भगवान शिव और विष्णु का एक ऐशा धाम जहां आज भी 500 साल से प्रज्वलित हो रहा है अखंड धुना, महादेव घाट के नाम से प्रसिद्ध शिव की इस पावन नगरी में विराजे है। हटकेश्वर नाथ।
Hatkeshwar Nath Mahadev |
रायपुर के खारुल तट पर स्थित है। भोले बाबा का दरबार इसे महादेव घाट के नाम से जाना जाता है
और भगवान शिव को हटकेश्वर महादेव कहा जाता है। सैकड़ों साल पुरानी इस मंदिर की स्थापना और इसके नाम के पीछे दिलचस्प कहानी है।
महादेव घाट में विराजे हैं हटकेश्वर महादेव, देवों के देव महादेव जो प्रसन्न हो जाए तो, भक्तों पर सब कुछ लुटा देते हैं। लेकिन जब क्रोध में आ जाए तो प्रलय आ जाता है। इस मंदिर में बजने वाले मृदंग और शंख की ध्वनि से मन श्रद्धा से भर जाता है। शहर से 8 किलोमीटर दूर स्थित खारून नदी के किनारे विराजित है हटकेश्वर महादेव भगवान शिव का यह मंदिर प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक है। आस्था के सैलाब में गोता लगाने श्रद्धालु महादेव घाट पहुंचते हैं।करीब 600 साल पुराने स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी होती है। मान्यता है कि इसकी स्थापना भगवान राम के वन गमन के समय हुई थी वनवास के दौरान वे छत्तीसगढ़ के इलाके से गुजर रहे थे तब इस शिवलिंग की स्थापना ,लक्ष्मण के हाथों हुई थी।
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हटकेश्वर महादेव मंदिर,मंदिर में दर्शन करने हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश के कोने कोने से आते हैं। साल 1402 में कलचुरी राजा रामचंद्र के पुत्र ब्रम्हदेव राय के शासनकाल में हाजीराज नाइक ने हटकेश्वर नाथ महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था। बारीक नक्काशी से सुसज्जित इस भव्य मंदिर के आंतरिक और बाहरी कक्षो की शोभा देखते ही बनती है। इस मंदिर के मुख्य आराध्य हटकेश्वर महादेव, नागर ब्राम्हणों के संरक्षक देवता माने जाते है।
महादेव घाट में भोले बाबा हटकेश्वर महादेव के रूप में विराजे हैं। कलचुरी कालीन स्थापत्य कला भी भोलेनाथ की इस मंदिर में दिखाई देती है। बारीक नक्काशी और काले पत्थर की बेहद आकर्षक मूर्ति आने वाले का मन मोह लेती हैं। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के पास ही राम जानकी लक्ष्मण और बरहादेव की प्रतिमा है। भोलेनाथ का नाम हटकेश्वर नाथ क्यों पड़ा इसके पीछे भी कई दिलचस्प कहानी है।
अति प्राचीन मंदिरो के प्रति लोगों का गहरी आस्था है, जो उन्हें यहां तक खींच कर लाती है। महादेव अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाते हैं। और उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। क्षेत्र का नामकरण और स्थापना कलचुरी शासन काल में हुई तब से यहां लोग पीढ़ियों से अपनी धार्मिक मान्यताओं की पूर्ति के लिए यहां आते है।यहा पर पिंड दान किया जाता है।
हटकेश्वर महादेव और पवित्र खारुन नदी में पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। और इसके लिए शासन स्तर पर भी खारुल
तट पर नाव की व्यवस्था की गई है। खारूल नदी किनारे चलने वाली नाव पिंड दान की प्रक्रिया को पूरा कराने में मदद करती है। इस नाव में बैठकर लोग अपने पितरों को मोक्ष प्राप्ति के लिए नदी के बीच जाकर पिंडदान करते हैं। अब गया और काशी की तरह भी यहां पर ही सारे कर्म कांड होने लगे हैं।
महादेव घाट में प्रवेश करते ही ,जैसे ही हटकेश्वर नाथ के प्रांगण में प्रवेश करते हैं वही हटकेश्वर नाथ के सामने ही जूना अखाड़ा का परिसर नजर आता है। यह वही परिसर है। जहां दूर-दूर से आए साधु संत विश्राम के लिए रुकते हैं। हटकेश्वर नाथ के दर्शन के लिए गर्भ गृह में प्रवेश करते ही बेहद सुखद अनुभव होती है। गर्भ गृह में बिखरी धूप अगरबत्ती की खुशबू से मन में श्रद्धा की भावना जागृत हो जाती है। भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए धतूरे का फूल और फल चढ़ाते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु मन में जो भी कामना लेकर आते हैं। उनकी सारी कामना पूरी होती है। हटकेश्वर महादेव के परिसर में स्थापित देवी-देवताओं की प्रतिमा और गर्भगृह में भगवान सत्यनारायण की प्रतिमा मन में श्रद्धा के भाव जगाती है।
महादेव घाट स्थित जूना अखाड़े का अखंड धूना करीब 500 सालों से यहां प्रज्वलित है। धूना में प्रवेश करते ही एक सुखद एहसास होता है। भोलेनाथ के प्रताप से ही इतने सालो से धुने में अखंड ज्योत जल रही है। इस धूना में रुद्राक्ष की माला भी,ताप से पक जाती है। भोलेनाथ के ताप से रुद्राक्ष की ये माला सिद्ध हो जाती है। और श्रद्धालु अपने कष्टों के निवारण के लिए इस माला के दानों को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं। चंद्र और सूर्य ग्रहण के समय यह अखंड धुना में साबरी मंत्रों से हवन होता है। धुना की भभूत भक्त अपने माथे पर धारण करते हैं। और अपने कष्टों से मुफ्ती पाते हैं।
हटकेश्वर महादेव मंदिर में अब तक जितने भी महंत हुए हैं। सभी की समाधि यहां बनी हुई है। वर्तमान में अभी केवल पांच महंतों के ही समाधि बची हुई है। हटकेश्वर महादेव परिसर में नीम के पेड़ के नीचे मंदिर के पहले महंत ब्रह्मचारी शंकर गिरी महाराज कि जागृत समाधि है। नीम के पेड़ के नीचे बनी समाधि सुरक्षित है। उसी तरह हटकेश्वर महादेव में गर्भ गृह के सामने 12वीं महंत सरस्वती गिरी की समाधि बनी हुई है इन्हीं के पास लकड़ सुग्घा की समाधि है। यह कोई महंत नहीं थे लेकिन सिद्ध बाबा थे जो लकड़ी सुखाकर हर तरह के कष्टों का निवारण करते थे।
महादेव घाट में लगने वाले पुन्नी मेले और शिवरात्रि मेले की विशेष ख्याति है, दूर-दूर से लोग हटकेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।
जीवनदायिनी खारून नदी के किनारे में लगने वाले मेले की मान्यता है। की ब्रह् मुहूर्त पर श्रद्धा पूर्वक नदी में स्नान करने से शारीरिक व्याधियों दूर होती है और शरीर निरोगी होता है। साथ ही इस दिन स्नान ध्यान कर पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल की भी प्राप्ति होती है।
यह भी मान्यता है कि विवाहिता अगर पूरे कार्तिक मास ब्रह् मुहूर्त में उठकर नदी में स्नान कर सूर्य देव को अर्क अर्पित करे तो वो अखंड सौभाग्यवती होती है। और पारिवारिक सुख समृद्धि बढ़ती है। इसके साथ ही कुंवारी कन्या स्नान पूजा करें तो उसे मनपसंद वर मिलता है।
पापों से छुटकारा पाने और पुण्य अर्जित करने के लिए कार्तिक माह में स्नान करने की परंपरा है। पूर्णिमा के दिन यह परंपरा परवान चढ़ती है। और हजारों लोग खारून नदी में डुबकी लगाकर महादेव का दर्शन करते हैं सालों से यह परंपरा चली आ रही है। तंत्र साधना के लिए यह स्थान उत्तम माना गया है।
संकलन
प्रकाश साहू रायपुर(छः ग:)
फोटो अश्वनी पटेल (छुरा )
संकलन
प्रकाश साहू रायपुर(छः ग:)
फोटो अश्वनी पटेल (छुरा )
बहुत बढ़िया जानकारी । कभी मौका मिलेगा तो महादेव घाट भोले बाबा के दर्शन करने जरूर जाऊंगा
ReplyDelete।।।ओम नमः शिवाय।।।।