गिरौदपुरी धाम के दर्शन / बाबा का जीवन परिचय
छत्तीसगढ़ के इस पावन धरा पर, गिरौदपुरी नामक ग्राम में सन
1756 ईसवी में एक निर्धन परिवार के बीच गुरु घासीदास
बाबा का जन्म हुआ था ,बाबा साहब का परिवार कृषि कार्य करके जीवन
यापन किया करते थे ,
आगे चलकर छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ के संस्थापक बने ,बाबा उत्तर प्रदेश में जन्मे श्री जगजीवन दास से प्रेरणा पाकर छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ को विकसित किया|
घासीदास बाबा को ज्ञान प्राप्ति के संबंध में प्रचलित कथा ?
कथा के अनुसार एक बार घासीदास बाबा अपने भाई के साथ पैदल तीर्थ यात्रा के लिए जगन्नाथ पुरी जा रहे थे, चलते चलते सारंगढ़ रियासत के ग्राम {{"कोसीर"}} में
पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए रुके, तभी उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई ,
History of giroudpuri dham in Hindi
बाबा के मुख से एकाएक <<“सतनाम”>> शब्द प्रकट हुआ ,उसके पश्चात उन्होंने, अपनी जगन्नाथ पुरी की यात्रा, स्थगित कर दी, इन्हीं क्षेत्र में सर्वप्रथम अपनी वाणी से उपदेश देना आरम्भ किया ,बाबा के अमूल्य वचन सुनकर लोग मंत्र मुक्त रह गए, सामाजिक कुरीतियों ,छुआछूत पाखण्ड वाद के चलते, असंख्य दलित, शोषित व्यक्तियों में आस्था प्रेम विश्वास शांति और अपने मानव जन्म का महत्व समझ में आया, बाबा के अनुसार प्रकृति किसी से भेदभाव नहीं करती सूर्य
,चन्द्रमा ,आकाश भेदभाव नहीं करती तो ,इस मिट्टी की नस्वर काया कैसे मानव मात्र में भेद कर सकती है| बाबा के अनमोल वचन से लोगो में बाबा के प्रति आस्था जगी
गुरु घासीदास बाबा का शिक्षा व सिद्धांत
(पहला) सतनाम पर विश्वास करो|
(दूसरा) जाती भेद के प्रपंच में ना पड़ो|
(तीसरा) मांस भक्षण ना करो|
(चौथा) पर नारी को माता समान मनो |
(पांचवा) मूर्ति पूजा मत करो|
(छठवां) शराब तथा अन्य प्रकार के मादक वस्तुओं का सेवन मत करो|
(सातवा) गाय भैंस पर जुवा ना रखो व अपरांत के पश्चात खेत ना जोतो |
(आठवां) सत्य आचरण करो तथा सत्य बात को स्वीकार करो|
गुरु गद्दी |
आत्मज्ञान से <<"सतनाम">> शब्द पाकर बाबा ने कृषि कार्य का, परित्याग कर "तपस्वी "बन गए, वर्तमान समय में आज भी गिरौध नामक ग्राम से
1 मील दूरी पर एक चबूतरा स्थित है| जिस पर तेंदू का वृक्ष विद्यमान है| बाबा उसी पेड़ के छाया तले बैठकर सतनाम का चिंतन किया करते थे, बाबा का चमत्कार देखकर लोग उसको संत के पद पर आसीन कर दिए आज उस स्थान पर अनेक भव्य मंदिर का निर्माण किया जा चुका है | संत श्री गुरु घासीदास सोनाखान के घने जंगलों पर 6 माह तक अंतर्ध्यान रहकर तप किया करते थे|
चरण कुंड गिरौदपुरी |
छाता पहाड़ |
नारी जाति के प्रथम उद्धारक संत शिरोमणि श्री गुरु घासीदास बाबा ?
घासीदास बाबा के, आदेश अनुसार इस क्षेत्र की ,सतनामी महिलाएं घर में काम करने वाली ग्रहणी धान कटाई का हसिया हाथ में लेकर खेत खलिहान में उतरती है| इस स्वाधीनता कर्मठता का अधिकार दिलाने के लिए बाबा ने प्रथम झंडा उठाया , धार्मिक कार्यों पर पुरुष के समान अधिकार एवं विधवा स्त्री का पुनर्विवाह और एक स्त्री के विवाह आदि संबंधित हक के लिए उसने अपने जीवन में कठोर संघर्ष किए बाबा के इस कार्य से छत्तीसगढ़ के सभी पिछड़ी जाति को लाभ मिला तथा ,पुरुष प्रधान
समाज की तरह स्त्री को हक प्राप्त हुआ जिसके चलते ,घर परिवार की उन्नति में नारी हाथ बटाने लगी|
बाबा घासीदास की जनम स्थली |
सतनाम का प्रसार प्रचार
बाबा के द्वारा सतनाम का प्रचार बढ़ी दूर-दूर तक किया गया एवं पैदल ही बालाघाट लांजी, मंडला जबलपुर अमरकंटक बस्तर तथा दंतेवाड़ा
कि यात्रा कि ,रास्ते में असंख्य रोगियों को अपने
चमत्कार से रोग मुक्त किया. जिसके प्रभाव से लोग बाबा से प्रभावित हो गए|
गुरु घासीदास बाबा जिस समय बस्तर की यात्रा कर रहे
थे तब कुछ लोगों ने
राजआज्ञा से बाबा को बंधक बनाकर मा दंतेश्वरी के मंदिर में बली देने के लिए पकड़ कर ले गए, जैसे ही बाबा को बली दि जाने वाली थी| तभी मां दंतेश्वरी रौद्र रूप हो गई, राजा एवं पुजारी मां के क्रोध से थर- थर कांपने लगे तथा बाबा के चरणों में
गिरकर अपनी गलती कि क्षमा मांगी तब से लेकर आज तक दंतेश्वरी मंदिर में बलि प्रथा का समापन
हुवा, इस चमत्कार स्वरूप पूरे बस्तर में बाबा के प्रति अटूट आस्था और श्रद्धा पैदा हुई|
गुरु घासीदास का समाज सुधार का कार्य एवं आंदोलन
1820 से 1830 तक निरंतर चलता रहा व सन
1836 में निर्वाण प्राप्त किया ,उसके पश्चात -कबीर पंथ की भांति सतनाम में भी गुरु प्रणाली आरम्भ हुई ,गुरु घासीदास के मृत्यु के पश्चात उसके जेष्ठ बालक दास महंत
गुरु हुए सन
1860 में बालक दास की मृत्यु पश्चात गुरु गद्दी के लिए संघर्ष छिड़ गया।
गुरु घासीदास बाबा के सम्मान में राज्य सरकार के द्वारा 14 करोड़ रुपए की लागत से कुतुम मीनार से भी ऊंचे जैतखाम का निर्माण करवाया गया है|
इस पवित्र धाम में विशाल जैतखाम पूरी दुनिया में शांति का संदेश देने के लिए श्वेत पताका फहराया जाता है| इस तीर्थ स्थल पर फागुन सुक्ल पक्ष पंचमी से सप्तमी तक तीन दिवसीय गिरौद का भव्य मेला लगता है| मेले की भव्यता देखते ही बनती है| पहाड़ों की गोद में बसे होने के कारण इसे गिरौध कहा जाता है| यहां पर बाबा के चरण कुंड, अमृत कुंड ,कुछ ही दूरी पर स्थित है| बृहद जैतखाम से छाता पहाड़ की दूरी 7: 30 किलोमीटर है| जो कि प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है।
girodhpuri jaitkham image |
इस पवित्र धाम में विशाल जैतखाम पूरी दुनिया में शांति का संदेश देने के लिए श्वेत पताका फहराया जाता है| इस तीर्थ स्थल पर फागुन सुक्ल पक्ष पंचमी से सप्तमी तक तीन दिवसीय गिरौद का भव्य मेला लगता है| मेले की भव्यता देखते ही बनती है| पहाड़ों की गोद में बसे होने के कारण इसे गिरौध कहा जाता है| यहां पर बाबा के चरण कुंड, अमृत कुंड ,कुछ ही दूरी पर स्थित है| बृहद जैतखाम से छाता पहाड़ की दूरी 7: 30 किलोमीटर है| जो कि प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है।
भंडारपुर तेलासी खड़वा
, चटुवा, खपरी बोडसराधाम, चक्रवाय
अमरताल जैसे सतनाम धर्म स्थल में अलग अलग तिथियों में मेले का आयोजन होता है|
इस पावन गिरौधपूरी
नगरी में बाबा के दर्शन के लिए सभी धर्म के लोग दूर दूर से आते हैं।
गिरौदपूरी धाम कैसे पहुंचे:-
छत्तीसगढ़ी की राजधानी रायपुर से
135 किलोमीटर ,बलौदा बाजार होते हुए सड़क मार्ग से सीधे गिरोदपुरी पहुंचा जा सकता है| बिलासपुर से
80 किलोमीटर एवं शिवरीनारायण से
16 किलोमीटर दूरी पर स्थित है| महासमुंद से सिरपुर के रास्ते कसडोल होते हुए भी बड़ी सुगमता से
इस धाम में पहुंचा जा सकता है। यहां आस-पास अनेक तीर्थ स्थल है जिसके दर्शन किया जा सकता है|
यह जानकारी कैसे - लगी, नीचे "कमेन्ट बॉक्स" में हमें बताये
इन्हे भी जरूर देखे :-
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इन्हे भी जरूर देखे :-
Very nice place
ReplyDeleteAmazing place
ReplyDeleteJai Satnam
ReplyDeleteSaheb Satnam ji
Deleteभैया जी आपका पोस्ट पढ़कर तो हमेश ही दिल खुश हो जाता है , आप हमारे भी इस पोस्ट को जरूर पढ़े -> Guru Ghasidas Giraudhpuri Dham Chhattisgarh
ReplyDeletejay HINDU DHARM KI
ReplyDeleteबहुत ही भ्रामक और गलत जानकारी है महोदय पहले सही जानकारी इकट्ठा किया करे उसके बाद पोस्ट किया करे आपको लाखो लोग पढ़ रहे है दिशा भ्रमित मत करे सुनी सुनाई कहानी नही वास्तविक इतिहास को बताओ 😡🤬🤬🤬और मालूम नही है तो हमसे संपर्क करो
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