कथा:-
द्वापर में द्वारिका में श्री कृष्णचन्द्र कि पटरानियो ने एक ब़ार माता रोहणी जी के भवन में जाकर उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें श्याम सुन्दर कि व्रज-लीला के गोपी- प्रेम प्रसंग को सुनाये| माता ने इस बात को टालने का बहुत प्रयत्न किया; किन्तु पटरानियो के आग्रह के कारण उन्हें वह वर्णन सुनाने को प्रस्तुत होना पड़ा| उचित नहीं था कि सुभद्राजी भी वहा रहे| अत: माता रोहनी ने सुभद्रा जी को भवन के द्वार के बहार खड़े रहने को कहा और आदेश दिया कि वे किसी को भीतर न आने दे| संजोग वश उसी समय श्री कृष्ण – बलराम वहा पधारे|सुभद्रा जी ने दोनों भाइयो के मध्य में खड़े होकर अपने दोनों हाथ फैलाकर दोनों को भीतर जाने से रोक दिया| बंद द्वार के भीतर जो व्रज प्रेम कि वार्ता हो रही थी,उसे द्वार के बहार से ही यक्तिचित सुनकर तीनो के ही शरीर द्रवित होने लगे| उसी समय देवर्षि नारद वहा आ गए| देवर्षि ने यह जो प्रेम-द्रवित रूप देखा तो प्राथना कि ‘आप तीनो इसी रूप में विराजमान हो|’श्री कृष्णचंद्र ने स्वीकार किया -‘कलयुग में दारूविग्रह में इसी रूप में हम तीनो स्थित होंगे|’
प्राचीन काल में मालव देश के नरेश इन्द्र्धुमन को पता लगा कि उत्कल प्रदेश में कही नीलाचल पर भगवान नीलमाधव का देवपूजित श्री विग्रह है| वे परमविष्णु भक्त उस श्री विग्रह का दर्शन करने के प्रयत्न में लगे|उन्हें स्थान का पता लग गया; किन्तु वे वहा पहुचे इसके पूर्व ही देवता उस श्री विग्रह को लेकर अपने लोक में चले गए| उसी समय आकाशवाणी हुई कि दारूब्रम्हारूपमें तुम्हे अब श्री जगन्नाथ के दर्शन होंगे |
महाराज इंद्रधुमन सहपरिवार आये थे| वे नीलाचलके पास ही बस गए| एक दिन समुद्र में एक बहुत बड़ा काष्ठ (महादारु)बहकर आया राजा ने उसे निकलवा लिया इससे विष्णु मूर्ति बनवाने का उन्होंने निश्चय किया| उसी समय वृद्ध बढई के रूप में विश्वकर्मा उपस्थित हुवे| उन्होंने मूर्ति बनाना स्वीकार किया; किन्तु यह निश्चय करा लिया कि जबतक वे सूचित न करे,उनका वह गृह खोला न जाय जिसमें वे मूर्ति बनायेंगे|
महादारू को लेकर वे वृद्ध बड़ई गुंडीचा मंदिर के स्थान पर भवन में बंद हो गए| अनेक दिन व्यतीत हो गए| महारानी आग्रह प्रारम्भ किया –‘इतने दिनों में वह वृद्ध मूर्तिकार अवश्य भूख-प्यास से मर गया होगा या
मरणासन्न होगा| भवन का द्वार खोलकर उसकी अवस्था देख लेनी चाहिए |’महाराज ने द्वार खुलवाया| बड़ई तो अदृश्य हो चूका था; किन्तु वहा श्री जगन्नाथ,सुभद्रा तथा बलरामजी कि असम्पूर्ण प्रतिमाऐ मिली| राजा को बड़ा दुःख हुवा मुर्तियो के सम्पूर्ण न होने से!, किन्तु उसी समय आकाशवाणी हुई –‘चिंता मत करो !इसी रूप में रहने कि हमारी इच्छा है| मुर्तियो पर पवित्र द्रव्य (रंग आदि )चढाकर उन्हें प्रतिष्ठित कर दो ! इस आकाशवानी के अनुसार वे ही मुर्तिया प्रतिष्ठित हुई | गुंडीचा मंदिर के पास मूर्ति निर्माण हुवा था,अत गुंडीचा मंदिर को ब्रम्हालोक या जनक पुर कहते है|
द्वारिका में एक ब़ार श्री सुभद्रा जी ने नगर देखना चाहा| श्री कृष्ण तथा बलरामजी उन्हें पृथक रथ में बैठाकर ,अपने रथो के मध्य उनका रथ करके उन्हें नगर-दर्शन कराने ले गए|इसी घटना के स्मारक –रूप में यहाँ रथ यात्रा निकलती है|
उत्कल में ‘दुर्गा-माधव-पूजा’एक विशेष पद्धति ही है| अन्य किसी प्रान्त में ऐसी पद्धति नही है| इसी पद्धति के अनुसार श्री जगन्नाथ को भोग लगा नैवेध्य विमला-देवी को भोग लगता है और तब वह महाप्रसाद माना जाता है|
पूरीधाम के अन्य मंदिर :-
(1) गुंडीचा मंदिर
(2) कपालमोचन
(3) एमार मठ
(4) गंभीराम मठ(श्री राधाकान्त मठ)
(5) सिद्धबकुल
(6) गोवर्धन पीठ (शंकराचार्य मठ)
(7) कबीर मठ
(8) हरीदास जी कि समाधी
(9) तोटा गोपीनाथ
(10) लोकनाथ
(11) बेडी-हनुमान
(12) चक्रतीर्थ और चक्रनारायण
(13) सोनार गौराग्ड
(14) कानवत हनुमान
जारी है ……
jai jagannath Swami.. Erotically attractive..Architect is panoromic and having many curvatures as well. One of the tallest and major temple in Jagnnath puri.
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