Saturday, December 23, 2017

Lakshagraha Of Khallari - Bhimkhoj (महाभारत कालीन लाक्षागृह के दर्शन खल्लारी मे करे। ..)


लाखेसरी गुड़ी 


लाक्षागृह के दर्शन:- प्राचीन मंडपनुमा खंडहर (लखेसरी गुड़ी ) 

जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है| की पाण्डव  पुत्र, व  माता कुंती वारणाव्रत के दौरान खलवाटिका (खल्लारी ) आये थे तभी सकुनी के द्वारा  इस स्थान पर पांडवो को मारने  के लिए लाख से निर्मित एक महल का निर्माण खल्वाटिका में करवाया था| जब महल को आग में झोका गया तो सुरंग के रास्ते सभी पांडव माता कुंती के साथ  वहा से दूर सुरक्षित निकल गए | जहा से निकले उसे  वर्तमान में  लखेशरी गुड़ी कहा जाता है | जिसमे अभी भी कोयले के जले अवशेष मिलते है | आस पास निवासी के अनुसार पहले यह जंगल था व किसी सुरंग खंडहर के समान प्रतीत होता था मगर समय बीतते व अतिक्रमण के कारन इस स्थान का प्राकृतिक स्वरुप नस्ट हो गया है |   जिसके  अवशेष मात्र  यहाँ देख सकते है| खल्लारी बस्ती के कुम्हार व मेहर पारा के बीच  खेत में जर्जर हालत में स्थित है | तथा मंदिर के सभी पत्थर को कोई वहा से हटा दिया गया है | जिसमे छोटा शिवलिंग रखकरकुछ  त्योहार आदि में यहाँ पूजा अर्चना होता है | 

मंडपनुमा खंडहर-लाखेशरी गुड़ी   

  पुरातात्विक महत्त्व का स्थल होने के बावजूद पुरातत्व विभाग व खल्लारी मंदिर समिति इस पर ध्यान नहीं दे रहा है| ऐसा लगता है की कुछ वर्ष उपरांत यह स्थान से मंदिर समाप्त हो जायेगा | अभी भी समय है| सभी पत्थरो को ठीक से जमा कर चारो तरफ से घेरा कर पर्यटन आने वाले के लिए उचित रास्ता बनाकर इसे सजो कर रखा जा सकता है|

लाक्षागृह के अवशेष 

मेरा सभी भक्तो से  निवेदन है| की जब भी खल्लारी दर्शन को आये तो लखेशरी गुड़ी जरूर जाये और मंदिर प्रशासन को इसे संरक्षित करने के लिए आग्रह करे |  पौराणिक धरोहर को हम ऐसे ही नहीं छोड़ सकते है|  
khallari mandir
खल्लारी माता पहाड़ी ऊपर वाली 

khallari temple
खल्लारी मंदिर -प्रवेश द्वार 

maa khallari bhimkhoj,mahasamund
खल्लारी माता निचे वाली 

bhim in khallari
भीम पाव ,भीम चूल 

khallari bagbahra
डोंगा पत्थर 
टिप :- यदि संरक्षित नहीं किया गया तो इसे अंतिम दर्शन मान के चले बाकि माँ खल्लारी के कृपा के ऊपर है|  

Monday, October 9, 2017

Valmiki Ashram Turturiya,Lavan,Kasdol- Balodabazar-Chhattisgarh

     तुरतुरिया -महर्षि वाल्मीकि आश्रम व लव - कुश की जन्म भूमी

तुरतुरिया मे वाल्मीकी आश्रम के बाई ओर छोटी छोटी दूकानो  के पास से गुजरते हुवे एक नाला को पार करके मातागढ नामक स्थान पहुचा जाता है। मातागढ उचि पहाडि पर स्थीत है। चारो तरफ विषाल वृक्ष बडे-बडे चट्टानो से घिरा हूवा है। पहूचने के लिये सिढी बनी  हूई है। मातागढ से पहले कुछ टुटी फुटि कुटिया दिखाई देति है जिसमे भगवान राम व बुद्ध कि खन्डीत प्रतिमा है। कहते है। कि यहि पर माता सिता कि कुटिया हूवा करती थी। और निचे महर्षि वालमिकी का आश्रम।
turturiya Valmiki ashram
लव कुश 

मातागढ मंदिर मे माता सिता माता काली कि मूर्तिया विराजमान है। यहा नवरात्री मे मनोकमना ज्योति जलायी जाति हैै। 
Valmiki Ashram Turturiya,Lavan,Kasdol- Balodabazar-Chhattisgarh
तुरतुरिया - गोमुख

यहि पर से झरणे कि कलकल कि ध्वनि सुनाई देति है। झरना जो थोडि आगे पर्वत से निचे पर स्थीत है। उसे पार करके  पर्वत कि उचि चोटि पर एक गुफा है।जिसे सेर गुफा (बघवा माडा) भी कहा जाता है। गुफा काफि विषाल है। ईस गुफा के अंदर 100 लोग आराम से घुस सकते है। यदि उस गुफा पर वर्षा हूई तो किसी पर एक भी बुद जल नहि पडेगि ईतना विषाल गुफा है। इस गुफा मे नवरात्री मे मनोकामना ज्योति जलाई जाति है।
turturiya-shivling
शिवलिंग 

Turturiya in Chhattisgarh
भगवान विष्णु की प्रतिमा 

valmiki in Turturiya
विष्णु प्रतिमा 

प्राचीन शिवलिंग 

mata gad Turturiya
माता गढ़ 

baghwa mada Turturiya
बघवा माडा 

तुरतुरिया एक ऐतिहासिक स्थल है। मगर वह अपनी प्राचिनता व विराषत को खोति नजर आ रहि हैै।
इन्हे भी देखे :-

Sunday, October 8, 2017

Kamraud - Siddh Baba Temple - Mahasamund(कमरौद सिद्ध बाबा मंदिर)

कमरौद ग्राम जो बागबाहरा तहसील जिला महासमुंद के अंतरगत आता यहाँ  का सिद्ध बाबा मंदिर आस -पास के लोगो का आस्था का केंद्र बना हुवा वैसे मंदिर तो छोटी है मगर मान्यता बहुत दूर दूर तक फ़ैली हुई है|

Siddh Baba Temple
सिद्ध बाबा मंदिर 


Siddh Baba Temple
सिद्ध बाबा की प्रतिमा 

Kamraud bagbahra
सुन्दर चट्टान 

Kamraud - Chhattisgrh
मंदिर का बाहरी दृष्य 
सिद्ध बाबा का जो डोंगरी है वह बहुत सुन्दर है  बड़े बड़े चट्टान वहा  पर है|  आस पास हरियाली  फैली हुई  है| इस जगह पर देखने से लगता है की काफी एकांत स्थान  है यहा  किसी साधु की तपस्या स्थली रही होगी और शिव जी की आराधना  कि होगी  क्युकी बाबा के प्रतिमा के बगल में  एक शिवलिंग है| जो  काफी प्राचीन मालूम पड़ता  है| यहाँ पर छेरछेरा  के एक दिन बाद मेले का आयोजन ग्रामीणों के द्वारा किया जाता है|जिसमे आस पास के ग्रामीण काफी मात्रा में मेले का आनंद लेने के लिए सहपरिवार पहुंचते है|  कमरौद ग्राम से पहले डोंगरीपाली ग्राम पड़ता है डोंगरीपाली की पहाड़ी पर स्वप्न देवी महामाया का निवास स्थान है|माता गुफा के अंदर निवास करती है | डोंगरीपाली से पहले मामाभांचा ग्राम में मामा भांचा का प्रसिद्ध मंदिर है|         

Saturday, October 7, 2017

Dongripali - Mahamaya Mata ,Gufa (माँ महामाया ग्राम- डोंगरीपाली -बागबाहरा -महासमुंद )

महाकाल रात्रि सिद्धी दात्री आदि शक्ति महामाया 
प्राकट्य दिवस आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा ) 15 -07 -2011 
सद गुरुओ  की प्रेरणा स्त्रोत से विश्व कल्याण हेतु अखंड ज्योति प्रज्वलित भाद्र शुक्ल पक्ष अनंत चतुर्दशी 11-09 -2011 
माँ जगत जननी की दिव्य ज्योति गुफा के अंदर प्रज्वलित है| 28 -09 -2011  
Mahamaya Mata


Dongripali -Mahasamund-Chhattisgarh




Wednesday, October 4, 2017

Champai Mata Gufa And Godhara Daldali Umarda,Mahadev Pathar,Baba Dera,Rani Khol Gufa (चम्पई माता गुफा ,गोधारा दलदली ,महादेव पठार ,बाबा डेरा ,रानी खोल गुफा )

चम्पई माता गुफा - ग्राम -मोहन्दी ,अरंड ,बेलर ,तरपोंगी  

maa champai
Champai Mata

आदिशक्ति माँ चम्पई | मोहन्दी ग्राम के पहाड़ के ऊपर एक विशाल गुफा के अंदर निवास करती है | माता रानी तीन पिंडियो के रूप में गुफा के अंदर निवास करती  है | माँ चम्पई प्राचीन चम्पापुर की कुल देवी है| चम्पई माँ  को खल्लारी माता के बहन के रूप में भी पूजा जाता है | माता की गुफा लगभग १०० फिट है जिसे देख  भक्त आश्चर्य में पड जाते है |  इस स्थान का पठारी मैदान देखने लायक है

maa champai guffa
Maa Champai Gufa

चारो तरफ हरे भरे वन विशाल पर्वत से घिरा हुवा है| यही पठारी रास्ते होते से होते  हुवे महादेव पठार ,बाबा डेरा ,रानी खोल गुफा तक पंहुचा जाता है रास्ते बडी  दुर्गम है| माँ चम्पई के दर्शन के लिए (मयूर ) भी माता के दरबार में आते  है| इस स्थान पर गुप्त खजाने होने की भी बात कही जाती है|       


गोधारा दलदली उमरदा (महासमुंद )

daldali godhara umarda
Shiv Mandir Daldali

गोधारा व् शिव मंदिर ग्राम उमरदा  के दलदली मे है| इस स्थान पर जामुन वृक्ष के नीचे से पवित्र जल की धारा फूटी है| जिसे गौधारा कहा जाता है | गोमुख से निरंतर जल की धारा निकलती रहती जिसका जल भीषण गर्मी के दिनों में भी कम नही होता  है| जो यहाँ का प्रमुख आकर्सन का केंद्र है| यहाँ पर एक प्राचीन शिव मंदिर है|
godhara(ghaudhara)umarda,mahasamund
Godhara Daldali Umarda

साथ ही अनेक निर्माधीन शिव मंदिर है | पूरा मंदिर परिसर प्राकृतिक हरियाली से घिरा हुवा है यहा  पर आके  बड़ी ही सुखद  अनुभव प्राप्त  होता है|  जिस कारन लोगो का आना जाना लगा रहता है | यहाँ पर सावन सोमवारी को भारी भीड़ देखने को मिलती है|  जिसमे दूर दूर से भक्त भोले नाथ को जल अभिषेक करने के लिए  आते  है | और पवित्र  गोमुख के जल को अन्य शिवालय में ले जाते है| यहाँ पर महाशिवरात्री का विशेष महत्व है | यहा  प्रति वर्ष छेरछेरा के दिन मेले का आयोजन किया जाता है| जिसमे भारी  भीड़ उमड़ती है|        



महादेव पठार गौरखेड़ा  

mahadev pathar ghaur kheda
Mahadev Pathar ,ShivLing

महादेव पठार गौरखेड़ा ग्राम के पठारी मैदान के अंतरगत आता है | इस स्थान पर एक अति प्राचीन शिवलिंग देखने को मिलती है शिवलिंग की  स्थापन किसने किया इसकी ठीक जानकारी किसी को नहीं  है| 
mahadev pathar
Mahadev Pathar

maa parvati mahadev pathar
Parvati Mata Mahadev Pathar

 मगर आस पास के ग्रामवासी बताते है | की इस क्षेत्र पर कभी (चम्पापुर) नामक गढ़  हुवा करता था| उस समय के  तात्कालिक राजा ने  शिवलिंग की स्थापना करवायी  होगी शिवलिंग से थोड़ी आगे आदि शक्ति माँ पार्वती की प्रतिमा है| अब यहाँ पर नवरात्रि में भक्तो द्वारा मनोकामना ज्योति जलाई जाती लोग काफी मात्रा में यहाँ पहुंचते है| मंदिर के समीप एक बारहमासी  नाला बहता रहता है|      



बाबा डेरा
mahadev pathar,baba dera
Baba Dera Gufa

BABA DERA GUFA
Baba Dera


बाबा डेरा के बारे में कहा जाता है की कभी यहा  किसी तपस्वी साधु ने यहाँ तप किया था | और ज्योति जलाई थी साथ ही उसका निवास स्थान था | इस कारन इसका नाम बाबा डेरा पड़ा | बाबा डेरा को देखने से लगता है की यह गुफा साधना के लिए उचित स्थान है| इस कारन इसको सत्य घटना माना जाता है| यहाँ गुफा का विशाल चट्टान नित-नित बड़ रही है| यहाँ पर आज भी साल के दोनों नवरात्रि में बाबा की याद मनोकामना ज्योति जलाते है| और इस खौफनाक स्थान पर ९ दिनों तक पूजा अर्चना करते रहते है| यह ग्रामवासीयो का परम आस्था का केंद्र है|बाबा डेरा महादेव पठार से लगभग दो किलोमीटर की दुरी पर है| यहाँ बाकि दिनों की अपेक्षा नवरात्रि में मोटर सायकिल के द्वारा पंहुचा जा सकता है| यही से थोड़ी दुरी पर रानी खोल गुफा पड़ता है|      

रानी खोल गुफा 

RANI KHOL MAHADEV PATHAR
Rani Khol Gufa

इस गुफा के बारे में कहा जाता है की चम्पापुर के राज्य पर जब आक्रमण हुवा तब रानी लोकप्रभा के सम्मान बचाने के लिए गुप्त स्थान पर सुरंग के मार्ग से रानी को यहाँ रखा गया था जब युद्ध समाप्त हुवा तो राजा ने रानी को बहुत ढूंढा मगर रानी का कही पता नहीं चला रानी लोकप्रभा रहस्य ढ़ग से गायब हो गयी थी| कुछ लोगो का मानना है की| रानी भूख प्यास के कारन मर गयी या किसी जंगली जानवर का शिकार हो गयी | रानी खोल गुफा और चम्पई माता गुफा एक ही गुफा हो सकती है| चम्पई गुफा प्रवेश द्वार और रानी खोल गुफा निर्गम द्वार हो सकता है क्युकी दोनों गुफा एक में ही मिला होगा ऐशा प्रतीत होती है| गुफा से थोड़ी दूर आगे एक झरना है|


टिप :-  यहाँ पर चम्पई माता की गुफा को छोड़कर बाकि सभी जैसे रानी खोल गुफा,बाबा डेरा गुफा व महादेव पठार के रास्ते काफी  दुर्गम है | व घने जंगलो से घिरा हुवा है|  रास्ते भी ठीक नहीं है| साथ में जंगली जानवरो का आना - जाना बना रहता है| इसलिए जब भी यहाँ पधारे अपने साथ अपने दोस्तों व जंगलो के बारे में जानकारी रखने वालो को साथ में जरूर लाये|       

Thursday, September 28, 2017

Dhaskud Waterfall,Borid ,Sirpur-Mahasamund (धसकुड़ झरना बोरिद- सिरपुर -महासमुंद)

धसकुड़ झरना सिरपुर से 8 किमी की दुरी पर बोरिद गांव के घने जंगल में स्थित धसकुड़ में जहां पर मनोहारी झरना है। यहां प्रकृति का सौंदर्य देखते ही बनता है। यहां का जलप्रपात बरसाती पानी से बनता है| तथा  गर्मी के दिनों में इसका जल बहुत धीमी हो जाती है|  
Dhaskud Waterfall,sirpur
Dhaskud Waterfall Borid -Sirpur

पठार के ऊपर एक वट वृक्ष है| जिसमे एक चिमटा लगा हुवा है स्थानीय लोगो के अनुसार यह चिमटा किसने लगाया है उसके बारे में किसी को पता नहीं है| उसकी बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा करते है अब तो उस स्थान पर ग्राम वासी नवरात्रि में मनोकामना ज्योति जलाते है भक्तो का आना जाना बना रहता है| 

यही बोरिद ग्राम से प्रसिद्ध चांदा दाई (गोड़ गुफा )जिसे कुछ लोग नागार्जुन गुफा भी कहते है वहा जाया जाता है मगर रास्ते  दुर्गम है बहुत से नालो को पार कर उस स्थान में पंहुचा जाता है|
इन्हे भी देखे :-


Wednesday, September 27, 2017

Turturiya -Valmiki Ashram,Luv Kush-Birth Place(तुरतुरिया -वाल्मीकि आश्रम एवं लवकुश की जन्मभूमि)

यह एक ऐतिहासिक स्थल है। यह स्थान पाहाडो के बिच मे है। जिसमे महर्षि वाल्मीकि तथा श्री राम-लक्ष्मण की मुर्तियां है। उसके सामने एक मंदिर मे लव-कुश की युगल मूर्ति है। वहि पर्वत के उपर एक मंदिर मे वाल्मीकि मुनि तथा सीता जी की मूर्तिया है।

luv kush turturiya
गोमुख -तुरतुरिया 

 किन्तू पर्वत हिंसक पशुओ का भय होने से कम लोग ही जाते है।
मंदिर के पास पर्वत पर एक गोमुख बना है।उससे जल निकलता रहता है। ईस जल से बने नाले को लोग सुरसुरी नदि कहते है। गोमूख के जल श्रोत से तुरतुर की आवाज निकलती रहती है। जिस कारण यह स्थान का नाम तुरतुरिया पडा। गोमूख के पास प्राचिन विष्णु कि दो प्रतिमाये है। और एक शिवलिग भी हैै। यहा पर बौध विहार के अवषेश इस स्थान पर है। प्रतिमाये खण्डित अवस्था मे है। यहा पर अनेक प्राचिन प्रतिमाये देखने को मिलती है।
Valmiki Ashram Turturiya
महर्षि वाल्मीकि  आश्रम -तुरतुरिया 

यहा पर नवरात्री मे भक्तो द्वारा भारी मा़त्रा मे मनोकामना ज्योति जलाये जाति है।मंदिर समिती के द्वारा भण्डारे का आयोजन किया जाता है। यह क्षेत्र को परम पावन व मोक्क्ष दायिनी धाम कहा जाता है। क्योकि इस स्थान पर आदि शक्तिी मां सीता का निवास स्थान था। और परम प्रतापी भगवान राम के पुत्र लव कुश कि जन्म स्थिली है यहि उसने विद्या प्राप्त किया था।
turturiya luv kush
लव -कुश की प्रतिमा 


कथा:- तुरतुरिया के बारे मे कहा जाता है। कि भगवान श्री राम द्वारा परित्याग करने पर वैदेहि सीता को फिगेश्वर के समिप सोरिद अंचल ग्राम के(रमई पाठ )मे छोड गये थे वहि माता का निवास स्थान था सिता कि प्रतिमा आज भी उस स्थान पर है। जब मां सिता के बारे मे महर्षि वालमिकी को पता चला तो माता को अपने साथ तुरतुरिया ले आये और सिता मां यहि आश्रम मे निवास करने लगि वहि लव कुश का जन्म हूवा। 
luv kush Birth Place
माता गढ़ 

ram laxman sita-turturiya
राम लक्ष्मण 



turturiya in chhattisgarh
बुद्ध प्रतिमा 
कैसे पहुचे:- यह सिरपुर से मात्र 35 कि मी कि दूरि पर स्थीत है।यह बलौदा बाजार जिले के लवन परिश्रेत्र के विकासखण्ड कसडोल मे आता है। रायपुर से इसकी दुरी लगभग 140 कि मी के आस पास है।रास्ते पक्की बनि हूई है मगर आश्रम से 5  कि मी के पहले रास्ते कच्ची है और काफि घुमावदार है।यदि तुरतुरिया आना है। तो सुबह आना उचित रहता रास्ते दुर्गम है। साम के समय जंगलि जानवर निकलने का डर बना रहता है।  
यहा पर प्रतिवर्ष पौस पुन्नीमा को विषाल मेला लगता है। जिसमे भारी मात्रा मे जन सैलाब उमडता है। जो देखने लायक रहता है।  
इन्हे भी जरूर देखे :-

Sunday, September 17, 2017

Jagannath Mandir Ke Ajube भगवान जगन्नाथ के मंदिर से जुडी कुछ रोचक तथ्य........

प्रारम्भ से पढ़ें…


मार्ग :-
पूर्वी रेल्वे कि हबड़ा- वाल्टेयर लाइन पर कटक से 29 मील दूर खुदरा-रोड स्टेशन है|वहा से एक लाइन पूरी तक जाती है| खुदरा - रोड पूरी २८ मील है| आसन सोल हबड़ा, मद्रास तथा तलचर से पूरी के लिए सीधी ट्रेने चलती है
jagannath mandir ka history
facts of jagannath temple in hindi

कटक ,भुवनेश्वर,खुदरा – रोड आदि से पूरी के लिए मोटर बसे चलती है पूरी स्टेशन से श्री जगन्नाथ जी का मंदिर लगभग एक मील है|

ठहरने का स्थान :-

पूरी में बहुत से मठ है| प्रायः सभी मठो में यात्री ठहरते है| अनेक धर्मशाला भी है|

पुरी मे जगन्नाथ मंदिर के अजुबेः-

(1) मंदिर के सिखर पर लगा झण्डा हमेसा हवा के निपरीत दिशा मे लहराता है।

(2) पुरी मे किसी भी जगह से आप मंदिर पर लगे सूदर्शन चक्र को देखोगे तो वह आपको सामने कि ओर ही लगा दिखेगा।
facts about jagannath temple(3) जैसे की हम सबको पता है की दिन के समय हवा समुद्र से जमिन की तरफ आति है।और शाम के दौरान ईसके विपरीत लेकिन पुरी मे इसका विपरित होता है।

(4) आप कभी भी किसी पक्षी या विमान को मंदिर के उपर उडते हुवे नहि देखेगे।

(5) मंदिर की मुख्य गुम्बत कि छाया दिन के किसी भी समय दिखाई नही देती।

(6) मंदिर के अंदर प्रसाद पकाने के लिये भोजन की सारी सामग्री पूरे वर्ष के लिये भंडार घर मे रहती है। प्रसाद की एक भी मा़त्रा यानि एक भी कण कभी व्यर्थ नही जाती है।आप चाहे कितने भी लोग वहा जाये प्रसाद आपको जरूर मिलेगा चाहे कुछ हजार लोग हो या लाख प्रसाद सभी लोगो को खिला सकते है।

(7) मंदिर की रसोई घर मे प्रसाद पकाने के लिये 7 बर्तनो को एक दूसरे पर रखा जाता है। और लकडी के जलावन पर पकाया जाता है। ईस प्रकृया मे उपर मे रखी सामग्री पहले पकती है फिर क्रमशः नीचे कि बर्तनो कि सामग्री पकती है।

(8) मंदिर के मुख्य द्वार मे पहला कदम रखने पर सागर(समुद्र) द्वारा उत्पन्न किसी भी तरह कि ध्वनी नही सुनाई देति है। जबकी मंदिर के बाहर सुनाई देती है।

facts of jagannath mandir

मंदिर से जुडी रोचक तथ्य:-

मंदिर कि उचाई 214 फिट है।

मंदिर का क्षेत्रफल चार लाख वर्ग फिट मे फैला है।

प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के उपर लगी ध्वजा को मानव द्वारा उल्टा चढ कर बदला जाता है।

मंदिर कि रसोई दुनिया कि सबसे बडी रसोई घर है।
facts about jagannath puri temple in hindi
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विशाल रसोई घर मे भगवान जगन्नाथ को चढाने वाले महाप्रसाद को बनाने 400 रसोईया एवं 200 सहकर्मी काम करते है। 

श्री जगन्नाथ पुरी में स्नान के स्थान :-

                                                        श्री जगन्नाथ पुरी स्नान के स्थान :-



श्री जगन्नाथ पुरी में १ – महोदधि (समुद्र ),

२- रोहणी कुण्ड-कुण्ड ,

३- इन्द्र्धुमन सरोवर ,

४ – मर्कंदय सरोवर

५ -  श्वेत गंगा

६ - चन्दन तालाब,

७  - लोकनाथसरोवर ,

८ – चक्रतीर्थ – ये आठ पवित्र जल तीर्थ है|


१ – श्री जगन्नाथ जी के मंदिर से सीधा मार्ग समुद्र तट को गया है| स्नान का स्थान स्वर्गद्वार कहा जाता है| श्री जगन्नाथ मंदिर से स्वर्ग द्वार लगभग एक मील है|

२ – रोहानी कुण्ड –यह कुण्ड श्री जगन्नाथ मंदिर के भीतर ही है इसमें सुदर्सनचक्र कि छाया पड़ती है | कहा जाता है कि एक कौवा अकस्मात् इसमें गिर पड़ा , इससे उसे सारुप्य – मुक्ती प्राप्त हुई |

३ – इन्द्र्धुमन सरोवर मंदिर से लगभग देड मील पर गुंडीचामंदिर (जनक पुर )के पास है|

४-५ –मरकंडय सरोवर और चन्दन तालाब – ये दोनों ही पास –पास है | श्री जगन्नाथ जी के मंदिर से आधा मील दूर है|


६- श्वेत गंगा सरोवर स्वर्ग द्वार (समुद्रस्नान) के मार्ग में है|

७- श्री लोकनाथ मंदिर के पास लोकनाथ सरोवर है| जगन्नाथ जी के मंदिर से लगभग दो मील है| इसे हर – पार्वती-सर या शिवगंगा भी कहते है|

८- चक्रतीर्थ स्टेशन से आधा मील पर समुद्र तट पर है|
                                                                                           जारी है ……

भगवान श्री जगन्नाथ की कथा - क्यो अपूर्ण निर्मित हुई मुर्तिया .....


                                     कथा:- 

द्वापर में द्वारिका में श्री कृष्णचन्द्र कि पटरानियो ने एक ब़ार माता रोहणी जी के भवन में जाकर उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें श्याम सुन्दर कि व्रज-लीला के गोपी- प्रेम प्रसंग को सुनाये| माता ने इस बात को टालने का बहुत प्रयत्न किया; किन्तु पटरानियो के आग्रह के कारण उन्हें वह वर्णन सुनाने को प्रस्तुत होना पड़ा| उचित नहीं था कि सुभद्राजी भी वहा रहे| अत: माता रोहनी ने सुभद्रा जी को भवन के द्वार के बहार खड़े रहने को कहा और आदेश दिया कि वे किसी को भीतर न आने दे| संजोग वश उसी समय श्री कृष्ण – बलराम वहा पधारे| 

सुभद्रा जी ने दोनों भाइयो के मध्य में खड़े होकर अपने दोनों हाथ फैलाकर दोनों को भीतर जाने से रोक दिया| बंद द्वार के भीतर जो व्रज प्रेम कि वार्ता हो रही थी,उसे द्वार के बहार से ही यक्तिचित सुनकर तीनो के ही शरीर द्रवित होने लगे| उसी समय देवर्षि नारद वहा आ गए| देवर्षि ने यह जो प्रेम-द्रवित रूप देखा तो प्राथना कि ‘आप तीनो इसी रूप में विराजमान हो|’श्री कृष्णचंद्र ने स्वीकार किया -‘कलयुग में दारूविग्रह में इसी रूप में हम तीनो स्थित होंगे|’

प्राचीन काल में मालव देश के नरेश इन्द्र्धुमन को पता लगा कि उत्कल प्रदेश में कही नीलाचल पर भगवान नीलमाधव का देवपूजित श्री विग्रह है| वे परमविष्णु भक्त उस श्री विग्रह का दर्शन करने के प्रयत्न में लगे|उन्हें स्थान का पता लग गया; किन्तु वे वहा पहुचे इसके पूर्व ही देवता उस श्री विग्रह को लेकर अपने लोक में चले गए| उसी समय आकाशवाणी हुई कि दारूब्रम्हारूपमें तुम्हे अब श्री जगन्नाथ के दर्शन होंगे |

महाराज इंद्रधुमन सहपरिवार आये थे| वे नीलाचलके पास ही बस गए| एक दिन समुद्र में एक बहुत बड़ा काष्ठ (महादारु)बहकर आया राजा ने उसे निकलवा लिया इससे विष्णु मूर्ति बनवाने का उन्होंने निश्चय किया| उसी समय वृद्ध बढई के रूप में विश्वकर्मा उपस्थित हुवे| उन्होंने मूर्ति बनाना स्वीकार किया; किन्तु यह निश्चय करा लिया कि जबतक वे सूचित न करे,उनका वह गृह खोला न जाय जिसमें वे मूर्ति बनायेंगे|

महादारू को लेकर वे वृद्ध बड़ई गुंडीचा मंदिर के स्थान पर भवन में बंद हो गए| अनेक दिन व्यतीत हो गए| महारानी आग्रह प्रारम्भ किया –‘इतने दिनों में वह वृद्ध मूर्तिकार अवश्य भूख-प्यास से मर गया होगा या 


मरणासन्न होगा| भवन का द्वार खोलकर उसकी अवस्था देख लेनी चाहिए |’महाराज ने द्वार खुलवाया| बड़ई तो अदृश्य हो चूका था; किन्तु वहा श्री जगन्नाथ,सुभद्रा तथा बलरामजी कि असम्पूर्ण प्रतिमाऐ मिली| राजा को बड़ा दुःख हुवा मुर्तियो के सम्पूर्ण न होने से!, किन्तु उसी समय आकाशवाणी हुई –‘चिंता मत करो !इसी रूप में रहने कि हमारी इच्छा है| मुर्तियो पर पवित्र द्रव्य (रंग आदि )चढाकर उन्हें प्रतिष्ठित कर दो ! इस आकाशवानी के अनुसार वे ही मुर्तिया प्रतिष्ठित हुई | गुंडीचा मंदिर के पास मूर्ति निर्माण हुवा था,अत गुंडीचा मंदिर को ब्रम्हालोक या जनक पुर कहते है|

द्वारिका में एक ब़ार श्री सुभद्रा जी ने नगर देखना चाहा| श्री कृष्ण तथा बलरामजी उन्हें पृथक रथ में बैठाकर ,अपने रथो के मध्य उनका रथ करके उन्हें नगर-दर्शन कराने ले गए|इसी घटना के स्मारक –रूप में यहाँ रथ यात्रा निकलती है|


उत्कल में ‘दुर्गा-माधव-पूजा’एक विशेष पद्धति ही है| अन्य किसी प्रान्त में ऐसी पद्धति नही है| इसी पद्धति के अनुसार श्री जगन्नाथ को भोग लगा नैवेध्य विमला-देवी को भोग लगता है और तब वह महाप्रसाद माना जाता है|

पूरीधाम के अन्य मंदिर :-
(1) गुंडीचा मंदिर
(2) कपालमोचन
(3) एमार मठ
(4) गंभीराम मठ(श्री राधाकान्त मठ)
(5) सिद्धबकुल
(6) गोवर्धन पीठ (शंकराचार्य मठ)
(7) कबीर मठ
(8) हरीदास जी कि समाधी
(9) तोटा गोपीनाथ
(10) लोकनाथ
(11) बेडी-हनुमान
(12) चक्रतीर्थ और चक्रनारायण
(13) सोनार गौराग्ड
(14) कानवत हनुमान

                                                             जारी है ……