ओडिशा के पावन धरा पर पुरी क्षेत्र के समुद्र किनारे विशाल व विश्व विख्यात सुर्य मंदिर स्थीत है। ईस मंदिर मे सूर्य कि पहली किरण मंदिर के गर्भ गृह मे स्थीत सूर्य कि प्रतिमा पर पडती थी
जिस कारण पुर्तगालियो को भारी नुकसान उठाना पडता था पुर्तगालियो ने ईसका राज का पता लगा लिया और मंदिर के शिखर पर लगे चुम्बक को चोरी कर ले गये और बंगाल के सुल्तान सुलेमान खान कर्रानी जिसे काला पहाड भी कहा जाता है जिसने ईस मंदिर को बार बार लूटा भारी नुकसान पहुचाया गया मंदिर की मुर्तिया खजाने को चोरि कर ले गये शिखर को बारूद से उडा दिया जैसे हि शिखर गिरा मुख्य मंदिर टूट गया क्योकि मंदिर का प्राण उसके शिखर पर था (पुरी के पंडितो ने यहा कि मुख्य प्रतिमा को पवित्र बनाये रखने के लिये बालू मे दबा दिया )आज यह प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर मे है।
कोर्णाक का सूर्य मंदिर जिसे अग्रेजी मे ब्लैग पगोडा भी गया है।
ईसे लाल बलुवा पत्थर और काले ग्रेनाई पत्थर से 1236 - 1234 ई पू मे गंग वंश के राजा नृसिहदेव बनाया गया था।
यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिध्द स्थलो मे से एक है।
ईसे सन 1974 मे युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया है।
कलिग शैलि मे निर्मत यह मंदिर सूर्य देव (अर्क) के रथ के रूप मे निर्मित है।
इस स्थान पर श्री कृष्ण भगवान के पुत्र साम्भ ने सुर्य की कडी तपस्या कर कोड रोग से मुक्ती प्राप्त किया था।
12 एकड मे फैला यह मंदिर जिसको बनाने मे 1200 सौ मजदूर व 12वर्ष मे यह मंदिर का निर्माण किया था।
ईस मंदिर मे सूर्य देव कि तीन प्रतिमा है।
(1) बाल्यकाल -उदित सूर्य
(2) युवावस्था- मघ्यान सूर्य
(3) प्रौढपस्था- अस्त सूर्य
ईसके प्रवेष द्वार पर दो सिह हाथियो पर आक्रमन होते हूवे रक्षा मे तत्पर दिखाई देते है।
ईस मंदिर के अंदर चुम्बक लगी थी जिसकी मदद से यहा कभी सैकडो टन प्रतिमा हवा मे तैरा करती थी मंदिर के शिखर पर लगे चुम्बक पत्थर कि वजय से मंदिर के समिप समुद्र के किनारे जाने वाले जहाजो का कम्पास फेल हो जाता था और गलत दिशा बताता था जिसकी वजय से जहाज दूर्घटना का शिकार हो जाते
जिस कारण पुर्तगालियो को भारी नुकसान उठाना पडता था पुर्तगालियो ने ईसका राज का पता लगा लिया और मंदिर के शिखर पर लगे चुम्बक को चोरी कर ले गये और बंगाल के सुल्तान सुलेमान खान कर्रानी जिसे काला पहाड भी कहा जाता है जिसने ईस मंदिर को बार बार लूटा भारी नुकसान पहुचाया गया मंदिर की मुर्तिया खजाने को चोरि कर ले गये शिखर को बारूद से उडा दिया जैसे हि शिखर गिरा मुख्य मंदिर टूट गया क्योकि मंदिर का प्राण उसके शिखर पर था (पुरी के पंडितो ने यहा कि मुख्य प्रतिमा को पवित्र बनाये रखने के लिये बालू मे दबा दिया )आज यह प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर मे है।
कोर्णाक का सूर्य मंदिर जिसे अग्रेजी मे ब्लैग पगोडा भी गया है।
ईसे लाल बलुवा पत्थर और काले ग्रेनाई पत्थर से 1236 - 1234 ई पू मे गंग वंश के राजा नृसिहदेव बनाया गया था।
यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिध्द स्थलो मे से एक है।
ईसे सन 1974 मे युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया है।
कलिग शैलि मे निर्मत यह मंदिर सूर्य देव (अर्क) के रथ के रूप मे निर्मित है।
इस स्थान पर श्री कृष्ण भगवान के पुत्र साम्भ ने सुर्य की कडी तपस्या कर कोड रोग से मुक्ती प्राप्त किया था।
सूर्य के काल्पनिक रथ के समान इस मंदिर कि आकृती है।
12 एकड मे फैला यह मंदिर जिसको बनाने मे 1200 सौ मजदूर व 12वर्ष मे यह मंदिर का निर्माण किया था।
ईस मंदिर का मुख्य वास्तु कार विशु मोहराना था। उसके 12 वर्ष के पुत्र धर्मपथ मोहराना ने ईस मंदिर के शिखर पर 250 टन का चुम्बक लगाया था। और वहा से कुदकर अपनि जान दि थी।
ईस मंदिर के पिछे सुर्य की पत्नी संध्या और छाया की मंदिर बनि हूई है।
संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोडि चक्रो वाले सात घोडो से खीचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप मे बनाया गया है मंदिर की संरचना जो सूर्य के सात घोडो द्वारा दिव्य रथ को खिचने पर आधारित है।
संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोडि चक्रो वाले सात घोडो से खीचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप मे बनाया गया है मंदिर की संरचना जो सूर्य के सात घोडो द्वारा दिव्य रथ को खिचने पर आधारित है।
अब ईनमे से एक हि घोडा बचा है। इस रथ की पहिये जो कोर्णाक कि पहचान बन गये है। बारह चक्र साल के बारह महिने को प्रतिबिंबित करते है जबकि प्रत्येेक चक्र आठ अरो से मिल कर बना है जो दिन के आठ पहरो को दर्शाते है। जिसमे सटिक समय का पता लगाया जाता है।ईस
मंदिर मे विषाल से विषाल ढाचा और महिन से महिन नक्कासी मंदिर के ईन्च ईन्च मे देखने को मिलति है।
मंदिर मे विषाल से विषाल ढाचा और महिन से महिन नक्कासी मंदिर के ईन्च ईन्च मे देखने को मिलति है।
ईस मंदिर मे सूर्य देव कि तीन प्रतिमा है।
(1) बाल्यकाल -उदित सूर्य
(2) युवावस्था- मघ्यान सूर्य
(3) प्रौढपस्था- अस्त सूर्य
ईसके प्रवेष द्वार पर दो सिह हाथियो पर आक्रमन होते हूवे रक्षा मे तत्पर दिखाई देते है।
यह कोर्णाक मंदिर वास्तु दोष के कारण मात्र 700 वर्षो मे हि ध्वस्त हो गया इसके अवषेष को एक संग्रालय मे सजो के रखा गया है।
Nice artical sir. Humne ek user supported bloge banaya hai jisme aap jitne comment karenge utne hi user apki website me comment karenge. Keep join early
ReplyDeleteSir thanks for such a nice information About the temple and the best part is the theft of idols of god n the exact knowledge about its breakage part of main tple which was looking as the temple was dumped
ReplyDeleteThanks
Nice information about Konark Sun Temple History. Thanks
ReplyDeleteThaks sir aapne hume itni achi jaankari di bharat ki rochk jaankari jaruri 1 bharat hi 1 aisa desh hai janha anek 1 se 1 prachin chice dekhne ko milti hai
ReplyDeleteअतुल्य भारत !
ReplyDeleteइतनी अच्छी जानकारी के लिए आपका धन्यवाद्…..
sir aapne prachin itihass ko aapne apne iss post me bahut hi achhe se bataya hai. jisse log jankariyan badhegi. Thank you
ReplyDeletereally beautiful pictures on sun temple
ReplyDeleteThis is the best preserved and most informative temple on the site. Dating to about 930 AD, it’s various “layers” depict to path of man from the origin of the cosmos up to (and beyond) enlightenment. An expert guide is needed to interpret all this. Avoid the sensational guidebooks that only talk about the supposedly obscene pose
ReplyDeleteKonark temple is the first temple when you enter the western group of temples complex. It's also one of the biggest temple in complex and dedicated to lord sun. Architecture of this temple is mind blowing.
ReplyDeleteI feel really proud on our ancient architecture techniques. As they made it in that time is really hard work without scientific technology.
ReplyDeleteWorld class temples famous for its erotic art gives a totally different experience of engraved kamasutra
ReplyDeleteWonderful. I love the Konark sun Temple of architecture. This temple, both interior and exterior walls were lavishly decorated with carvings. The sculptures are generally erotic in their themes and drew inspiration from Vatsyayana Kamasutra.
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