श्री जगन्नाथ चार परम पावन धामों मे एक है| ऐसी भी मान्यत है कि शेष तीन धामों में बद्रीनाथ सतयुग का, रामेश्वर त्रेता का तथा द्वारिका द्वापर का धाम है; किन्तु इस कलयुग का पावनकारी धाम तो पूरी ही है|
पहले यहाँ नीलाचल नामक पर्वत था और नीलमाधव- भगवान कि श्री मूर्ति थी उस पर्वत पर जिसकी देवता आराधना करते थे| वह पर्वत भूमि में चला गया और भगवान की वह मूर्ति देवता अपने लोक मे ले गए; किन्तु इस क्षेत्र को उन्ही कि स्मृति में अब भी नीलाचल कहते है| श्री जगन्नाथ जी के मंदिर के शिखर पर लगा चक्र ‘नीलछत्र’ कहा जाता है| उस नीलछत्र के दर्शन जहा तक होते है, वह पूरा क्षेत्र श्री जगन्नाथपूरी है|
इस क्षेत्र के अन्य अनेक नाम है|
यह श्री क्षेत्र पुरुषोत्तम पूरी तथा शंखक्षेत्र भी कहा जाता है; क्युंकी इस पूरे पुण्यक्षेत्र कि आकृति शंख के सामान है| शाक्त इसे उद्द्यानपीठ कहते है 51 शक्ति पीठो में यह एक पीठ स्थल है|सती की नाभी यहाँ गिरी थी|
श्री जगन्नाथजी के महाप्रसाद कि महिमा तो भुवन विख्यात है| महाप्रसाद में छुवा छूत का दोष तो माना ही नहीं जाता, उित्छष्टीता दोष भी नहीं माना जाता और व्रत पर्वदिन के दिन भी उसे ग्रहण करना विहित है|
सच तो यह है कि भगवतप्रसाद अन्न या पदार्थ नहीं हुवा करता| वह तो चिन्मय तत्व है| उसे पदार्थ मानकर विचार करना ही दोष है| श्री वल्लभाचार्य महाप्रभु पुरी पधारे तो एकादशी-व्रत के दिन उसकी निष्ठा कि परीक्षा के लिए उनको किसी ने मंदिर में ही महाप्रसाद दे दिया | आचार्य ने महाप्रसाद हाथ में लेकर उसका स्तवन प्रारंभ किया और एकादशी के पुरे दिन तथा रात्रि उसका स्तवन करते रहे| दुसरे दिन द्वादशी में स्तवन समाप्त करके उन्होंने प्रसाद ग्रहण किया इस| प्रकार उन्होंने महाप्रसाद एवम एकादशी दोनों को समुचित आदर दिया|
श्री जगन्नाथ मंदिर :-
श्री जगन्नाथ जी का मंदिर बहुत विशाल है | मंदिर दो परकोटो के भीतर है| इनमे चारो ओर चार महाद्वार है| मुख्य मंदिर के तीन भाग है-विमान या श्री मंदिर जो सबसे उचा है; इसीमें श्री जगन्नाथ जी विराजमान है| उसके सामने जगमोहन है और जगमोहन के पश्चात मुखशाला नामक मंदिर है| मुखशाला के आगे भोगमण्डप है|
श्री जगन्नाथ मंदिर के पूर्व में सिंह द्वार,दक्षिण में अश्व द्वार ,पश्चिम में व्याघ्रद्वार और उत्तर में हस्ती द्वार है|
निज मंदिर के घेरे के मंदिर :-
सिंह द्वार के सम्मुख कोणार्क से लाकर स्थापित किया उच्च अरुण स्तम्भ है| इसकी परिक्रमा करके सिंह द्वार को प्रणाम करके द्वार में प्रवेश करने पर दाहिनी ओर पतित पावन जगन्नाथ जी के विग्रह(द्वार में ही ) दृष्टीगोचर होते है| इनके दर्शन सभी के लिए सुलभ है| विधर्मी भी इनका दर्शन कर सकते है|
आगे एक छोटी मंदिर में विश्वनाथ लिंग है| कोई ब्राम्हण काशी जाना चाहते थे| श्री जगन्नाथ जी ने उन्हें स्वप्न में आदेश दिया कि उक्त लिंगमूर्ति के अर्चन से ही उन्हें विश्वनाथ जी के पूजन का फल प्राप्त हो जायेगा|
श्री जगन्नाथ जी के मंदिर के दुसरे प्राकार के भीतर जाने से पूर्व २५ सीढी चड़ना पड़ता है| इन सीढियों को प्राकृति के २५ विभागो का प्रतिक माना गया है| द्वीतीय प्रकार के द्वार में प्रवेश करने के पूर्व दोनों ओर भगवत प्रसाद का बाज़ार दिखायी देता है|
आगे अजाननाथ गणेश ,बटेरा महादेव एवम पटमंगला देवी के स्थान है| सत्यनारायण – भगवान है| इसकी सेवा अन्यधर्मी भी करते है| आगे वट वृक्ष है ,जिसे कल्प वृक्ष कहते है| उसके नीचे बालमुकुन्द (वटपत्रशायी) के दर्शन है| वट वृक्ष कि परिक्रमा कि जाती है| वहा से आगे गणेश जी का मंदिर है| इन्हें सिद्ध गणेश कहते है | पास सर्वमंगला देवी तथा अन्य देवी मंदिर है|
श्री जगन्नाथजी के निज मंदिर के द्वार के सामने मुक्ती मण्डप है| इसे ब्रम्हासन कहते है| ब्रम्हाजी पूर्व काल में यज्ञ के प्रधानाचार्य होकर यही विराजमान होते थे| इस मुक्तीमण्डप में स्थानीय विद्वान ब्राम्हण के बैठने कि परिपाटी है|
मुक्तीमण्डप के पीछे कि ओर मुक्तनृसिंह का मंदिर है| ये यहाँ के क्षेत्रपाल है| इस मंदिर के पास ही रोहानी कुण्ड है| उसके समीप ही विमलादेवी का मंदिर है| यह यहाँ का शक्ति पीठ है| जैन लोग इस विग्रह का सरस्वती नाम से पूजन करते है|
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रात में मुख्य द्वार -पुरी |
यहाँ से आगे सरस्वती जी का मंदिर है| सरस्वती तथा लक्ष्मी जी के मंदिर के बीच में नीलमाधव जी का मंदिर है| यही कुर्मबेढा में श्री जगन्नाथ जी का अन्य छोटा मंदिर है| समीप ही काक्षीगणेश कि मूर्ति है| आगे भुनेश्वरी देवी का मंदिर है| उत्कल के शाक्त आराधकोकी ये आराध्या है|
वहा से आगे श्री लक्ष्मी जी का मंदिर है| इन मंदिरों में श्री लक्ष्मीजी कि मुख्यमूर्ति है| समीप ही श्री शंकराचार्य जी तथा लक्ष्मीनारायण मुर्तिया है| इसी मंदिर के जगमोहन में कथा तथा अन्य शास्त्र चर्चा होती है|
श्री लक्ष्मी जी के मंदिर के समीप सूर्य मंदिर है| मंदिर में सूर्य,चन्द्र तथा इंद्र कि छोटी-छोटी मुर्तिया है| कोणार्क- मंदिर से लायी हुई सूर्य भगवान कि प्रतिमा इसी मंदिर में गुप्त स्थान में रखी गयी है|
पास में पातालेश्वर महादेव का सुन्दर मंदिर है| इनका महात्म बहुत माना जाता है| यही उत्तरमणि देवी कि मूर्ति है| यहाँ से पास ही ईशानेश्वर मंदिर है| इनको श्री जगन्नाथ जी का मामा कहते है| इस लिंग विग्रह के सम्मुख जो नंदी कि मूर्ति है, उससे गुप्तगंगा का प्रवाह निकला है| वहा नख से आघात करने से जल निकल आता है|
यहाँ से आगे निज मंदिर से एक द्वार बहार जाता है| इस द्वार को बैकुण्ठ द्वार कहते है| वैकुण्ठ द्वार के समीप वैकुंठेश्वर महादेव का मंदिर है| यहाँ बगीचा-सा है|बारह वर्ष पर जब श्री जगन्नाथजी का कलेवर-परिवर्तन होता है,तब पुराने विग्रह को यही समाधी दी जाती है|
जय विजय द्वार में जय विजय कि मुर्तिया है| इसका दर्शन करके,इनसे अनुमति लेकर तब निज मंदिर में जाना उचित है| इसी द्वार के समीप श्री जगन्नाथ जी का भंडार घर है| जारी है … आगे पढें
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