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निज मंदिर :-
प्रायः मंदिर कि परिक्रमा करके (थोडा परिक्रमांश शेष रहता है ) यात्री निज मंदिर के जगमोहन में प्रवेश करता है | जगमोहन गरुड़स्तंभ(भोग मण्डप में) है| श्री चैतन्यमहाप्रभु यही से श्री जगन्नाथ जी के दर्शन करते थे| वहा एक छोटा गड्डा भूमि में है| कहा जाता है| कि वह गड्डा महाप्रभु के आसुओ से भर जाया करता था गरुड़ स्तंभ को दाहिने करके तथा जय-विजय (भोग मण्डप)कि मूर्तियों को प्रणाम करके तब आगे निज मंदिर में जाना चाहिए |
निज मंदिर 16 फुट उची 4 फुट उची वेदी है| इसे रत्न वेदी कहते है| वेदी के तीन ओर 3 फुट चौड़ी गली है,जिससे यात्री श्री जगन्नाथ कि परिक्रमा करते है| इस वेदी पर श्री जगन्नाथ,सुभद्रा तथा बलराम जी कि मुख्य मुर्तिया विराजमान है| श्री जगन्नाथ श्याम वर्ण है| वेदी पर एक ओर 6 फुट उचा सुदर्शन चक्र प्रतिष्ठित है| यही नीलमाधव,लक्ष्मी तथा सरस्वती कि छोटी मुर्तिया भी है|
श्री जगन्नाथ ,सुभद्रा तथा बलरामजी कि मुर्तिया अपूर्ण है| उनके हाथ पुरे नहीं बने है| मुखमंडल भी सम्पूर्ण निर्मित नहीं है| इसका कारन आगे कथा में सूचित किया गया है|
यात्री एक ब़ार श्री जगन्नाथ जी के मंदिर में भीतर तक जाकर चरण स्पर्स कर सकते है| जगमोहन में से दर्शन तो प्रायः रात्रि में पट बंद होने के अतिरिक्त सभी समय होता है; किन्तु यहाँ कि सेवा पद्धति कुछ ऐसी है कि यह निश्चित नहीं कि किस समय भोग लगेगा और कब सबके लिए भीतर तक जाने कि सुविधा प्राप्त होगी| प्रायः रात्रि में ही यह सुविधा होती है| दिन में भी एक समय यह सुविधा मिलती है, किन्तु प्रतिदिन उसके मिलने का निश्चित नहीं है|
निज मंदिर :-
प्रायः मंदिर कि परिक्रमा करके (थोडा परिक्रमांश शेष रहता है ) यात्री निज मंदिर के जगमोहन में प्रवेश करता है | जगमोहन गरुड़स्तंभ(भोग मण्डप में) है| श्री चैतन्यमहाप्रभु यही से श्री जगन्नाथ जी के दर्शन करते थे| वहा एक छोटा गड्डा भूमि में है| कहा जाता है| कि वह गड्डा महाप्रभु के आसुओ से भर जाया करता था गरुड़ स्तंभ को दाहिने करके तथा जय-विजय (भोग मण्डप)कि मूर्तियों को प्रणाम करके तब आगे निज मंदिर में जाना चाहिए |
निज मंदिर 16 फुट उची 4 फुट उची वेदी है| इसे रत्न वेदी कहते है| वेदी के तीन ओर 3 फुट चौड़ी गली है,जिससे यात्री श्री जगन्नाथ कि परिक्रमा करते है| इस वेदी पर श्री जगन्नाथ,सुभद्रा तथा बलराम जी कि मुख्य मुर्तिया विराजमान है| श्री जगन्नाथ श्याम वर्ण है| वेदी पर एक ओर 6 फुट उचा सुदर्शन चक्र प्रतिष्ठित है| यही नीलमाधव,लक्ष्मी तथा सरस्वती कि छोटी मुर्तिया भी है|
श्री जगन्नाथ ,सुभद्रा तथा बलरामजी कि मुर्तिया अपूर्ण है| उनके हाथ पुरे नहीं बने है| मुखमंडल भी सम्पूर्ण निर्मित नहीं है| इसका कारन आगे कथा में सूचित किया गया है|
यात्री एक ब़ार श्री जगन्नाथ जी के मंदिर में भीतर तक जाकर चरण स्पर्स कर सकते है| जगमोहन में से दर्शन तो प्रायः रात्रि में पट बंद होने के अतिरिक्त सभी समय होता है; किन्तु यहाँ कि सेवा पद्धति कुछ ऐसी है कि यह निश्चित नहीं कि किस समय भोग लगेगा और कब सबके लिए भीतर तक जाने कि सुविधा प्राप्त होगी| प्रायः रात्रि में ही यह सुविधा होती है| दिन में भी एक समय यह सुविधा मिलती है, किन्तु प्रतिदिन उसके मिलने का निश्चित नहीं है|
लिंग राज मंदिर -भुवनेश्वर |
विशेषोत्सव :-
वैशाख शुक्ल तृतीय को ज्येष्ट कृष्णा 7 तक 21 दिन चन्दन यात्रा होती है| इस समय मदनमोहन,राम-कृष्ण,लक्ष्मी-सरस्वती,पञ्चमहादेव (नीलकंठेश्वर,मारकंडेश्वर,लोकनाथ,कपालमोचन,और जम्मेश्वर)के उत्सव-विग्रह चन्दनतालाब पर जाते है| यहाँ स्नान तथा नौका-विहार होता है|
जयेष्ट शुक्ल एकादशी को रुखमनी-हरण-लीला मंदिरों में होती है| जयेष्ट पूर्णिमा को श्री जगन्नाथ,सुभद्रा तथा बलराम जी कि स्नान यात्रा होती है| ये विग्रह स्नान –मण्डप में जाते है| वहा उन्हें 108 घड़ो के जल से स्नान कराया जाता है| स्नान के पश्चात् भगवान का गणेश – वेश में श्रृंगार होता है|कहा जाता है कि इस अवसर पर श्री जगन्नाथ जी ने एक गणेशजी के भक्त को गणेश रूप में दर्शन दिया था | इसके पश्चात 15 दिन मंदिर बंद रहता है|
आषाढ़शुक्ल द्वितीय को श्री जगन्नाथ जी कि रथ यात्रा होती है| यह पूरी का प्रधान महोत्सव है| तीन अत्यंत विशाल रथ होते है| पहले रथ पर श्री बलराम जी ,दुसरे पर सुभद्रा तथा सुदर्सन चक्र ,तीसरे पर श्री जगन्नाथ जी विराजमान होते है| संध्या तक ये रथ गुंडीचा मंदिर पहुच जाते है| दुसरे दिन भगवान रथ से उतर कर मंदिर में पधारते है और सात दिन वही विराजमान रहते है|दशमी को वहा से रथ पर लौटते है| इन नौ दिनों के श्री जगन्नाथ जी के दर्शन को ‘आड़पदर्शन’ कहते है| इसका बहुत अधिक महत्व माना जाता है|
श्रावण कि आमवस्या को जगन्नाथ जी के सेवको का उत्सव होता है| श्रावण में शुक्ल पक्ष कि दशमी से झूलन यात्रा होती है| जन्माष्टमी को जन्मोत्सव,भाद्रकृष्णा 11 को कालिया दमन,भाद्रशुक्ल 11 को पार्श्वपरिवर्त्नोत्सव,वामन द्वाद्शी अश्विनपूर्णिमा को सुदर्सन विजयोत्सव तथा नवरात्र में विमला-देवी के उत्सव – इस प्रकार मंदिर में प्राय: सभी पर्वो पर महोत्सव होते ही रहते है|
जारी है ……वैशाख शुक्ल तृतीय को ज्येष्ट कृष्णा 7 तक 21 दिन चन्दन यात्रा होती है| इस समय मदनमोहन,राम-कृष्ण,लक्ष्मी-सरस्वती,पञ्चमहादेव (नीलकंठेश्वर,मारकंडेश्वर,लोकनाथ,कपालमोचन,और जम्मेश्वर)के उत्सव-विग्रह चन्दनतालाब पर जाते है| यहाँ स्नान तथा नौका-विहार होता है|
जयेष्ट शुक्ल एकादशी को रुखमनी-हरण-लीला मंदिरों में होती है| जयेष्ट पूर्णिमा को श्री जगन्नाथ,सुभद्रा तथा बलराम जी कि स्नान यात्रा होती है| ये विग्रह स्नान –मण्डप में जाते है| वहा उन्हें 108 घड़ो के जल से स्नान कराया जाता है| स्नान के पश्चात् भगवान का गणेश – वेश में श्रृंगार होता है|कहा जाता है कि इस अवसर पर श्री जगन्नाथ जी ने एक गणेशजी के भक्त को गणेश रूप में दर्शन दिया था | इसके पश्चात 15 दिन मंदिर बंद रहता है|
आषाढ़शुक्ल द्वितीय को श्री जगन्नाथ जी कि रथ यात्रा होती है| यह पूरी का प्रधान महोत्सव है| तीन अत्यंत विशाल रथ होते है| पहले रथ पर श्री बलराम जी ,दुसरे पर सुभद्रा तथा सुदर्सन चक्र ,तीसरे पर श्री जगन्नाथ जी विराजमान होते है| संध्या तक ये रथ गुंडीचा मंदिर पहुच जाते है| दुसरे दिन भगवान रथ से उतर कर मंदिर में पधारते है और सात दिन वही विराजमान रहते है|दशमी को वहा से रथ पर लौटते है| इन नौ दिनों के श्री जगन्नाथ जी के दर्शन को ‘आड़पदर्शन’ कहते है| इसका बहुत अधिक महत्व माना जाता है|
श्रावण कि आमवस्या को जगन्नाथ जी के सेवको का उत्सव होता है| श्रावण में शुक्ल पक्ष कि दशमी से झूलन यात्रा होती है| जन्माष्टमी को जन्मोत्सव,भाद्रकृष्णा 11 को कालिया दमन,भाद्रशुक्ल 11 को पार्श्वपरिवर्त्नोत्सव,वामन द्वाद्शी अश्विनपूर्णिमा को सुदर्सन विजयोत्सव तथा नवरात्र में विमला-देवी के उत्सव – इस प्रकार मंदिर में प्राय: सभी पर्वो पर महोत्सव होते ही रहते है|
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