Sunday, December 11, 2016

sweth ganga shiv temple Bamhani श्वेत गंगा शिव मंदिर बम्हनी

ब्रम्हनेश्वरनाथ महादेव श्वेत गंगा ग्राम बम्हनी जिला महासमुंद
श्वेत गंगा बम्हनी
ब्रम्हनेश्वरनाथ महादेव



जिला मुख्यालय से महज १० कि. मी दूरी पर ग्राम बम्हनी स्थित है यहाँ का मुख्य आकर्षण का केन्द्र है श्री ब्रम्हनेश्वरनाथ महादेव का प्राचीन शिव मंदिर इसलिये यहाँ शिव भक्तो का विशेष आस्था का केंद्र है यह मंदिर अति प्राचीन है यह कितना वर्ष पुराना इसके बारे में किसी को ठीक से ज्ञात नहीं है फिर भी अनुमान लगाया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत १९६० के आसपास पंचवटी परिवार के द्वारा बनवाया गया है
temple in bamhani,mahasamund

उस समय यहाँ पर घने जंगल हुवा करता था पंचवटी परिवार के श्री अर्जुन प्रशाद जी यहा पर रोज भ्रमन करने के लिए आते थे तभी उसकी मुलाकात साधना में लीण परम तेजस्वी ऋषि देवल से हुई उसी के अनुग्रह के कारण यहाँ पर श्वेत गंगा ओर ब्रम्हनेश्वरनाथ महादेव का प्राक्टय हुवा और अस्वासन दिया कि यदि आवश्यकता पड़ी तो और दुसरे नदी को यहाँ प्रकट करेंगे इसी करण इस स्थान को श्वेत गंगा कहा जाता है यहाँ पर शिव मंदिर के समीप एक कुण्ड है जिसमे निरंतर गर्म जल कि धारा प्रवाहित होती रहती है कुण्ड के जल को अति पावन माना गया है यहाँ पर आसपास विशाल बरगद का वृक्ष है जो साधन के लिए उचित स्थान मालूम पड़ता है यही पर श्री देवल ऋषि वट वृक्ष के निचे तपस्या करते थे और यही उसका निवाश स्थान था उसका आसन अभी भी है लोग उसकी पूजा अर्चना बड़े श्रधा के साथ करते है यहाँ पर और


शिव मंदिर है नर्मदेश्वरनाथ महादेव हनुमान मंदिर रामेश्वर शिव जी केवट समाज का शिव मंदिर देखने योग्य है यहाँ पर सावन माश में कवरियो के द्वार शिव जी का विशेष अभिषेक किया जाता है और यहाँ के कुण्ड के जल को आसपास के शिव स्थल जैसे सिरपुर,राजिम,चंपारण ,दलदली


,महादेव घाट आदि में ले जाया जाता है यहाँ प्रतीवर्ष माघ माश कि पूर्णिमा को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है.और महाशिवरात्रि में पंचकोशि साधुवो के द्वारा विशाल यज्ञ का आयोजन किया जाता है जो देखने योग्य है यहाँ का वातावारा अति रमणीय हैयहाँ पर आप एक बार आयेंगे तो यही पर निवाश करने कि इच्छा होती है पूरा वातावरण शिव मई लगता हैमंदिर का निर्माण कार्य अभी चल रहा है।

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Friday, November 25, 2016

Singhoda Temple,Mata Rudreswari-Saraipali (सिंघोड़ा मंदिर माता रुद्रेश्वरी सरायपाली )

           माँ रुद्रेश्वरी मंदिर सिंघोड़ा घाटी
              
Singhoda Temple
माता रुद्रेश्वरी मंदिर ,सिंघोड़ा 

यह मंदिर (माता रुद्रेश्वरी मंदिर ,सिंघोड़ा) महासमुंद जिले के सरायपाली ब्लाक में स्थित है, जो जिले से लगभग 110 किमी. की दुरी पर NH53 हाईवे के किनारे स्थित है .
बाबा शिवानन्द की प्रतिमा 

इसका निर्माण बाबा श्री शिवानन्द जी के द्वारा लगभग 25 – 30 वर्ष पहले किया गया था .
मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण बाबा ने भिक्षा मांगकर तथा इस मार्ग से जाने वाले ट्रक व् अन्य यात्रियों को मंत्र के द्वारा रोककर मंदिर निर्माण हेतु सहायता मांगकर किया था. एवं कहा


जाता है मंदिर कि निर्माण के बाद इसमें 108 बलि देकर देवी माँ कि स्थापना बाबा ने कि थी
Mata Rudreswari Saraipali
माता रुद्रेश्वरी 

और मान्यता है अभी भी मंदिर के अन्दर एक गुफा है . जिसमे स्यवं काली माँ विराजमान हैं जो प्रति वर्ष रक्त का सेवन करती हैं, तथा कहते हैं कि उस गुफा का द्वार माता कि प्रतिमा के ठीक पिछे है. जहाँ प्रमुख पुझारी के अलाव किसी को जाने की आनुमति नहीं है .              
 सामान्य संरचना


सामान्यतः मंदिर में  सीढियाँ हैं जो मंदिर के मुख्य द्वार तथा दो ज्योति कुञ्ज तक जाती है, जिसमे एक कुञ्ज में घी के दिये तथा एक में तेल के दिये जलाये जाते हैं ,
मंदिर के दीवारों पर 9 दुर्गा कि प्रतिमा निर्मित है जिसके निचे सिक्के दिवार पर चिपकते हैं


यहाँ एक भव्य हवन कुण्ड भी है
 
इस मंदिर कि प्रसिद्धी को देखते हुये मन मांगी मुराद पाने के लिए लोग देश – विदेश से आते हैं,   आप भी पधारकर माँ की कृपा प्राप्त करें धन्यवाद!  जय माता दी

 संकलन – वृन्दावन पटेल निर्देशक – गिरधारी पटेल

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Wednesday, November 16, 2016

Mahadev ghat kanekera mahasamund महादेवघाट ग्राम कनेकेरा महासमुंद

जिला मुख्यालय  से महज १० की.मी कि दुरी पर राजिम फिंगेश्वर मार्ग पर स्थित है यहाँ पहुचना अति सुगम है यहाँ पर शिव जी का स्वयंभू  शिव लिंग है जो दिनों दिन बढ़ रही है यहाँ पर सावन मास और महाशिवरात्रि का अलग ही महत्व है जिसमे दूर दूर से लोग आते है और प्रति वर्ष विशाल मेले का आयोजन किया जाता है यहाँ पर कनेश्वर महादेव ,केवट समाज का राम जानकी मंदिर और सिन्हा समाज का दुर्गा माता मंदिर ,शनि मंदिर ,बस्तरहीन माता ,नाग देव और बामी   देखने योग्य है यह महानदी की सहायक नदी बघणाई नदी पर स्थित है

महादेव घाट शिव मंदिर  

Shiv Mandir Kanekera Mahasamund
कनेश्वर महादेव 


नंदी 


नागदेव और बाम्बी 


दुर्गा माता 

दुर्गा माता मंदिर 

Monday, November 14, 2016

chandi mata temple birkoni mahasamund चण्डी माता मंदिर बिरकोनी महासमुन्द

जिला महासमुन्द  से महज  १० कि.मी कि  दुरी पर  बिरकोनी  नामक  ग्राम पर  चण्डी  माता   का  मंदिर  स्थित है  जिसे सिद्ध शक्ति पीठ के नाम से जाना जाता है  यहाँ जाने के लिए उत्तम  सड़क मार्ग निर्मित है 

chadi mata birkoni
चण्डी  माता 



यहा छत्तीसगढ़ मे मनाये जाने वाले पर्व छेरछेरा पुन्नी मे विशाल मेले का आयोजन होता है। जिसमे भारी मात्रा में लोग यहाँ आते है यहाँ पर चैत्र पक्ष और क्वार पक्ष की नवरात्री पर भक्तो द्वार मनोकामना ज्योति जलायी जाती है पूरा नव दिन मेले के सामान प्रतीत होता है


chandi mandir birkoni mahasamund
चण्डी मंदिर 
चण्डी  माता से जुडी किदवन्ती:-
माता जी का इस स्थान पर प्राकट्य होने का एक कथा प्रचलीत है| स्थानीय निवासी और बड़े बुजुर्ग बताते है| कि कभी यह स्थान राजा-महाराजावो का गड हुवा करता था यहा पर अनेक राजा इस स्थान पर साशन कर चुके थे | धीरे -धीरे इस स्थान पर जमीदारी प्रथा का आरम्भ हो गया था। उसी समय यह ग्राम छोटे -छोटे बस्ती ( टुकडो ) में बटा हुवा था| तब यह स्थान (मंदिर परिसर ) चारो तरफ से सुन्दर वन से घिरा हुवा करता था चारो तरफ पठारी मैदान व महुवा का जंगल हुवा करता था इस स्थान पर बड़े बड़े चट्टान पाये जाते थे| वहाँ का राजा अपनी हाथी को रखने के लिये बड़े बड़े खोल का निर्माण करवाया करते थे यहा का आस पास स्थान जिसे हाथी का गोडा भी कहा जाता था |उसी समय बिरकोनी के समीप एक लालपुर नामक छोटा सा ग्राम हुवा करता था |और उस गाव में भीषन हैजा का प्रकोप छाया था लोग तिल-तिल कर मर रहे थे लोग अपने प्राणों कि रक्षा के लिये कोई दैवीय चमत्कार होने कि कल्पना कर रहे थे और अपने कुल देवी देवतावो कि पूजा पाठ कर रहे थे (क्युकी हैजा का कोई इलाज नहीं था )तभी उसी समय उस ग्राम में एक घटना घटी लालपुर ग्राम कि एक महिला और उसकी दो संतान कि हैजा के चपेट से मृत्यु हो गयी ? उस समय अंतिम क्रिया

chandi maa mandir birkoni
माँ चंडी 

करने वाले लोगो कि कमी थी क्युकी सभी लोग एक- एक करके हैजा से मरते जा रहे थे|तभी बड़ी मुश्किल से लाश की अंतिम क्रिया करने के लिए चार आदमी मिला | चारो लोग उसकी लास कि क्रिया कर्म करने के लिये लास को गाव से बहार ले जा रहे थे तभी रास्ते में भीषन जंगल पड़ा और जाते जाते साम भी हो चुकी थी दिन ढलने लगी थी अधेरा होने को आ गया था एक दुसरे कि सक्ल ठीक से नहीं दिख रही थी तबी उसमे से एक ने बोला कि अधेला हो चूका है लालटेन को जलवो | तब लालटेन को वो जलाने के लिए अपने सामान में ढूंढने लगे तब पता चला कि लालटेन को तो घर पर ही भूल आ गए है| तब एक ने बोला तो हम में से कोई एक घर जाकर लालटेन लाये और कुछ छुटी जरुरी सामग्री को भी ला ले तब एक ने मना कर दिया मै अकेले नहीं जा पाउँगा क्युकी रास्ता भी ठीक नहीं है और अधेला भी है|जंगली जानवरो का भी खतरा है| तब चारो ने कहा हम चारो एक साथ लास को कुछ समय के लिए यहा पर छोड़ देते है| हम एक साथ चले जाते है | ऐसा कहकर व लास को उसी स्थान पर छोड़ के चले जाते है |तभी उसी समय एक हैरत कर देने वाली घटना घटी चारो लोग जैसे ही वापस आते है तो देखते है कि वो लाश उठ कर खड़ी हो चुकी थी| उसका अधभूध स्वरूप सोला सृंगार किये हुवे तेज आभा लिए खड़ी थी ऐसा नजारा देख कर चारो डर के मारे वहा से भागने ही वाले
प्रांगण में स्थित दो मंदिर

थी तभी उस दिव्य युवती ने बोला कि मुझसे डरने कि कोई बात नहीं है मै तुम्हार कुछ नुकसान नही करुँगी मेरी बात को सुनो तब लोग डरते हुवे रुके | तब माता ने बोला कि मै अपनी इच्छा से इस महिला के सरीर में प्रकट हुवी हु मै अपनी सभी भक्तो का दुःख दूर करने तथा सभी कि कल्याण करने उसकी रक्षा करने के लिए अपना यह रूप धारण किया हु तुम लोग व सभी ग्रामवासी मेरी विधि वत पूजा अर्चन करो और इस स्थान पर एक छोटी सी चबूतरा व छोटी मंदिर का निर्माण करवावो ऐसा कहकर माता अंतर ध्यान हो गई ?तब चारो लोग इस बात को वापस अपने ग्राम में जाकर सभी को बताया तो उसकी बात पर किसी ने विस्वास नहीं किया व उनकी बातो पर ग्रामवासी हसने लगे|तभी उसी दौरान बिरकोनी ग्राम के एक गौटीया को माता ने सपने में आकार बोला कि उन चारो कि बात सत्य है| मै उस स्थान पर प्रकट हुवी हु तथा सभी को अपनी सेवा करने का सौभाग्य प्रदान कर रही हु| वहा पर मेरा एक छोटा सा मंदिर का निर्माण किया जाये| माँ ऐशा आदेश देती है|

chandi mata birkoni
मनोकामना वट वृक्ष

तब अगले दिन सपने वाली बात को लोंगो को बताया तब सपने कि बात तथा उन चारो कि बातो कि सत्यता जानकर सभी उस स्थान पर गए तथा माँ कि विधि वत पूजा अर्चना कर तथा अपनी गलती कि क्षमा मागी और उस स्थान पर एक चबूतरा व एक छोटी सी मंदिर का निर्माण किया और माता को ग्राम कि प्रमुख देवी के रूप में उस दिन से पूजा गया|धीरे- धीरे आस पास के सभी ग्रामों कि हैजा का प्रकोप माता रानी कि कृपा से समाप्त हो गया|सभी लोग खुशहाली से जीवन यापन करने लगे और सभी का दुःख समाप्त हो गया तब से लोंगो के मन में माता के प्रती और अटूट श्रधा बड गयी तभी सभी ग्रामवासी माता कि मंदिर को और अधिक भव्य बनाने कि तैयारी में लग गए और एक बड़ा सा मंदिर का निर्माण किया गया उसी समय कुछ चोर मंदिर में लुट कि फ़िराक से माता के गहने चडावे के पैसे को ले जाने लगे तब माता ने क्रोध वस् सभी चोरो को पत्थर का बना दिया उसके पत्थर को आजभी कुछ अवसेष को देखा जा सकता है वर्तमान में पत्थर विलोपन के कगार पर है इस प्रकार माता के नित नए नए चमत्कार को देखते हुवे दूर - दूर से लोग माता के दरबार में अपनी मुरादे ले कर आते है| और माता सभी भक्तो कि मु मागी मुराद पूरी करती है और माँ चंडी नीसंतानों को सहज ही संतान सुख कि प्राप्ति का वरदान देती है |तभी से माता को प्रसन्न करने के लिए तथा माता के सम्मान तथा माता कि यसो गान करने के लिए भक्तो के द्वारा मेले का आयोजन किया जाता है |वर्तामान मन्दिर काफी भव्य है उसकी बनावट देखते ही बनती है| मंदिर के उपर माता के अनेक रूप कि मुर्तिया के दर्शन होते है| मंदिर का ज्योति कक्ष व यज्ञ कक्ष सभागार देखने योग्य है अभी वर्तमान में एक भव्य ज्योति कक्ष का निर्माण कार्य चल रहा है|
(नोट :- दोपहर 1 बजे से 2 बजे के बीच माँ चण्डी को प्रशाद का भोग लगाने व विश्राम के लिए मंदिर के पट बंद रहते है। )

Sunday, October 16, 2016

Khallari Mata temple Bhimkhoj Mahasamund खल्लारी माता मंदिर भीमखोज महासमुंद

खल्लारी माता मंदिर भीमखोज,जिला - महासमुंद(छः ग )
इसका प्राचीन नाम खल्लवाटिका थी, रायपुर विजयानगरम लाइन पर रायपुर से ४६ मील दूर भीमखोज स्टेशन है |वहा से यह स्थान १ मील दूर है, यहाँ चैत्र -पूर्णिमा पर तीन दिन का मेला रहता है पहाड़ के ऊपर दुर्गा जी का मन्दिर है उन्हें खल्लारी माता कहते है पर्वत का घेरा आधा मील से कुछ अधिक है, यात्री पर्वत की परिक्रमा करते है| यहाँ चैत्र पक्ष और क्वार पक्ष में मनोकामना ज्योती भक्तो द्धारा जलाई जाती है पूरा वातावरण भक्ती मई हो जाता है यहाँ नव दिनो का विशाल भंडारा का आयोजन किया जाता है|  पर्वत के नीचे जहाँ मेला लगता है वहा नीचे वाली खल्लारी माता ,शिव मन्दिर ,श्री राम जानकी ,जगन्नाथ मन्दिर, काली माता कि प्रतिमा है| और नये नए मन्दिर का निर्माण कार्य चल रहा है|  पर्वत के आसपास लगभग १२० तालाब था उनमे से कुछ विलुप्त होते जा रहे है|
khallari mata bhimkhoj
माँ  खल्लारी ऊपर वाली 

किवंदती-पुरानी मान्यताओ के अनुशार  माँ खल्लारी का आगमन
महासमुन्द से निकट ग्राम -बेमचा से हुवा था इस सम्बन्ध में ऐसे किवंदती प्रचलित है कि ग्राम - बेमचा से माता सोडसी का रूप धारण कर बाज़ार आया करती थी उसके रूप लावण्य से वशीभूत होकर एक बंजारा खल्लारी माता के पीछे पड़ गया बंजारा माता खल्लारी का पिछा करते हुवे पहाड़ी मंदिर तक आ गया उसके बाद माता क्रोध वस् उस बंजारा को पाषाण का बना दिया देवी माता खल्लारी में विलोपित हो गई और उसी पहाड़ी में माता निवाष करने लगी तब से देवी माँ खल्लारी का अशोगान किया जाता है|  एवँ चैत्र पूर्णिमा में भव्य मेला लगता है| 

Khallari Mata Mandir
माँ खल्लारी भीमखोज पर्वत वाली 



टिप:- माता जी का भोग लगने का समय सुबह ११ से १२ बजे तक मंदिर पट बंद रहता ह| ऊपर पहाड़ी में माता तक पहुंचने के लिए 844 सीढी चढ़ना पड़ता है| 
khallari mata temple bhimkhoj mahasamund
खल्लारी मन्दिर 

मुख्य द्धार 

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गुफा वाली दंतेश्वरी माई 


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जवारा गुफा (शेर गुफा )
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भैरव  बाबा 
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सिद्ध बाबा 
खल्लारी मंदिर दर्शन
शिव शंकर 
khallari Mandir
केवट द्वारा भगवान राम जी को नदी पार कराने का आग्रह करते हुवे दृश्य 

khallari bhimkhoj
भागीरथी दर्शण 


खल्लारी माता मंदिर भीमखोज 



khallari temple
खल्लारी माता मंदिर नीचे वाली 
khallari cg,c.g
महाकाली 
देवपाल मोची का नारायण मंदिर खल्लारी
भगवान जगन्नाथ 
     
khallari temple mahasamund chhattisgarh
नारायण मंदिर 

 नारायण मंदिर  से जुडी इतिहास :-        

(संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग छत्तीसगढ़) के लेख के अनुशार खल्लारी से पाप्त प्रसस्त अभीलेख से यह तथ्य ज्ञात होता है कि इस नारायण मंदिर को देवपाल नामक मोची ने १३ वी सती ईसवी में बनवाया था इसके इस स्थान का नाम्मोतुख(खल्लारिका) के रूप में हुवा है यह मंदिर पूर्वाभिमुख है एवं इसमें तीन अंग गर्भगृह अन्तराल खण्ड एवं मण्डप है मण्डप १६ स्तंभों पर आधारित पर है पंचरत भुविन्यास प्रकार यह स्मारक नागर शैली में निर्मित है |रायपुर कल्चुरी कालीन मंदिर वास्तु का यह प्रतिनिधित्व उदहारण है|

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Thursday, October 6, 2016

Mahadev Pathar Gaurkheda Mahasamund ( महादेव पठार गौरखेड़ा महासमुन्द )

गौरखेड़ा ग्राम के घने जंगल के बीच महादेव पठार स्थित है जिसे लोग बाबा डेरा कहते है यहाँ का प्राचीन शिवलिंगऔर रानी गुफा ,बारा- मासी जल श्रोत प्रसिध्द है| यहाँ शिव भक्तो की विशेष आस्था का केंद्र है  
mahadev pathar ghurkheda
शिव जी  महादेव पठार

History of Mahadev Pathar Gaurkheda Mahasamund (महादेव पठार का इतिहास )

गौरखेड़ा ग्राम से करीब ३-४ कि.मी की दूरी पर उत्तर दिशा की ओर,जंगलो से घिरा हुवा ,यह पठारी मैदान है| इस मैदान में एक अति प्राचीन बोधि –वृक्ष [पीपल वृक्ष] वृक्ष है| वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग स्थापित है,जिसे बाबाडेरा कहा जाता है| बोधि वृक्ष से करीब ३ कि.मी. कि दूरी पर दक्षिण कि ओर हजारो वर्ष प्राचीन एक वट-वृक्ष है,अवलोकन करने से,यह जगह साधना योग्य स्थान मालूम पड़ता है| यही पर काले रंग के पत्थरो से युक्त एक भव्य गुफा है जिसे स्थानीय लोग ‘’रानी – खोल’’कहते है| बाबाडेरा से करीब ३ कि.मी. कि दूरी पर नीचे कि ओर तराई में घनघोर जंगल है|
mahadev pathar
शिव लिंग  

बाबा डेरा महादेव पठार ,गौरखेड़ा - महासमुंद  

इस जंगल में एक बारहमासी नाला बहता है| नाला के इर्द-गिर्द आम्रवन है| इस जगह का भौतिक आकलन करने से यहाँ कभी वैभव सम्पन बस्ती होने का आभास होता है| संभवत हजारो वर्ष पूर्व वसीयत होने का अंदेशा होता है| मालूम होता है कि यही वह स्थान है,जहाँ कभी राजा भीमसेन द्वतीय का बसाया हुवा चम्पापुर नामक गढ़ रहा होगा| इस स्थान से कुछेक दूरी पर परसापानी तथा लड़ारीबाहरा नामक वीरान जंगल है,जहाँ कभी कृषि कार्य किया रहा होगा| क्योकी इस स्थान पर खेतो का तटबंध वर्तमान कृषि के अवशेष है| संभवत:चम्पापुर के निवासी जीवकोपार्जन हेतु कृषि कार्य करते थे| आज ये जगा वीरान हो गया है पर आज भी अतीत की यादो को अपने में समा कर खामोश बैठी है| जैसी कि खुछ कहना चाहती हो?                                                         
पठार वाली माता रानी   

पठार के उपर जंगली जानवर होने का प्रतीक
                                                                                              
                                                                                                            आलेख 
                                                                                                   डॉ.जी.पी चन्द्राकर मोहंदी 

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Champai Mata Temple Mohandi Mahasamund (चम्पई माता मंदिर मोहन्दी महासमुन्द )

महासमुन्द से लगभग ११ किलोमीटर कि दुरी पर मोहन्दी ग्राम पर घनघोर पहाड़ी के ऊपर चम्पई माता विराजमान है पहाड़ी तक  जाने के लिये उत्तम सड़क मार्ग है|

champai mata mohandi,mahasamund
चम्पई माता 

चम्पई माता का इतिहास History of Champai Mata

७ वीं शताब्दी के चीनी पर्यटक व्हेनात संघ के यात्रा-आलेख के अनुसार छत्तीसगढ़ के ३६ मृतित्का गढ़ में से एक गढ़ “चंपापुर” हुवा| ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार कलचुरी वंशज राजा भीमसेन द्वीतीय कि राजधानी चंपापुर के नाम से विख्यात था चंपापुर की नगर देवी “चम्पेश्वरी – देवी’’ थी चम्पेश्वरी देवी आज भी ब्रम्हागिरी पर्वत कि महादेव-पठार नामक स्थान के एक गुफा विराजमान है आस पास के ग्रामीण वर्तमान में भी चम्पेश्वरी-माता कि पूजा –अर्चना बड़ी श्रध्दा के साथ कर रहे है| शारदीय-नवरात्रि एवं चैत्र नवरात्रि के समय यहाँ पर ग्रामीणों के सहयोग से ज्योति –कलश प्रज्वलित करने का विधान वर्षो पूर्व से पारम्परिक तरीको से मनाया जाता है| परन्तु राजकीय उपेक्षा के कारण यह ऐतिहासिक स्थान विलुप्त के कगार पर है|

ऐतिहासिक तथ्य एवम दिशा-निर्देशों के अनुशार सम्भवतः बौधकालीन ब्रम्हागिरी,पर्वत महादेव-पठार नामक पर्वत सिद्ध होता है | इस पर्वत का उद्गम गौरखेड़ा ग्राम से एवम अंत लोहारगाँव नामक ग्राम के पास कोड़ार – नाला के समीप होता है | इस पर्वत पर पश्चिम से पूर्व ३ भव्य पठार एवम ५ खौफनाक गुफाये है| इन गुफावो में से वर्तमान “रानी खोल’’ गुफा एवम चम्पेश्वरी-माता गुफा सुरंग मार्ग से जुड़ा हुवा प्रतीत होता है| एवम आभास होता है कि ये दोनों गुफाये भूमिगत संघाराम भवन का प्रवेश एवम निर्गम द्वार है|

वह  गुफा जहा  माता विराजमान है

मोहंदीगढ़ का इतिहास ( छत्तीसगढ़ )

ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार चम्पापुर के राजा भीमसेन द्वीतीय पर दुसरे राजा जयराज ने आक्रमण कर पारजित किया पराजित राजा भीमसेन द्वीतीय के भ्राता भरतबल कि रूपमती पत्नी जो तात्कालिक कौशल नरेश राजकन्या थी-को सुरक्षा कि दृष्टीकोण से सुरक्षित स्थान नागार्जुन-संघाराम में भूमिगत सुरंग मार्ग से ले जाकर रख दिया था| युद्ध समाप्ति पश्चात पराजीत राजा भीमसेन द्वतीय तथा भरतबल ने इस जंगल में रानी लोकप्रभा की खोज कि लेकिन रानी का कही अता-पता नहीं चल पाया |खोज होता रहा ,परन्तु रानी कहा गायब हुई कैसे गायब हुई ,क्या जंगली जानवरों के चपेट में आ गई? किसी को कुछ पता ही नहीं चला |हताश राजा भीमसेन और भरतबल खल्लवाटिका [ खल्लारी ] के तात्कालिक राजा हरिब्रहादेव कि शरण में सुरक्षा हेतु पंहुचा |भरतबल ने पत्नी वियोग में दुखी होकर आत्महत्या कर लिया कुछेक पश्चात ,भीमसेन की भी मृत्यु हो गया| यह इतिहास के पन्नो में दर्ज है परन्तु इस स्थान का पुरातात्विक अन्वेषण आज तक नहीं हो पाया ?
 मंदिर का  प्रवेश  द्धार
आक्रमण के कारण “चम्पापुर’’ का वैभव तहस – नहस हो गया | बचे-खूचे पुरवासी २ - ३ हिस्सों में बटकर पलायन कर गए कुछ लोग उस स्थान को छोड़कर वर्तमान बेलर ग्राम में जाकर बसे तथा कुछ लोग पर्वत के पूर्व कि तलहटी में बस गए बसाहट पश्चात इस स्थान को ‘’चंपाई’’ ग्राम से जाना गया शेष बचे लोग यत्र-तत्र जीवकोपार्जन हेतु पलायन कर गए-इस तरह प्राचीन चम्पापुर वीरान हो गया

गुफा तक  जाने  कर रास्ता
कालांतर में समस्त खल्लारी क्षेत्र कोमाखान जमीदारी के अंतर्गत समाहित हो गया तत्कालीन जमीदारी समस्त खल्लारी प्रक्षेत्र को सिदार जाती के आदिवासी मालगुजारो के आधीन कर दिया इस परिपाटी में चंपाई का भू-भाग भी सिदार जाती के मालगुजार एवम गोड़ जाति के गढ़ियो[गौटिया] के कब्जे में आ गया |सिदार जाति के प्रथम मालगुजार ने मोहंदी नाम का गाव बसाया अपने सुरुआती काल में मोहन्दी ग्राम का बसाहट ‘डीहभाठा’ नामक स्थान पर स्थापित था |क्रमशः धीरे –धीरे चंपाई ग्राम एवम बेलर ग्राम के कुछेक निवासी भी डीहभाठा में आकर बस गए |समयानुसार डीहभाठा आबाद होते गया ,परन्तु तात्कालिक मालगुजार के परिवार का वंश-वृद्धि क्षीण होते चला गया अन्धविश्वास के कारण डीहभाठा को अपने वंशजो के लिए शापित समजकर मालगुजार उस स्थान को छोड़कर नीचे के स्थान में बस गया |उसी समय सिदार मालगुजार,जो पनेकाडीह का मालगुजार था उसने डील को छोड़कर नीचे के स्थान में आ गया-और इस तरह मोहदी ग्राम का निर्माण हुवा |समय के अनुसार लोग डीहभाठा और पनेकाडीह को भूल गए,तथा मोहन्दी ग्राम ही अस्तित्वमें आ गया

मोहन्दी ग्राम के अस्तित्व में आने के पूर्व,ग्राम के उत्तर में एक डीह अस्तित्व में थाः जहां कुछ साँवरा जाति के लोग बसे हुवे थे |बँहडोला डबरी उन लोंगो का निस्तारी तलैया था तथा “लजगरहीन माता ” उनके डील कि आराध्य देवी थी परन्तु ये साँवरा लोग कहा गायब हुवे ,डील कैसे उजड़ा-ये सब नेपथ्य के गर्त में है


                                                                                                    आलेख  
                                                                                     डॉ जी.पी चन्द्राकर मोहंदी 

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Saturday, October 1, 2016

Chandi mata temple Ghunchapali Bagbahara ( चण्डी माता मंदिर घुंचापाली बागबाहरा महासमुंद )

चण्डी माता का मंदिर महासमुंद जिले के घुचापाली ग्राम मे स्थित है| जो बागबाहरा से काफी नजदीक है|  माता के दरबार तक जाने के लिए उत्तम सड़क मार्ग निर्मित है। भव्य  पहाड़ के ऊपर माता विराजमान है|  माता की मूर्ति स्वयम्भू है। व  नित -नित बड़ रही है|  जिसके चलते कई बार मंदिर को तोडना पड़ा था |  चैत्र पक्ष व क्वार पक्ष मे भारी मात्रा में भक्तो द्वारा मनोकामना ज्योति जलायी जाती है|  भक्तो के ठहरने के लिए उत्तम विश्राम भवन की व्यवस्था कि गयी है। मुख्य मंदिर पहाड़ी के ऊपर स्थित व मुख्य मंदिर से आगे पहाडी के ऊपर छोटी चण्डी  माता  गुफा के अन्दर विराजमान है| 
Chandi mata temple Ghunchapali,Bagbahara
चण्डी माता
चण्डी प्राँगण की रुपरेखा :- माँ चण्डी के दरबार में आते हो तो सबसे पहले माता का भव्य प्रवेश द्वार मिलता है जिसमे माता की प्रतिमा अंकित है| थोड़ी आगे  ध्रुव समाज का नवनिर्मित शिव मंदिर व विशाल नंदी की निर्माधीन प्रतिमा के भव्य दर्शन होते है| 
ज्योति कक्ष

chandi mata
चण्डी माता

माता तक पहुचना बड़ा आसान है,  रास्ते में कोई सीढ़िया नहीं बनी है क्योंकि जो पर्वत है वह ढलान है। जिसके चलते बड़े बुजुर्ग आसानी से माता  के दरबार में पहुच सकते है| रास्ते में भैरव बाबा जी का मंदिर हनुमान मंदिर के दर्शन होते  है |  पर्वत पर विशाल काय हनुमान कि प्रतिमा भक्तो को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती  है माता के मंदिर के आस पास पिने तथा चरण धोने के लिए उचित जल का प्रबंध किया गया है|  उसके बाद माता कि भूगर्भीत विशाल काय प्रतिमा के भव्य दर्शन होते है  माता की विशाल काय प्रतिमा से निगाहे नहीं हटती है। ऐसा लगता है की माता रानी सभी भक्तो को अपने पास बुला रही हो | माता के दरबार में सच्ची मन से मांगी मुराद जरूर पूरी होती है। मंदिर के पीछे गुफा के अंदर माँ भद्रकाली विराजमान है।व ठीक  सामने  ज्योति कक्ष है जिसमे  मनोकामना ज्योति जलाये जाती है । इस ज्योति कक्ष कुछ जोत  हमेशा जलती रहती है (भक्त जन ज्योति कक्ष की परिक्रमा करते है )हवन कार्य के लिए बड़ा सा हवन कुंड मंदिर प्रांगण में बना हुवा है बड़े से चट्टान में विशाल नगाड़ा का चिन्ह बनाया गया है जो पुरे परिसर को चार चार लगा देता है मंदिर परिसर के पीछे छोटे उद्यान का निर्माण किया गया है|  उसी के रास्ते पर लगभग आधा  कि. मी. पहाड़ की चोटी पर छोटी चंडी माता विराजमान है|  इसके भी दर्शन करने को जाना चाहिऐ  छोटी चण्डी माता पहाड़ की चोटी पर गुफा में  होने के कारण व सघन वन जंगली जानवर के भय से लोग पर्वत की चढाई नहीं करते है| मगर नवरात्रि के समय लोगो की भीड़ बड़ जाती है|  तब लोग अधिक मात्रा में ऊपर चढ़ते है। गुफा के अंदर माता के दर्शन होते है। ऊपर पर्वत का जो नजारा दिखता है वह देखने लायक होता है माता के गुफा के सामने विशाल पत्थर दो भागो में टुटा हुवा है| 
chandi mata temple (chhattisghar)





विशेष :- यहाँ पर माता की जैसे आरती की घंटी बजती है माता के दरबार में भालू प्रसाद के लिए आते है अभी तक किसी को कोई नुकसान नही पहुचाया है इसे माता का चमत्कार भी कहा जाता है| 

टिप :- पास में ही जुनवानी ग्राम पर एक अति प्राचीन महाभारत कालीन एक समतल चारो तरफ से चट्टान से घिरा हुवा पठारी मैदान है जिसमे एक शिव मंदिर है और नागिन का पत्थर में परिवर्तीत एक लंबा सा पत्थर है जिसे बिच -बिच से काटा हुवा मालूम पड़ता है (जिसे नागिन का पत्थर कहा जाता है वही समीप में चट्टान है जिसमे पत्थर मारने पर चट्टान से विषेस प्रकार की ध्वनि निकलती जो वहा का प्रमुख आकर्षण का केंद्र है और वहा पर कई सारी प्राचीन राजो से रुब - रु होने का मौका मिलता है उस पठारी मैदान को नागिन पठार कहा जाता है उसे भी एक बार देखते हुवे वहा से प्रस्थान करना चाहिए ।