Saturday, February 8, 2020

Tarighat Patan प्राचीन व्यापारिक केंद्र तरीघाट (दुर्ग- छत्तीसगढ़)


दुर्ग जिले के पाटन विकासखंड पर बहती खारुल नदी के किनारे पर बसा है,  

यह प्राचीन तारिघाट ग्राम जहा पर कभी पांच सभ्यता के निवास होने का प्रमाण मिले है| जिसे राजा जगत पाल का टीला कहा जाता है| यह स्थल ढाई हजार वर्ष पुराना अंतराष्ट्रिय व्यापारिक केंद्र हुवा करता था| इस शहर कि बनावट मोहन जोदाडो कि सभ्यता के सामान व्यवस्थित सभ्यता प्रतीत होती है| पुरातत्व विभाग कि खुदाई के दौरान अनके प्राचीन अवशेष प्राप्त हुई है जिसमे ,मिटटी के मनके, मिट्टी के खिलौने कई अर्ध मानिक, व सोने के सिक्के के साथ  ,प्राचीन विष्णु कि मूर्ति  
तरीघाट पुरातत्व स्थल

खारुल नदी के तट पर ऐतिहासिक धरोहर – तरिघाट
प्राप्त हुई है| यहाँ पर ,कुषाण कालीन, सात वाहन कालीन, कलचुरी कालीन सिक्के भी प्राप्त हुए है| इंडो ग्रीक व इंडोसेथियस मुद्राए भी प्राप्त हई है| जिसे संग्रहालय में सजो कर रखा गया है|  पुरातत्व विभाग के अनुसार इस शहर में थी मनको कि फैक्ट्री,जहा पर कभी पांच सभ्यता एक के बाद एक समाप्त हो गयी जल कर नष्ट हो गया प्राचीन व्यापारिक केंद्र| 
तरीघाट में प्राचीन सभ्यता


तरीघाट में प्राचीन सभ्यता के अवशेष

 आस्था को जीवांत करता ,तारिघात का प्राचीन महामाया मंदिर

राजा जगत पाल टीले के समीप माँ महामाया मंदिर भक्तो के आस्था का प्रमुख केंद्र है,यहाँ दूर दूर से भक्त माता के दर्शन करने आते है| 
महामाया मंदिर तरीघाट 

वही माता अपने भक्तो के कष्ट को दूर करती है.ग्रामीणों का माता पर विशेष आस्था है| और ग्रामीणों द्वारा माँ महामाया को ग्राम कि आराध्य देवी मानते है|एव हार सुख दुःख में माँ महामाया अपने भक्तो का साथ देती है| और उनकी मनोकामना पूर्ण करती है| एव माता अपने भक्तो पर हमेशा खुशिया बरसाती रहती है ,एवं  अपने भक्तो को मुस्किलो से बचाती है|,मंदिर में त्रिमूर्ति स्थापित स्वयंभू है ,महामाया ,महालक्ष्मी महासरस्वती तीनो माता एक ही स्थान पर विराजमान है| माँ महामाया का मंदिर ऐतिहासिक धरोहर है| 

सालिक देव कलचुरी कालीन



मंदिर का निर्माण लगभग ४००० वर्ष पूर्व कलचुरी वंशज के राजावो द्वारा निर्माण करवाया गया था ,मंदिर को बनाने में चुना ,गुड और काले पत्थरो का उपयोग किया गया है,मंदिर में लगे काले पत्थरो को देखकर लगता है कि इन पत्थरो को बाहर से मगाया गया था| मंदिर के गुम्बत में नागदेव कि प्रतिमा उकेरी गयी है| लोग कहते है कि मूर्तिकार को नागदेव के दर्शन हुवे थे| वर्तमान में आज भी मंदिर के पुजारी व ग्रामीण को विशेष औसर पर नागदेव के दर्शन प्राप्त होते है| साल के दोनों चैत्र व क्वार पक्ष कि नवरात्री में भक्तो द्वारा ज्योति कलश स्थापितकरने कि परंपरा चली आ रही है| ग्रामीणों द्वारा बताया जाता है| कि महामाया मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरुर पूरी होती है|

माता का चमत्कार
मढ़ेली में रहने वाले बद्री सेठ को माता के आशीर्वाद से कन्या रत्न कि प्राप्ति हुई ,जिसका नाम महामाया रखा गया 

नागपुर से मराठा वंशज के परिवार से महामाया मंदिर के दर्शन करने आते है| उनके अनुसार सपनो में माता के दर्शन हुए ,मंदिर परिसर के सामने दो शेर लोहे के संकर से बंधा हुवा है |स्थानीय निवासी बताते है,कि एक समय एक चोर माता के आभूसन व मंदिर के रूपये पैसे चोरी करके ले जा रहा था| तब माता का शेर प्रगट हो गया और जोर जोर से गर्जना करने लगा | शेर कि आवाज सुनकर चोर वहा से सामान छोड़ कर भाग गया| तब से शेर को लोहे के जंजीर में बांध कर रखा गया है|
यह तरिघाट धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र के साथ-साथ पौराणिक महत्व का स्थल है|       

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