Tuesday, February 11, 2020

माँ रमई पाठ मंदिर ग्राम - सोरिद खुर्द Ramai Path Temple Village - Sorid Khurd

माता सीता का पावन धाम रमई पाठ, आदिवाशी अंचल में पहाडियों एव वन अच्छादित स्थल पर प्राक्रतिक प्रदत्त निर्मल पावन गंगा कि धारा कि तरह आम वृक्ष से अविरल कलरद करती निरंतर बारहमास प्रवाहित होती रहती है| यहाँ प्राचीन देव प्रतिमाये विराजमान है|
पेट पर हाथ रखे माँ सीता 

यहाँ स्वयम्भू शिवलिंग रमई माता ,विष्णु जी ,काल भैरव ,नरसिंह भगवान ,हनुमान जी का विशाल प्रतिमा |प्राकृतिक स्थल को और निखारने एव दर्शनार्थियों के भावनावो के अनुरूप श्री राघवेन्द्र सरकार कि मंदिर एव बजरंग बली का मंदिर तथा शेष शैय्या पर भगवान विष्णु कि प्रतिमा विराजमान कि गयी | इस घनघोर वन पहाड़ पर अदभूद दुःख हरण करने वाली औषधिय एव जड़ी बूटि से भरा है| ममता कि मूर्ति मनोकामना कि पूर्ति करने वाली माता के आशीर्वाद से हजारो माताओ के गोद पर आज बाल किलकारिया सुनाई देती है|
भगवान राम ,माता सीता, विष्णु जी 

 जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण हजारो कि संख्या में चढ़ावे का संकल्प हमारा ध्यान आकृष्ट करता है|अत: यह स्थल नि:संतान दाम्पत्य के लिए वरदान स्थल है| यहाँ शारदीय नवरात्र एवं चैत्र नवरात्र पर मनोकामन ज्योति प्रज्वलित कि जाती है|तथा चैत्र पूर्णमाशी पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है|इस स्थल को ऋषि मुनियों का तपो स्थली होने का गौरव प्राप्त हुवा है| 
पवित्र गंगा का उद्गम 

स्त्री वेश में हनुमान जी 

वृक्ष से गणेश की आकृति बनती हुई 

जगन्नाथ प्रतिमा - रमई पाठ 

काल भैरव - रमई पाठ सोरिद अंचल 

स्व्यंभू शिव जी - रमई पाठ 

रमई पाठ का मनोरम दृश्य 

ज्योति कक्ष रमई पाठ 

नरसिंघ नाथ - रमई पाठ 

भगवान गरूड की प्राचीन प्रतिमा 

पौराणिक कथावो व बड़े बुजुर्ग के बताये अनुसार कहा जाता है| कि भगवान श्री राम के द्वारा माता सीता का परित्याग के उपरांत,रामआज्ञा से लक्ष्मण ने माता सीता को रमई पाठ के इन्ही जंगलो में छोड़ कर निकल गए, उस समय माता सीता गर्भ अवस्था में थी| माता सीता को घने जंगलो में प्याश लगी होगी जानकर माता गंगा स्वयं आम वृक्ष के निचे प्रकट हो गई| और पतित पावन जल कि धारा अविरल बहने लगी| इसके कुछ दिनों के उपरांत महर्षि वाल्मीकि ने माता सीता को बड़े ही आदर भाव से अपने आश्रम तुरतुरिया ले गयी जहा पर लव कुश का जन्म हुवा| रमई पाठ में माता सीता कि गर्भ अवस्था कि प्रतिमा विराजमान है| व भगवान राम विष्णु कि प्रतिमा साथ में है| यह स्थल कई रहष्यो से भरा पड़ा है| यहाँ कि पहाडियों में खजाना छुपा होने का दावा किया जाता है|यहाँ कई निर्माधीन मंदिर का निर्माण किया गया है| पूरा मंदिर परिसर प्राकृतिक सुन्दरता से भरा पड़ा है| यहाँ पर आके भक्त जन परम आनंद कि अनुभुती महसूस करते है|

रमई पाठ सोरिद खुर्द - कैसे पहुंचे :-
रमई पाठ फिंगेश्वर से छुरा मार्ग पर फिंगेश्वर से  10 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है |रायपुर से 84 कि.मी की दुरी व्  सोरिद से उत्तर दिशा की ओर 1/2  किलोमीटर की दुरी पर रमई पाठ धाम स्थित है|  सड़के उत्तम है|  

Monday, February 10, 2020

महादेवघाट ग्राम कनेकेरा महासमुंद (MAHADEV GHAT KANEKERA MAHASAMUND)

श्री शिव जी मंदिर महासमुंद जिला अंतर्गत ग्राम कनेकेरा में स्थित है, महादेवघाट ।महादेवघाट की दुरी महासमुंद जिला से 10 km की है। महासमुंद से फिंगेश्वर मार्ग में स्थित इस मंदिर के नाम से ही स्पष्ट है की यहाँ भगवान शिव जी का मंदिर है।
 Swayambhu Mahadev -Kanekera
महानदी की सहायक नदी के तट पर विराजमान भगवान शिव के इस मंदिर का इतिहास सदियो पुराना है।यह मंदिर यहाँ कब से है इसका कोई स्पष्ट उल्लेख कहि भी नहीं है।इतिहास के धुंधले पन्नों को खुरेदने से पता चलता है, की पूर्व में इस स्थान पर कोरिया नामक दो वृक्ष थे इन दोनो वृक्ष की जड़े एक ही स्थान पर थी। इन दोनों वृक्ष के बिच से शिवलिंग का उदभव हुआ।तब शिवलिंग का आकर बहुत छोटा था और यह छेत्र मैदान था जहाँ घास फुस और ऊची झाड़िया थी लोगो का यहाँ आना जाना बहुत कम था पतली पगडण्डी के किनारे भगवान शिव विराजमान थे । 
शिव मंदिर महादेवघाट
शिवलिंग समय बदलता गया और अपने साथ बहुत कुछ बदलता चला गया, आज इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है।शिव जी के मंदिर के साथ साथ यहाँ केवट समाज का राम मंदिर, दुर्गा मंदिर, व् शनिदेव मंदिर भी है। वही नाग देवता की बड़ी बाम्बी है जहाँ बनी नागदेवता की आकृति सहज ही सजीव प्रतीत होती है। 

महादेव घाट कनेकेरा महासमुंद 
कहते है शिवलिंग की आकृति पहले बहुत छोटी थी अब ये काफी बड़ी हो चुकी है। मंदिर की बनावट साज-सज्जा बहुत ही अच्छी है शिव जी के मंदिर के सामने नंदी की विशाल प्रतिमा विराजमान है। 

राम जानकी मंदिर - निषाद समाज द्वारा निर्मित  

भगवान राम की प्रतिमा 

बाहर प्रांगण में केवट समाज का राम मंदिर है जहाँ भगवान राम, लक्षमण, और जानकी जी की अति सुंदर मुर्तिया है। वही दूसरी ओर माँ दुर्गा जी की मंदिर भी देखने योग्य है । इस मंदिर का निर्माण सन् 2011-2012 में हुआ है।यहाँ माँ दुर्गा की करीबन 5 फिट ऊची माँ दुर्गा की संगमरमर से बनी मूर्ति स्थापित है।मंदिर की भीतरी दीवारों में चारो ओर माँ दुर्गा के नव रूपो को उकेरा गया है । नवरात्र में श्रद्धालुगण मनोकामना पूर्ति हेतु यहाँ ज्योत भी जलाते है, पिछले वर्ष चैत्र मास की नवरात्री में यहाँ 272 ज्योत जले थे। 

MAHADEV GHAT KANEKERA MAHASAMUND
माँ दुर्गा मंदिर - सिन्हा (कलार )समाज 
श्रावण मास में यहाँ शिवभक्तो का विशाल जनसंग्रह उपस्थित होता है पूरा मंदिर परिसर भगवा रंग से रंग जाता है ग्राम बोल बम! के नारों से गूंजता है। अलग अलग स्थानों से श्रद्धालु कावर में जल लेकर दूर दूर से पैदल यात्रा करते हुए यहाँ आकर अपने आराध्य भगवान् शिव को जलार्पण करते है। यहाँ खास बात ये है की यहाँ माघ मास की पूर्णिमा में प्रतिवर्ष 2 से 3 दिनों तक मेले का आयोजन होता है जिसमें दूर दूर से लोग आते है दो दिनों तक आयोजित होने वाले इस मेले में ग्रामीणों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक आयोजन भी होते रहते है। इसी समय से राजिम कुम्भ मेले का भी आरम्भ होता है जो महाशिवरात्रि तक चलता है। शिवरात्रि में भी लोग दर्शन के लिए आते है । 


                                                                                                                        संकलन 
                                                                                                          ओमप्रकाश भाई नवरत्न 
                                                                                                             ग्राम-टीला (चंपारण) 

Sunday, February 9, 2020

नागिन डोंगरी जुनवानी कला ( Nagin Dongari Junwani Kala - Bagbahra C:G)

नागिन डोंगरी की दुर्दशा - ग्राम जुनवानी कला, तहसील - बागबाहरा- जिला - महासमुंद (छः ग़) 

जुनवानी कला ,बागबाहरा से 08  कि.मी  की दुरी पर स्थित है व चंडी मंदिर घुंचापाली से 03 किलोमीटर  पर  यह  ग्राम विद्यमान है इन्ही ग्राम  में अति प्राचनी नागिन डोंगरी है| यहा  लगभग 50 फिट लम्बा एक ऐसा स्थान है मानो वहा  कोई सर्प पड़ा हो और जिसे किसी ने धारदार हथियार से टुकड़े - टुकड़े कर दिया  हो | जुनवानी के ग्रामीण श्रावण के महीने में इसकी (ग्राम - रसिका )के रूप में पूजा करते है| 
नागिन पत्थर 
यहाँ पड़े अनेक निशान ऐसा आभास देता है की कोई सर्प अभी - अभी  ही वहा से गुजरा है| यहाँ कुछ ऐसे बिंदु है| जहा पत्थरो के टुकड़े मारने से वहा मधुर ध्वनि निकलती है | ऐसा प्रतीत होता है ,मानो इस डोंगरी के गर्भ में कुछ छिपा है|यह स्थल प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है|  
 यहाँ पर प्राचीन सील लोढहा भी देखने को मिलता था मगर आसमाजीक  तत्व के द्वारा इसे चुरा लिया गया है|          

नागिन डोंगरी की वर्तमान स्थिति :- आज नागिन डोंगरी समाप्त होने के कागार पर आ चुकी है| पूरा परिसर अतिक्रमण का शिकार हो गया है | ऐसा लगता है मानो कुछ वर्ष उपरांत यह स्थान खेत में तब्दील हो जायेगा यहाँ पर मंदिर बनाने के लिए लोहे के बीम दिए गए है, मगर लगता है| की कई वर्ष के पश्चात भी यहाँ मंदिर निर्माण नहीं किया गया जिसके चलते लोहे के राड चोरी होती जा रहे है|  और जो बचे है वह जंख खाते नजर आ रहा है| ग्राम वालो की लापरवाही के चलते यह स्थान कुछ वर्ष उपरांत विलुप्त हो जाएगा | 
मेरा सभी से निवेदन है की ऐसी प्राचीन स्थली को बड़े ही प्रेम भाव से संजो के रखना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी अपनी वैभव शाली इतिहास को जान सके | इस नागिन डोंगरी की संरक्षण की तरफ ग्रामवासी एवं प्रशासन को ध्यान देना चाहिए तथा पुरे परिसर को अतिक्रम मुक्त कर पर्यटन स्थल घोसित करना चाइये |
 आपका एक सहयोग इस प्राचीन स्थल को तबाह होने के कागार  से बचा सकता है | बाकि  माँ चंडी की ईच्छा 

                                                                                                       संकलन 
                                                                                            देवेन्द्र कुमार चन्द्राकर 
                                                                                   ग्राम - बोरियाझर ,महासमुंद (छः ग:) 

Monday, January 27, 2020

चण्डी माता मंदिर (ग्राम- बिरकोनी महासमुंद) (CHANDI MATA TEMPLE VILL.- BIRKONI MAHASAMUND)

वैसे तो पूरा भारत कई अनेक मान्यताओ और सभी धर्मो के प्रति धार्मिक आस्था के लिए पूरे विश्व मे अलग ही पहचान रखता है परंतु यदि बात की जाए हमारे छत्तीसगढ़ की तो इस मामले मे भी हम किसी से कम नहीं
वो कहते है न “ सौ सुनार की तो एक लुहार की ” चाहे प्रकृतिक विविधता की बात हो या यहा बसने वाले अनेकों सम्प्रदायो के लोगो की हमारा छत्तीसगढ़ इन सभी मामलो में “ अनेकता मे एकता यही भारत की विशेषता ” के इस कथन को सत्यापित करने मे देश का गौरव है । तो आइये यहा हम इन्ही धार्मिक मान्यताओ और आस्था पर प्रकाश डालते हुए जानते है छत्तीसगढ़ के एक अन्य छोटी से धरोहर और हिन्दू आस्था के केंद्र “ चण्डी माता मंदिर ” के बारे में :-

चण्डी माता 
चण्डी माता मंदिर ग्राम बिरकोनी-
प्रिय पाठको माँ दुर्गा को हम अनेक नामो से जानते है वैसे तो अगर बात हो चण्डी माता मंदिर की तो सर्वप्रथम नाम आता है बागबाहरा स्थित चण्डी माता मंदिर जो की जिला महासमुंद मे ही स्थित है। पर हम अभी यहाँ जानेंगे जिला महासमुंद के ही एक अन्य गाँव बिरकोनी में स्थित चण्डी माता मंदिर की । ग्राम बिरकोनी जिला महासमुंद से महज 10 km. की दूरी पर स्थित है। बिरकोनी स्थित चण्डी माता मंदिर एक शक्तिपीठ है जिसे माँ चण्डी का वाश माना जाता है। यह मंदिर हजारो स्थानीय निवासियों के आस्था का केंद्र है। समय समय के अनुसार मंदिर का अनेक बार निर्माण एवं जीर्णोद्धार किया गया है वर्तमान समय मे भी मंदिर मे हनुमान मंदिर, शिव मंदिर एवं ज्योत कक्ष का निर्माण कार्य चल रहा है जिसके वर्ष 2016 के मध्य तक पूर्ण होने की संभावना है । इस समय यहा 4 ज्योत कक्ष है जिनमे लगभग 2000 ज्योत साल की दोनों नवरात्रियों मे जलाए जाते है।


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मंदिर का बाहरी दृष्य 

आकर्षण :- 

मंदिर परिषर मे अनेक साज सज्जा के कार्य हुए है जो मंदिर की सुंदरता मे चार चाँद लगा देते है, एक चबूतरे के ऊपर है प्रांगण मे विशाल वट-वृक्ष है लोग यहाँ मनोकामना पूर्ति हेतु श्रीफल (नारियल) बांधते है व परिक्रमा । मुख्य मंदिर के दाहिनी ओर दो अन्य विशाल नवनिर्मित हनुमान जी व शिव जी की मंदिर है मंदिरो का आकर्षण देखते ही बनता है। द्वार पर दो बड़े शेरो की प्रतिमाएँ है जिनकी भूमिका द्वार पहरी की है। 
यज्ञ शाला - चंडी मंदिर 
धार्मिक मान्यता :-


माँ चण्डी की अनेक किवंदतियाँ यदा-कदा सुनने को मिलते रहती है जिनमे से माँ चण्डी के बिरकोनी आकार निवास करने की कथा बहुप्रचलित है। कहा जाता है की माँ चण्डी पहले बिरकोनी से लगभग 15 km दूर स्थित ग्राम भोरिंग मे निवास किया करती थी। इस प्रकार उनका मूल ग्राम अब भी भोरिंग को ही माना जाता है, परंतु ग्रामीणो से मान न मिलने के कारण माँ खुद को अपमानित महसूस करने 


लगी व रुष्ठ होकर अपने दो बालकों के साथ गाँव से चली गई गंतव्य के पूर्व निर्धरित न होने के व आकस्मिक ग्राम छोडने के कारण माँ ने निर्णय किया की चलते चलते जहां शाम ढलेगी वो वही निवास करेंगी इस तरह विचार कर वे ग्राम भोरिंग से घनघोर जंगलो की ओर निकल पड़ी और जहां शाम ढाली वही पाषाण रूप मे अपने छोटे बालकों के संग स्थापित हो गई बाद मे यही स्थान बिरकोनी के रूप मे प्रचारित हुआ। ग्रामीणो की माने तो जब ग्राम भोरिंग के लोगो ने माँ से वापस ग्राम आ जाने का निवेदन किया तो इसके लिए माँ ने एक शर्त रखी थी वो ये की “यदि कोई साधक पैदल यात्रा कर भोरिंग से बिरकोनी माँ के दर्शन हेतु आता है व जीतने कदम से चलकर वह आया हो उतने श्रीफल (नारियल) माँ को भेंट करे तो माँ फिर से भोरिंग आ सकती है” परंतु आज तक ऐसा हो न सका। माँ चण्डी निःसंतान स्त्रियों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है ऐसा माना जाता है की माँ चण्डी के आशीर्वाद से हर निःसंतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है।
मनोकामना पूर्ति वट वृक्ष 


विशेष :-

वर्ष की दोनों पक्षों की नवरात्रियों मे मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र होता है पूरे नौ दिनो तक मंदिर परिषर मे ही झांकियों व देवी जसगीतों का आयोजन होता है पंचमी व अष्टमी मे बड़ी संख्या मे श्रद्धालु दर्शन लाभ हेतु पहुँचते है। साथ ही यहा छत्तीसगढ़ मे मनये जाने वाले पर्व छेरछेरा पुन्नी () मे विशाल मेले का आयोजन होता है। अन्य दिनो मे भी माँ के दर्शन हेतु श्रद्धालु आते है, मंदिर प्रातः 6 बजे से रात्री 10 बजे तक श्रद्धालुओ के दर्शन हेतु खुले होते है।

(नोट :- दोपहर 1 बजे से 2 बजे के बीच माँ चण्डी को प्रशाद का भोग लगाने व विश्राम के लिए मंदिर के पट बंद रहते है। )
                                            संकलन

                                   हेमकुमार सिन्हा 
                             ग्राम-तुमगांव (महासमुंद छ.ग.)


तो दोस्तो अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी और आपका कोई सवाल हमसे है तो हमे जरूर नीचे दिये comment बॉक्स मे पूछे ......
धन्यवाद !..............

Wednesday, October 4, 2017

Champai Mata Gufa And Godhara Daldali Umarda,Mahadev Pathar,Baba Dera,Rani Khol Gufa (चम्पई माता गुफा ,गोधारा दलदली ,महादेव पठार ,बाबा डेरा ,रानी खोल गुफा )

चम्पई माता गुफा - ग्राम -मोहन्दी ,अरंड ,बेलर ,तरपोंगी  

maa champai
Champai Mata

आदिशक्ति माँ चम्पई | मोहन्दी ग्राम के पहाड़ के ऊपर एक विशाल गुफा के अंदर निवास करती है | माता रानी तीन पिंडियो के रूप में गुफा के अंदर निवास करती  है | माँ चम्पई प्राचीन चम्पापुर की कुल देवी है| चम्पई माँ  को खल्लारी माता के बहन के रूप में भी पूजा जाता है | माता की गुफा लगभग १०० फिट है जिसे देख  भक्त आश्चर्य में पड जाते है |  इस स्थान का पठारी मैदान देखने लायक है

maa champai guffa
Maa Champai Gufa

चारो तरफ हरे भरे वन विशाल पर्वत से घिरा हुवा है| यही पठारी रास्ते होते से होते  हुवे महादेव पठार ,बाबा डेरा ,रानी खोल गुफा तक पंहुचा जाता है रास्ते बडी  दुर्गम है| माँ चम्पई के दर्शन के लिए (मयूर ) भी माता के दरबार में आते  है| इस स्थान पर गुप्त खजाने होने की भी बात कही जाती है|       


गोधारा दलदली उमरदा (महासमुंद )

daldali godhara umarda
Shiv Mandir Daldali

गोधारा व् शिव मंदिर ग्राम उमरदा  के दलदली मे है| इस स्थान पर जामुन वृक्ष के नीचे से पवित्र जल की धारा फूटी है| जिसे गौधारा कहा जाता है | गोमुख से निरंतर जल की धारा निकलती रहती जिसका जल भीषण गर्मी के दिनों में भी कम नही होता  है| जो यहाँ का प्रमुख आकर्सन का केंद्र है| यहाँ पर एक प्राचीन शिव मंदिर है|
godhara(ghaudhara)umarda,mahasamund
Godhara Daldali Umarda

साथ ही अनेक निर्माधीन शिव मंदिर है | पूरा मंदिर परिसर प्राकृतिक हरियाली से घिरा हुवा है यहा  पर आके  बड़ी ही सुखद  अनुभव प्राप्त  होता है|  जिस कारन लोगो का आना जाना लगा रहता है | यहाँ पर सावन सोमवारी को भारी भीड़ देखने को मिलती है|  जिसमे दूर दूर से भक्त भोले नाथ को जल अभिषेक करने के लिए  आते  है | और पवित्र  गोमुख के जल को अन्य शिवालय में ले जाते है| यहाँ पर महाशिवरात्री का विशेष महत्व है | यहा  प्रति वर्ष छेरछेरा के दिन मेले का आयोजन किया जाता है| जिसमे भारी  भीड़ उमड़ती है|        



महादेव पठार गौरखेड़ा  

mahadev pathar ghaur kheda
Mahadev Pathar ,ShivLing

महादेव पठार गौरखेड़ा ग्राम के पठारी मैदान के अंतरगत आता है | इस स्थान पर एक अति प्राचीन शिवलिंग देखने को मिलती है शिवलिंग की  स्थापन किसने किया इसकी ठीक जानकारी किसी को नहीं  है| 
mahadev pathar
Mahadev Pathar

maa parvati mahadev pathar
Parvati Mata Mahadev Pathar

 मगर आस पास के ग्रामवासी बताते है | की इस क्षेत्र पर कभी (चम्पापुर) नामक गढ़  हुवा करता था| उस समय के  तात्कालिक राजा ने  शिवलिंग की स्थापना करवायी  होगी शिवलिंग से थोड़ी आगे आदि शक्ति माँ पार्वती की प्रतिमा है| अब यहाँ पर नवरात्रि में भक्तो द्वारा मनोकामना ज्योति जलाई जाती लोग काफी मात्रा में यहाँ पहुंचते है| मंदिर के समीप एक बारहमासी  नाला बहता रहता है|      



बाबा डेरा
mahadev pathar,baba dera
Baba Dera Gufa

BABA DERA GUFA
Baba Dera


बाबा डेरा के बारे में कहा जाता है की कभी यहा  किसी तपस्वी साधु ने यहाँ तप किया था | और ज्योति जलाई थी साथ ही उसका निवास स्थान था | इस कारन इसका नाम बाबा डेरा पड़ा | बाबा डेरा को देखने से लगता है की यह गुफा साधना के लिए उचित स्थान है| इस कारन इसको सत्य घटना माना जाता है| यहाँ गुफा का विशाल चट्टान नित-नित बड़ रही है| यहाँ पर आज भी साल के दोनों नवरात्रि में बाबा की याद मनोकामना ज्योति जलाते है| और इस खौफनाक स्थान पर ९ दिनों तक पूजा अर्चना करते रहते है| यह ग्रामवासीयो का परम आस्था का केंद्र है|बाबा डेरा महादेव पठार से लगभग दो किलोमीटर की दुरी पर है| यहाँ बाकि दिनों की अपेक्षा नवरात्रि में मोटर सायकिल के द्वारा पंहुचा जा सकता है| यही से थोड़ी दुरी पर रानी खोल गुफा पड़ता है|      

रानी खोल गुफा 

RANI KHOL MAHADEV PATHAR
Rani Khol Gufa

इस गुफा के बारे में कहा जाता है की चम्पापुर के राज्य पर जब आक्रमण हुवा तब रानी लोकप्रभा के सम्मान बचाने के लिए गुप्त स्थान पर सुरंग के मार्ग से रानी को यहाँ रखा गया था जब युद्ध समाप्त हुवा तो राजा ने रानी को बहुत ढूंढा मगर रानी का कही पता नहीं चला रानी लोकप्रभा रहस्य ढ़ग से गायब हो गयी थी| कुछ लोगो का मानना है की| रानी भूख प्यास के कारन मर गयी या किसी जंगली जानवर का शिकार हो गयी | रानी खोल गुफा और चम्पई माता गुफा एक ही गुफा हो सकती है| चम्पई गुफा प्रवेश द्वार और रानी खोल गुफा निर्गम द्वार हो सकता है क्युकी दोनों गुफा एक में ही मिला होगा ऐशा प्रतीत होती है| गुफा से थोड़ी दूर आगे एक झरना है|


टिप :-  यहाँ पर चम्पई माता की गुफा को छोड़कर बाकि सभी जैसे रानी खोल गुफा,बाबा डेरा गुफा व महादेव पठार के रास्ते काफी  दुर्गम है | व घने जंगलो से घिरा हुवा है|  रास्ते भी ठीक नहीं है| साथ में जंगली जानवरो का आना - जाना बना रहता है| इसलिए जब भी यहाँ पधारे अपने साथ अपने दोस्तों व जंगलो के बारे में जानकारी रखने वालो को साथ में जरूर लाये|       

Thursday, October 6, 2016

Mahadev Pathar Gaurkheda Mahasamund ( महादेव पठार गौरखेड़ा महासमुन्द )

गौरखेड़ा ग्राम के घने जंगल के बीच महादेव पठार स्थित है जिसे लोग बाबा डेरा कहते है यहाँ का प्राचीन शिवलिंगऔर रानी गुफा ,बारा- मासी जल श्रोत प्रसिध्द है| यहाँ शिव भक्तो की विशेष आस्था का केंद्र है  
mahadev pathar ghurkheda
शिव जी  महादेव पठार

History of Mahadev Pathar Gaurkheda Mahasamund (महादेव पठार का इतिहास )

गौरखेड़ा ग्राम से करीब ३-४ कि.मी की दूरी पर उत्तर दिशा की ओर,जंगलो से घिरा हुवा ,यह पठारी मैदान है| इस मैदान में एक अति प्राचीन बोधि –वृक्ष [पीपल वृक्ष] वृक्ष है| वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग स्थापित है,जिसे बाबाडेरा कहा जाता है| बोधि वृक्ष से करीब ३ कि.मी. कि दूरी पर दक्षिण कि ओर हजारो वर्ष प्राचीन एक वट-वृक्ष है,अवलोकन करने से,यह जगह साधना योग्य स्थान मालूम पड़ता है| यही पर काले रंग के पत्थरो से युक्त एक भव्य गुफा है जिसे स्थानीय लोग ‘’रानी – खोल’’कहते है| बाबाडेरा से करीब ३ कि.मी. कि दूरी पर नीचे कि ओर तराई में घनघोर जंगल है|
mahadev pathar
शिव लिंग  

बाबा डेरा महादेव पठार ,गौरखेड़ा - महासमुंद  

इस जंगल में एक बारहमासी नाला बहता है| नाला के इर्द-गिर्द आम्रवन है| इस जगह का भौतिक आकलन करने से यहाँ कभी वैभव सम्पन बस्ती होने का आभास होता है| संभवत हजारो वर्ष पूर्व वसीयत होने का अंदेशा होता है| मालूम होता है कि यही वह स्थान है,जहाँ कभी राजा भीमसेन द्वतीय का बसाया हुवा चम्पापुर नामक गढ़ रहा होगा| इस स्थान से कुछेक दूरी पर परसापानी तथा लड़ारीबाहरा नामक वीरान जंगल है,जहाँ कभी कृषि कार्य किया रहा होगा| क्योकी इस स्थान पर खेतो का तटबंध वर्तमान कृषि के अवशेष है| संभवत:चम्पापुर के निवासी जीवकोपार्जन हेतु कृषि कार्य करते थे| आज ये जगा वीरान हो गया है पर आज भी अतीत की यादो को अपने में समा कर खामोश बैठी है| जैसी कि खुछ कहना चाहती हो?                                                         
पठार वाली माता रानी   

पठार के उपर जंगली जानवर होने का प्रतीक
                                                                                              
                                                                                                            आलेख 
                                                                                                   डॉ.जी.पी चन्द्राकर मोहंदी 

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