अदभुद है माँ सीता की प्रतिमा राम के परित्याग के बाद इस स्थान पर माँ का निवास था माता के दर्शन को भगवन राम,विष्णु,हनुमानजी ,गरुड़ जी ,शिव जी ,कालभैरो यहाँ पर आये थे ओर यही पर सब रम गए इसलिए इसका नाम रमई पाठ पड़ा |इस स्थान पर कुछ दिनों के पश्चात वाल्मीकि आये ओर माता को अपने आश्रम (तुरतुरिया ) ले गए वही पर लव - कुश की जन्म स्थली है|
माता का मंदिर घने जंगल व विशाल पहाड़ो के बीच में स्थित है भक्तो को माता के प्रती अटूट आस्था व प्रेम है|
6 वी सदी कि है यहाँ
कि मुर्तिया माता को किसने स्थापित किया
इसका रहस्य अभी तक पता नही चल पाया है| स्थानीय लोगो कि जानकारी के अनुसार इस
स्थान पर कभी किशी ऋषि ने यहा पर तप किया और माता कि आराधन किया था| फिर
माता के आशीर्वाद से पवित्र छोटी गंगा का यहाँ उद्गम हुवा|
इस स्थान कि महत्व :-
यहाँ पर माता रानी कि प्रतिमा 6वी सदी का है| माता रानी को किसी
ने स्थापित नहीं किया माता स्वयम्भू है| माता के मंदिर के
समीप प्राचीन हनुमान जी कि प्रतिमा काले रंग कि शिला पर है उसके आगे भैरव बाबा कि
प्रतिमा है| जो माता के सेवा मे तत्पर दिखाई देते है| इस स्थान
को तपस्या स्थली के रूप में भी पूजा जाता है| यहाँ पर विशाल आम्र
वृक्ष के निचे पवित्र गंगा का उद्गम हुवा है| जो सभी भक्तो कि
प्याश बुझती है इसके जल को बहुत्र पवित्र माना गया है| इसी कि जल से माता
रानी कि पूजा किया जाता है| साथ ही इसके जल को पीने के लिए उपयोग किया जाता
है| यहा का जो जल श्रोत है वह भीषण गर्मी में भी नहीं सूखता है निरंतर
बहती रहती है| यहा पर चैत्र क्वार कि नवरात्रि में माता को
प्रसन्न करने के लिए भक्तो के द्वारा मनोकामना ज्योति जलाई जाती है साथ ही भंडारे
का आयोजन किया जाता है|
यहा पर
माता के सम्मान में प्रती वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे भारी संख्या में
लोग इस मेले में सामील होते है| यहाँ पर मन्दिर परिसर पर अनेक निर्माधीन मंदिर का
निर्माण किया गया है जिसमे राम जानकी मन्दिर , दुर्गा माता मंदिर ,महादेव
का मंदिर गंगा माता का मंदिर आदि प्रमुख है|
यहा पर एक विशाल वृक्ष पर गणेश भगवान कि प्रतिमा
स्वयं अंकित होती जा रही है| जो काफी अदभुद है|
यहाँ पर अनेक मंदिर व सामाजिक भवन का निर्माण कार्य चल रहा है|
यहाँ पर अनेक मंदिर व सामाजिक भवन का निर्माण कार्य चल रहा है|
इस स्थान पर कैसे पहुचे :-
यह मंदिर राजिम से 33 कि.मी कि दूरी पर फिंगेश्वर
से होते हुवे छुरा मार्ग पर सोरिद अंचल ग्राम पर ग्राम से १ कि.मी कि दूरी पर
स्थित है| यह स्थान महासमुन्द से भी काफी नजदीक है
महासमुन्द से राजिम फिंगेश्वर छुरा मोड़ मार्ग होते हुवे माता के दरबार में पंहुचा
जा सकता है| अब यह स्थान पर्यटन स्थान के रूप में उभरता नजर आ
रहा है इसका श्रेय वहा कि मंदिर समीतियो को जाता है| जो माता कि सेवा मे
हमेश जुटे रहते है तथा निस्वार्थ भाव से माता कि सेवा करते आ रहे है|
इन्हें भी जरुर देखे :-
सीता जी की ऐसी दुर्लभ प्रतिमा अद्भुत और अनोखी...........
ReplyDeleteJai mata di.
ReplyDeleteAll gods and goddesses are there.
Swayambhu Ganesha? or Mata?
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