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लाखेसरी गुड़ी |
लाक्षागृह के दर्शन:- प्राचीन मंडपनुमा खंडहर (लखेसरी गुड़ी )
जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है| की पाण्डव पुत्र, व माता कुंती वारणाव्रत के दौरान खलवाटिका (खल्लारी ) आये थे तभी सकुनी के द्वारा इस स्थान पर पांडवो को मारने के लिए लाख से निर्मित एक महल का निर्माण खल्वाटिका में करवाया था| जब महल को आग में झोका गया तो सुरंग के रास्ते सभी पांडव माता कुंती के साथ वहा से दूर सुरक्षित निकल गए | जहा से निकले उसे वर्तमान में लखेशरी गुड़ी कहा जाता है | जिसमे अभी भी कोयले के जले अवशेष मिलते है | आस पास निवासी के अनुसार पहले यह जंगल था व किसी सुरंग खंडहर के समान प्रतीत होता था मगर समय बीतते व अतिक्रमण के कारन इस स्थान का प्राकृतिक स्वरुप नस्ट हो गया है | जिसके अवशेष मात्र यहाँ देख सकते है| खल्लारी बस्ती के कुम्हार व मेहर पारा के बीच खेत में जर्जर हालत में स्थित है | तथा मंदिर के सभी पत्थर को कोई वहा से हटा दिया गया है | जिसमे छोटा शिवलिंग रखकरकुछ त्योहार आदि में यहाँ पूजा अर्चना होता है |
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मंडपनुमा खंडहर-लाखेशरी गुड़ी |
पुरातात्विक महत्त्व का स्थल होने के बावजूद पुरातत्व विभाग व खल्लारी मंदिर समिति इस पर ध्यान नहीं दे रहा है| ऐसा लगता है की कुछ वर्ष उपरांत यह स्थान से मंदिर समाप्त हो जायेगा | अभी भी समय है| सभी पत्थरो को ठीक से जमा कर चारो तरफ से घेरा कर पर्यटन आने वाले के लिए उचित रास्ता बनाकर इसे सजो कर रखा जा सकता है|
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लाक्षागृह के अवशेष |
मेरा सभी भक्तो से निवेदन है| की जब भी खल्लारी दर्शन को आये तो लखेशरी गुड़ी जरूर जाये और मंदिर प्रशासन को इसे संरक्षित करने के लिए आग्रह करे | पौराणिक धरोहर को हम ऐसे ही नहीं छोड़ सकते है|
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खल्लारी माता पहाड़ी ऊपर वाली |
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खल्लारी मंदिर -प्रवेश द्वार |
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खल्लारी माता निचे वाली |
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भीम पाव ,भीम चूल |
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डोंगा पत्थर |
टिप :- यदि संरक्षित नहीं किया गया तो इसे अंतिम दर्शन मान के चले बाकि माँ खल्लारी के कृपा के ऊपर है|