा जाता है।जिस कारण शिवरीनारायण धाम का माहत्म्य और बढ़ जाता है| आज भी छत्तीसगढ़ में शर्वर अथवा शबर जनजाति के लोग रहते है| जो माता शबरी को अपना वंशज मानते है| और उसकी पूजा अर्चना करते है| इसी आस्था स्वरुप इस क्षेत्र में अनेक मंदिर का निर्माण कराया गया है| 
शिवरीनारायण के प्रमुख मंदिर निम्न है।
नर नारायण मंदिर शिवरीनारायण(Nar Narayan Temple Sheorinarayan)
लगभग 12 सदी ईसवी में निर्मित इस प्राचीन मंदिर का निर्माण राजा शबर के द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर में एक कुंड है
Lord narayan Shivrinarayan
भगवान नर नारायण शिवरीनारायण
जिसे रोहाणी कुंड कहा जाता है|जो जमीन से ऊपर है। जिसमें हमेशा जल भरा रहता है,और भगवान राम के चरण उसमे डूबे रहते है।इस जल को अक्षय जल कहा जाता है। भगवान की इस दिव्य स्वरूप के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर काफी भव्य है| मंदिर का शिखर काफी उची है| मंदिर के अन्दर महीन से महीन नक्काशी किया गया है| मंदिर के मंडप के बायीं ओर भगवान लक्ष्मीनारायण कि एक प्राचीन प्रतिमा रखी गयी जो खुदाई से प्राप्त हुआ है| मूर्ति के चारो ओर विष्णु के दशावतार का सूक्ष्म चित्रांकन किया गया है| प्रवेश द्वार पर दण्ड ,चवर लिए विष्णु के द्वारपाल ,विष्णु के पार्षद शंख पुष्प लिए चक्रपुरुष खड़े है| यहाँ पर गंगा जमुना सरस्वती एवं प्रवेश द्वार पर लघु गणेश कि प्रतिमा उकेरी गयी है| 
केशव नारायण मंदिर (keshav narayan temple Shivrinarayan)

keshav narayan Mandir Shivrinarayan
keshav narayan temple Sheorinarayan
बारहवी शताब्दी में निर्मित ,यह मंदिर ,नर नारायण मंदिर के ठीक सामने है| गर्भ गृह में भगवान विष्णु कि भव्य प्रतिमा विराजमान है| भगवान के पैर के पास जिस स्त्री का चित्रांकन किया गया है| वह भक्त माता शबरी कि प्रतिमा है| 
चन्द्रचूड महादेव मंदिर (Chandrachud Mahadev Temple)


Chandrachud Mahadev Mandir
Chandrachud Mahadev Temple
श्री नर नारायण मंदिर के निकट शिव जी का प्राचीन मंदिर है|जिसे चन्द्रचुड महादेव कहा जाता है| इस मंदिर के अन्दर अनेक मुर्तिया विद्यमान है| साथ ही कलचुरी कालीन शिलालेख भी प्राप्त किया गया है| 
मंदिर के प्रांगन में भगवान के चरण चिन्ह है| और एक प्राचीन कुवा है | कुछ मंदिर देखरेख के आभाव में द्वस्त होते जा रहे है| मंदिर का आस पास का क्षेत्र अतिक्रमण का शिकार हो गया है| 
जगन्नाथ मंदिर शिवरीनारायण (jagannath Temple Shivrinarayan)

janjgir champa tourist places

इस मंदिर का निर्माण सन 1927 में मुख्य मंदिर के कुछ कदम कि दुरी पर पूरी के जगन्नाथ मंदिर के सामान बनाया गया है| यहा पर रथ यात्रा बढ़ी ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है| जिसमे भगवान का रथ खीचने के लिए लोग दूर- दूर से आते है| इसे भगवान जगन्नाथ का मूल निवास माना गया है| 
मंदिर प्रांगन में अनोखा वट वृक्ष (Unique tree Shivrinarayan)


Vat tree Shivnarayan
Vat tree Shivnarayan
इस वट वृक्ष कि खासियत यह है कि, इसकी जो पत्ते है वो दोने के सामान आक्रति वाले होते है| जनश्रुति कि माने तो, माता सबरी ने इसी पेड़ के पत्ते तोड़कर दोने का निर्माण कर भगवान राम को “<बेर फल”> खिलाया था| तब से इस पेड़ के पत्ते दोने के आकर के होते है| ऐसा पेड़ पूरी दुनिया में कही और देखने को नहीं मिलेगा| लोग इस वृक्ष कि बड़ी ही आदर भाव से पूजा अर्चना करते है|व माता शबरी का उनकी बीच होने का अनुभव महसूस करते है| इस पेड़ को कृष्णवट, माखन कटोरी वृक्ष के नाम से संबोधित करते है| वृक्ष के बगल में एक मंदिर में गुरुवो कि चरण पादुका को बड़े ही आदर भाव से रखा गाया ही |भक्त इसकी पूजा करते है| मंदिर प्रांगन में माता शबरी का भगवान को बेर खीलाते हुवे निर्माधिन प्रतिमा का निर्माण करवाया गया है| 



शिवरीनारायण से ३ किलोमीटर कि दुरी पर खरौद नामक ग्राम में शबरी माता का मंदिर विद्यमान है| यह मंदिर सिरपुर के लक्ष्मन मंदिर के सामान इटो से बनाया गया है ,जो राज्य सरकार द्वारा संरक्षित मंदिर है| यही पर लक्ष्मनेश्वर महादेव मंदिर है| साथ ही प्राचीन इंदल (इंद्र देव )का मंदिर है| जो देखने लायक स्थल है | 
शिवरीनारायण का भव्य मेला (Grand fair of shivarinarayan)
मंदिर परिसर पर हर वर्ष महाशिवरात्रि और माघ पूर्णिमा को भव्य मेले का आयोजन किया जाता है|जिसमे लाखो कि संख्या में जन सैलाब उमड़ता है| यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध माघी मेला माना जाता है| 


कैसे पहुचे: –राजधानी रायपुर से इसकी दुरी 178 कि .मी .है | व बिलासपुर से इसकी दुरी 60 किलोमीटर है| रास्ते पक्की बनी हुई है| आस पास के सहरो से मोटर बस भी चलती रहती है| शबरी नारायण में ठहरने के लिए कई धर्मशाला बनी हुई है| व प्रतिदिन निशुल्क भंडारे का आयोजन किया जाता है|इस मंदिर समिति द्वारा गौशाला का संचालन किया जाता है,और इसकी खासियत यहा है, कि किसी भी गाय का दूध नहीं निकाला जाता है| शबरीनारायण से कुछ दुरी पर हनुमान जी का मंदिर है| उस स्थान को जनक पुर कहते है| नदी कि उस पार वट वृक्ष है जिसे विश्राम वट (विधौरी )के नाम से जाना जाता है| इस वृक्ष के निचे भगवान के चरण पादुका रखी गई है| यही भगवान राम ने विश्राम किया उसके पश्चात इस आश्रम में प्रवेश किया|
इनके  भी जरूर दर्शन करे :-

Wednesday, March 18, 2020

चम्पारण श्री चंपेश्वर नाथ मंदिर व वल्लभाचार्य बैठकी जिला रायपुर (CHAMPARAN SHIR CHAMPESHWAR NATH MANDIR RAIPUR)

वैष्णव समुदाय के प्रमुख आस्था का केंद्र है चंपारण.....

श्री चम्पेश्वरनाथ मन्दिर ग्राम चम्पारण मे स्थित है महासमुन्द जिला से इसकि दुरी लगभग 25 कि.मी. कि है वहीं रायपुर जिला से राजीम होते हुए इसकि दुरी लगभग 55 कि.मी. है। चंपारण रायपुर जिला अंतर्गत आता है 
champaran mahaprabhuji mandir
श्री महाप्रभुजी  वल्लभचार्य प्राकट्य बैठकजी  मंदिर
यहाँ चंपेश्वर महादेव मंदिर व श्री महाप्रभु वल्लभचार्य बैठक विशेष आकर्षण का केंद्र है। यहाँ जाने के लिए रायपुर से नियमित बसें चलती है साथ ही रायपुर ही निकटतम रेल्वे स्टेशन भी है। चम्पारण का एक और भी नाम चांपाझर भी है, छत्तिसगढ़ के पर्यटन स्थलों कि बात आये और चम्पारण का जिक्र ना हो ऐसा संभव हि नहीं है। 
Mahaprabhuji Pragatya Sthal Champaran
श्री महाप्रभु जी 
चम्पारण हर तरह कि खुबियाँ समेटे हुये है चाहे वह प्राकृतिक सौन्दर्य़ कि बात हो या मानवनिर्मित कलाकृतियों कि और तो और मन्दिर ट्रस्ट के लोगों कि सेवा भावना भी काबिले तारिफ है। मन्दिर से जुडि कई प्राचिन कथाएँ है जिनमे श्री वल्लभ जी के जन्म कि कथा बहुप्रचलित है ।
श्री वल्लभ जी की प्रतिमा 
महाप्रभु वल्लभ जी के जन्म कि कथा कुछ इस प्रकार प्रचलित है :-
14वी. – 15वी. सदी कि बात है, दक्षिण भारत के आन्ध्रप्रदेश मे कृष्णा नदी बहति थी इस नदी के किनारे कांकरपादु नामक सुन्दर गांव बसा हुआ था। इस गांव मे यज्ञनारायण भट्ट नामक एक ब्राम्हण निवास करते थे।
महाप्रभु जी 
एक बार यज्ञनारायण भट्ट यज्ञ कर रहे थे तभी वहाँ विष्णुमुनि जी का आगमन हुआ यज्ञनारायण द्वारा मुक्ति का मार्ग पुछ्ने पर मुनि ने उन्हे गोपाल नाम मंत्र दिया यज्ञनारायण भट्ट ने अपने जीवनकाल मे 32 सोमयज्ञ पुरे किये, एक बार यज्ञनारायण वृद्धावस्था मे यज्ञ कर रहे थे तभी उन्होने यज्ञ कुण्ड में श्रीफल कि आहुति दी उसी समय यज्ञ मे से साक्षात भगवान विष्णु प्रकट हुए उन्होने यज्ञनारायण से कहा कि जब तुम्हारे कुल मे 100 सोमयज्ञ पुरे हो जायेंगे तब मै तुम्हारे कुल में स्वयं वैष्णव रुप मे जन्म लुंगा। यज्ञनारायण भट्ट के एक पुत्र ग़ंगाधर भट्ट हुए उन्होने 28 सोमयज्ञ पुरे किये। गंगाधर के पुत्र गणपति भट्ट हुए उन्होने 30 सोमयज्ञ पुरे किये। गणपति भट्ट के पुत्र वल्लभ भट्ट हुए जिन्हे बालम भट्ट के नाम से भी पुकारा जाता था, इन्होने 5 सोमयज्ञ पुरे किये। 
वल्लभ जी की प्रतिमा - मंदिर परिसर 
वल्लभ भट्ट के दो पुत्र लक्ष्मण भट्ट और जनार्दन भट्ट हुए। लक्ष्मण भट्ट का विवाह विध्यानगर के राजपुरोहित सुशर्मा कि दो बेटियों खल्लामागारु और इल्लामागारु के साथ हुआ। कांकरपादु गाँव नष्ट हो ज़ाने के कारण लक्ष्मण भट्ट अपनी दोनो पत्नियों के साथ अग्रहार नगर कि ओर निकल पडे। लक्ष्मण भट्ट के यहाँ पुत्र रामकृष्ण और पुत्रियाँ सुभद्रा और सरस्वती का जन्म हुआ। इसके बाद लक्ष्मण भट्ट ने 5 सोमयज्ञ पुरे किये और इसी तरह 100 सोमयज्ञ भी पुरे हो गये उसी समय भविष्यवाणी हुई “आपके कुल मे 100 सोमयज्ञ पुरे हुए आपके कुल मे स्वयं पुरुषोत्तम पुत्र रुप में जन्म लेंगे ”। 100 सोमयज्ञ पुरे होने पर लक्ष्मण भट्ट ने वाराणसी में ब्राम्हण भोज कराया। सन 1479 की बात है वाराणसी मे मुगल सेना के आक्रमण के भय से लक्ष्मण भट्ट जी अपनी पत्नि इल्लामागारु को लेकर दक्षिण मे अपने यतंत कि ओर रवाना हुए, इल्लामागारु जी ने चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी की रात्री को रास्ते मे हि चम्पारण के घने जंगल् मे निश्चेतन बच्चे को जन्म दिया, इल्लामागुर जी ने बच्चे को मृत मानकर समी के पेड के निचे सुखे पत्तों में ढंककर छोड दिया। 
मंदिर का भव्य सजावट 
लक्ष्मण भट्ट और इल्लामागारु चम्पारण के जंगलों मे रात के अन्धेरे में रास्ता ढुंढते ढुंढते पास के चौडानगर जा पहुचे, दोनों चौडानगर कि एक धर्मशाला में रात व्यतित करते रहे। रात को स्वप्न मे भगवान विष्णु ने भट्ट को कहा के मैनें तुम्हारे पुत्र के रुप में चम्पारण के जंगलो में जन्म लिया है मुझे ले जाओ, जब लक्ष्मण भट्ट और इल्लामागारु उस स्थान पर पहुचे तो उन्होने देखा कि उन्होने जिस पुत्र को मृत समझकर छोड दिया था वह तो जिवित है। इस प्रकार “1479 की चैत्र मास कृष्ण पक्ष की एकादशी की रात्री को जन्मे इस बालक का नाम वल्लभ” रखा गया, इस दिन को श्री वल्लभ जयंती के रूप मे मनाया जाता है आगे चलकर श्री वल्लभ वैष्णव समुदाय के महान ज्ञाता और मार्गदर्शक बने।
मंदिर परिसर 
विशेष :-
महाप्रभु वल्लभाचार्य ने सम्पूर्ण भारत की 3 बार पैदल यात्राएं की और कुछ स्थानो पर रुककर भागवत सप्ताह का पठन किया जिन स्थानो पर उन्होने भागवत पठन किया वहा उनकी बैठकिया है जिनमे से 2 बैठकिया चंपारण मे है पूरे भारत मे इस तरह के 84 बैठकिया है।...........
मुख्य द्वार 
इस प्रकार महाप्रभु वल्लभाचार्य जी कि जन्म स्थली होने से चम्पारण वैष्णव समुदाय के लोगों के लिये प्रमुख आस्था का केन्द्र है। यहाँ प्रभु वल्लभाचार्य जी की 2 बैठकी है। जो अत्यंत सुंदर और चारो ओर से विभिन्न कलाकृतियों से सुसज्जित है छतों और दीवारों पर विभिन्न सुंदर आकृतीया बनाई गई है। परिषर में प्रथम तल पर चित्र प्रदर्शनि शाला भी बनाया गया है जहाँ वल्लभ जी के सम्पुर्ण जीवन काल कि घटनाओं का सचित्र वर्णन किया गया है जहाँ लगभग 100 से भी अधिक चित्रों की प्रदर्शनि लगी है चित्रों का समायोजन यहा बहुत अच्छे ढंग से किया गया है सम्पुर्ण चित्रशाला का रंगरोगन व साज-सज्जा भी ध्यान आकर्षित करती है। जगह जगह आगन्तुको के विश्राम के लिए बैठने की व्यवस्था व विश्रामगृहो का निर्माण किया गया है। यहा यमुना घाट भी महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है साथ ही घाट के किनारे यमुना जी की मंदिर भी निर्मित है।
चम्पेश्वर नाथ महादेव मंदिर चम्पारण 

श्री चम्पेश्वरनाथ महादेव जी
यहाँ श्री चम्पेश्वरनाथ महादेव जी का भी मन्दिर है, इस मन्दिर मे गर्भवति महिलाओं का जाना वर्जित है साथ हि महिलाओं को यहाँ प्रवेश के पहले बाल खोल लेने कि भी सलाह दी जाती है अर्थात बाल बाँधकर अन्दर प्रवेश करना भी मना है। कहा जाता है की आज से 1250 वर्ष पहले चम्पारण सघन वन क्षेत्र था जहाँ लोगो का आना जाना संभव नहीं था तभी यहाँ भगवान त्रिमुर्ति शिव का अवतरण हुआ। लोगों का आवगमन ना होने से भगवान शिव ने एक गाय को अपना निमित्त बनाया यह गाय रोज अपना दुध त्रिमुर्ति शिव को पिलाकर चली जाती थी। जब ग्वाला दुध लेता था तब दुध नहि आता था इस बात से ग्वाले को सन्देह हुआ और उसने एक दिन गाय का पिछा किया तो देखा कि गाय अपना दुध शिवलिंग को पिला रही है, उसने यह बात राजा को बताई और इस तरह यह बात पुरे विश्व में फैल गई और दुर-दुर से लोग भगवान श्री त्रिमुर्ति शिव के दर्शन के लिए आने लगे। इसे त्रिमुर्ति शिव पुकारे जाने का भी एक कारण यह है की यह शिवलिंग तीन रुपों का प्रतिनिधित्व करता है उपरी हिस्सा गणपति का, मध्य भाग शिव का और निचला भाग माँ पार्वती का इस कारण इसे त्रिमुर्ति शिव के नाम से पुकारा जाता है।
श्री वल्लभ गौशाला 

गौशाला चम्पारण 
साथ ही यहाँ एक गौ शाला भी संचालित है, जहाँ बडी संख्या में गौ पालन किया जा रहा है। गायों के लिये यहाँ बहुत अच्छी व्यवस्था है, उनके स्वस्थ्य एवं खान-पान का भी यहाँ पुरा ध्यान रखा जाता इसका अन्दाजा यहाँ पल रहे हष्ट-पूष्ट गायों को देखकर हि लगाया जा सकता है। यहाँ गर्भवति गायों, नवजात बछडों, व बिमार गायों के लिये अलग-अलग रहने कि व्यवस्था कि गई है। साथ हि हर एक गाय के लिये अलग-अलग चारे व पानी का बन्दोबस्त है, गायों के लिए पर्याप्त पंखे लगे हुए है, यही नहीं यहाँ गायों का भोजन तैयार करने के लिये एक बडी रसोई भी है। मन्दिर ट्रस्ट के सेवादारों कि सेवाभावना की प्रत्यक्ष झलक यहाँ देखने को मिलती है ।

इन्हे भी पढे :-

पेड़ो को बिना काटे किये गए भवन निर्माण
एक और ध्यान आकर्षित करने वाली बात ये है कि पुरे चंपारण और निकटवर्ति गावों मे होलि के पहले दिन मनाया जाने वाला होलिका दहन उत्सव का आयोजन नहिं होता इसका मुख्य कारण यह है की यहाँ पेड़ो की कटाई करना वर्जित है किसी भी स्थिति मे पेड़ो की कटाई यहा पाप माना जाता है साथ ही ऐसे मान्यता यह भी है की पेड़ो की कटाई से यहा प्रकृतिक आपदा भी आ सकती है, इसका सबसे अच्छा उदाहरण आपको तब देखने को मिलेगा जब आप ये देखेंगे की मंदिर के निर्माण क्षेत्र मे कुछ पेड़ बीच बीच मे आए है पर उन्हे काटने के बजाय ऐसी व्यवस्था से निर्माण कार्य किया गया है की पेड़ भी काटना न पड़े और निर्माण भी न रुके....

हवेली मंदिर चम्पारण 
यहाँ माघ मास की पुर्णिमा में बड़ी संख्या मे लोग श्री च्ंपेश्वरनाथ महादेव के दर्शन के लिए आते है तब से महाशिवरात्री तक यहा लोगो की अच्छी भीड़ होती है इस दिन प्रतिवर्ष 30 से 50 हजार श्रद्धालु यहा आते है। साथ ही चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को यहा बड़े धूम-धाम से श्री वल्लभचार्य जयंती मनाया जाता है। सामान्य दिनो मे मंदिर का द्वार दर्शन के लिए सुबह 8 से 1 बजे तक व शाम 3 से 7 बजे तक ही खुला रहता है।

अन्य आकर्षण :-

यहाँ से लगभग 11 कि.मी. दूर टीला एनिकट है यह एनीकट महानदी पर बना है इसकी लंबाई लगभग 1300 मी. कि है इस एनिकट मे कुल 116 गेट है। यहाँ नदी के किनारे एक सुव्यवस्थित उद्यान है साथ ही 81 फिट ऊंचा हनुमान जी कि मूर्ति निर्मित है जो यहा का मुख्य आकर्षण है।


तो ये थी छत्तीसगढ़ के रायपुर जिला स्थित चंपारण की पूरी जानकारी
अगर ये जानकारी आपको अच्छी लगी तो एक बार जरूर जाए चंपारण और एहसास करे उन खूबियों का जो आपने यहा पढ़ा।
और हा अगर आपका इस पोस्ट से संबन्धित कोई भी सवाल हो तो Comment मे जरूर पूछे